देश की राजनीति पर पैनी नजर

2018-09-01 0

देश की राजनीति पर पैनी नजर 

 

मीडिया प्लेटफॉर्म ‘जन की बात के संस्थापक और चीफ एग्जिीक्यूटिव ऑफिसर प्रदीप भंडारी चुनाव विश्लेषक के तौर पर पूरे देश में अपनी धाक जमा रहे हैं। अपने प्लेटफॉर्म के जरिए वे देश में होने वाले तमाम चुनावों के ओपिनियन और एग्जिट पोल द्वारा जनता तक सटीक आंकड़े पहुंचाने में डटे हुए हैं। प्रदीप भंडारी का दावा है कि उन्होंने अब तक 11 चुनाव कवर किए हैं और इनके बारे में दिए गए सभी आंकड़े व अनुमान सटीक बैठे हैं। 

आखिर वो ऐसा कैसे करते हैं, इसके लिए क्या स्टेªटजी अपनाते हैं और इसके लिए फंडिंग कहां से होती है, आदि सवालों को लेकर प्रदीप भंडारी से से विस्तार से बातचीत हुई। प्रस्तुत है इस बातचीत के प्रमुख अंशः

आप ये सब कैसे करते हैं। इनमें कितने अनुमान सही होते हैं और कैसे सही हो जाते हैं?

प्रदीप भंडारी-हम ओपिनियन और एग्जिट पोल दोनों करते हैं। हम लोगों की काम करने की फिलॉसफी ग्राउंड जीरो वर्क की होती है। इसका मतलब है कि जहां पर भी हम ओपिनियन अथवा एग्जिट पोल करते हैं, वहां पर एक कोर टीम होती है। वह टीम पूरे राज्य में सभी विधानसभा क्षेत्रें को कवर करती है और वहां पर एक लोकल सिटिजन रिपोर्टर नेटवर्क तैयार करती है। 

सिर्फ राजधानी में बैठकर दो-तीन सीट घूम ली और विश्लेषण कर लिया, ये हमारा स्टाइल नहीं है। चुनाव में जिस तरह राजनीतिक दल करते हैं, ठीक वैसे ही हम भी करते हैं। जब भी कोई फिफ्रटी-फिफ्रटी की सीट होती है तो उस पर हम एम्पटी बॉक्स थ्योरी लगाते हैं। इसमें मेरी थ्योरी यह रहती है कि यदि एक पोलिंग बूथ पर मान लिया जाए सब कुछ बराबर है तो कौन-सी वोटिंग पापुलेशन उस बूथ को चेंज कर रही होती है। तो इस तरह ग्राउंड जीरो वर्क और सिटीजन का पूरा नेटवर्क तैयार करके हम लोग ऐसा करते हैं। हमारी टीम में अधिकतर दूसरे प्रदेश के लोग ज्यादा होते हैं और उस प्रदेश के कम लोग होते हैं, ऐसे में पूर्वाग्रह की आंशका भी कम होती है। एग्जिट पोल तो ठीक है लेकिन ओपिनियन पोल में सही टेªंड दिखाना सबसे बड़ी बात होती है। अभी तक 11 चुनाव में ऐसा कर चुके हैं। हमारे सभी एग्जिट पोल सही निकले हैं। 

आपने जो सिस्टम बताया है, ऐसे पोल्स करने वाली देश की सभी एजेंसियां भी यही कहती हैं कि वे भी यही सिस्टम अपनाती हैं ऐसे में आपका सिस्टम इनसे किस प्रकार अलग है?  

प्रदीप भंडारी-मुझे नहीं लगता कि वे लोग ऐसा करते होंगे। मैं जितने भी राज्यों में देख रहा हूं, मुझे उस स्तर तक लोग नहीं दिखे और न ही टॉप टू बॉटम एक्सरसाइज दिखी। मैं नाम नहीं लेना चाहूंगा लेकिन कई सर्वे एजेंसियां सट्टा बाजार को फालो करती हैं। कई संस्थान वोटर लिस्ट निकालकर कर करते हैं। हमारा काम करने का तरीका बिल्कुल अलग है, हम बुक मॉडल को फॉलो नहीं करते हैं। हम अपने खुद के मॉडल को फॉलो करते हैं। तीसरी बात सबसे अहम यह है कि हमारा फोकस जमीन पर जाकर रिपोर्ट करना होता है कि क्या हो रहा है। हम लोग पोलिंग एजेंसी की तरह नहीं जाते हैं बल्कि ओपिनियन प्लेटफॉर्म की तरीके से जाते हैं। यह हमारा बहुत बड़ा फर्क होता है। 

जैसा कि आपने बताया कि अब तक 11 चुनाव कवर किए हैं और इनमें आप नंबर वन पर रहे हैं, नंबर दो पर कौन रहा है?

प्रदीप भंडारी- आंकड़ों के हिसाब से निश्चित तौर पर हम नम्बर वन रहे हैं। नंबर दो के बारे में मुझे नहीं पता कि कौन रहा है। मैं तो सिर्फ एक नंबर यानी नंबर वन के बारे में जानता हूं। दो, तीन या चार मेरे लिए नंबर नहीं हैं। 

यानी कि आप शाहरुख खान की तरह कहते हैं कि नंबर एक से नंबर दस तक हम ही हम हैं। आपका कोई तो प्रतिद्वंद्वी होगा। या तो आपको पता नहीं कि आपका कोई प्रतिद्वंद्वी है या तो आप किसी को अपना प्रतिद्वंद्वी मानते नहीं हैं?

प्रदीप भंडारी- मुझे शाहरुख खान के बारे में तो नहीं पता कि वे क्या  कहते हैं। लेकिन मैं अपने बारे में जानता हूं। मेरी नजर में सब अपनी-अपनी जगह अच्छे हैं। मैं किसी इलेक्शन में जाते समय किसी को देखते हुए अथवा उसके पोल को देखते हुए अपनी चीजें तय नहीं करता हूं। 

जब आप किसी प्रदेश के लिए ओपिनियन करते हैं तो उसकी फंडिंग क्या होती है और इसके लिए पैसा कहां से आता है?

प्रदीप भंडारी- इसमें कोई विशेष बात नहीं है। मान लीजिए कर्नाटक की बात करें तो हमारे पास वहां लोकल टैªवल पार्टनर था। इसके अलावा 1000 रुपए के कमरे में हमारी टीम रुकती है। यह हमारा खर्च था। आप बिल भी देख सकते हैं। अभी हमने रिपब्लिक से पार्टनरशिप की है, जिससे हमें आर्थिक मजबूती मिली। इसके अलावा हमने ‘दस चौपाल’ की थी, जिसमें भी हमने पार्टनरशिप की। इसके अलावा उम्मीदवारों को भी स्ट्रेटजी के इनपुट देते हैं, वहां से भी हमें पैसा मिलता है। इस तरह से पैसे की व्यवस्था होती है। 

आप न्यूज चैनलोें के साथ पार्टनरशिप करते हैं, लोगों के बीच धारणा है कि टीवी ने पत्रकारिता के मूल्यों को गिरा दिया है, इस बारे में आपका क्या कहना है?

प्रदीप भंडारी- मेरा मानना है कि समाज में जो भी हो रहा है, मीडिया वही दिखाती है। मान लीजिए टीवी जगत ने या पूरे मीडिया ने ऐसा किया है तो इसमें दो चीजें हो सकती हैं। एक तो नए आने वालों के लिए इसमें कुछ अलग करने अथवा नई चीज दिखाने का मौका है, दूसरी ये कि जनता उसे नहीं देखे। इसमें कुछ भी एकपक्षीय नहीं रहता। यह तो मांग और आपूर्ति का सम्बंध है। 

पिछले दिनों दो घटनाएं हुईं, एक हनीप्रीत का ड्रामा और दूसरा श्रीदेवी की मौत, जिसमें बाथटब में रिपोर्टर का लेटकर रिपो²टग करना, ऐसे में आपका कहना है कि सब ठीक है जो टीवी दिखाएगा, वह सब दिखेगा?

प्रदीप भंडारी- यदि मैं पत्रकारिता के स्तर से बात करूं तो यही कहूंगा कि यह ठीक नहीं है। लेकिन आपको मानना पड़ेगा कि आजकल पत्रकारिता में यह चीजें आम हो गई हैं। चैनल या डिजिटल वेबसाइट ने जो पैसा लगाया है, उसे वह रिकवर भी करना है और इसके लिए किसी भी तरह रेटिंग्स भी चाहिए। 

सभी चैनल यही तर्क देते हैं कि लोग देखना चाहते हैं, इसलिए दिखाते हैं, तो क्या यह सही है?

प्रदीप भंडारी-मेरा इस बारे में यही कहना है कि यदि आप पब्लिक को कोई चीज दिखा रहे हैं और वह उसे खराब लगेगा तो पब्लिक नहीं देखेगी। टीआरपी और व्यूज का सिस्टम भी तो इसलिए शुरू हुआ है। आखिर यह सब हम पब्लिक के लिए ही तो कर रहे हैं। इसकी तुलना आप आर्ट सिनेमा और कामर्शिल सिनेमा से कर सकते हैं। क्योंकि दोनों का स्तर अलग है।

आप उस दौर के पत्रकार हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि पत्रकारिता की इस पीढ़ी ने सोशल मीडिया में जन्म लिया है। प्रिंट, टीवी और रेडियो मीडिया वाले मानते हैं कि सोशल मीडिया ने पत्रकारिता का स्तर गिराया है। हर आदमी को पत्रकार और संपादक बनाया है, जिसमें एक आप भी शामिल हैं। इस बारे में आपका क्या कहना है?

प्रदीप भंडारी- मुझे लगता है जो लोग ऐसा बोलते हैं, उन्हें हमेशा से कोई बात कहने की बहुत ज्यादा आजादी मिली थी। पत्रकारिता में विचारों की स्वतंत्रता की बात होती है। संविधान के अनुच्छेद 19 ए (1) के तहत प्रत्येक व्यक्ति को वाक एवं अभिव्यक्ति की आजादी दी गई है। आखिर आप अपनी बात कैसे व्यक्त करेंगे। पहले लोग नुक्कड़ आदि पर खड़े होकर आपस में बात करते थे। ऐसे में आपके पास अधिकारी तक पहुंचने अथवा एडिटर तक पहुंचने के लिए कुछ सीमाएं थीं। मेरे हिसाब से सोशल मीडिया ने पत्रकार और पब्लिक के बीच जो बैरियर था, उसे खत्म कर दिया है। 

क्या आपको नहीं लगता कि बंदर के हाथ में उस्तरा आ गया है? हर आदमी आज पत्रकार हो गया है। इससे फेक न्यूज की समस्या भी बढ़ती जा रही है। आखिर आप कितनी स्टोरी को चेक करेंगे?

प्रदीप भंडारी- यह तो अच्छी बात है। आप मुझे बताइए पहले कोई टीवी चैनल या कोई बड़ा अखबार यदि गलत खबर चला देता था तो उसे कैसे चेक करते थे। लेकिन यदि आज आप एक गलत खबर चलाएंगे तो आपके पास हजारों ट्वीट आ जाएंगे कि ये खबर झूठ है।

सोशल मीडिया पर गलत खबर चलने की बात करें तो आपके अनुसार उसे कैसे रोका जाए?

प्रदीप भंडारी- यह एक चैलेंज है। मुझे लगता है कि आप इस पर कितना भी रेगुलेशन लगा लें, वह कारगर नहीं होगा। आज की तारीख में आप देखिए कि खबर कैसे होती है। सबसे पहले वॉट्सएप पर या सोशल मीडिया पर खबर वायरल हो जाती है, तो इसे रोका नहीं जा सकता है। इसमें बस यही हो सकता है कि यदि किसी ने झूठी खबर की है तो उसके बारे में तुरंत ‘काउंटर नरेटिव’ आए और जल्दी आए, क्योंकि आजकल इतना कम्पटीशन है कि यदि एक चैनल ने गलत खबर चलाई तो दूसरे चैनल जिनको ज्यादा टीआरपी चाहिए, वे उसे गलत बताना चालू कर देते हैं। 

आजकल एजेंडा को ही सोशल मीडिया पर खबर बना दिया जाता है, इसके बारे में क्या कहेंगे?

प्रदीप भंडारी- इसको आप नहीं रोक सकते। आजकल तो हर चीज ही एजेंडा है। कौन-सी चीज का एजेंडा नहीं है। ऐसी संस्था बननी चाहिए जो डिजिटल मीडिया की गाइडलाइंस तय करे लेकिन यह ऐसा नहीं होना चाहिए जो डिजिटल मीडिया की आजादी ही खत्म कर दे। नहीं तो इतने सारे लोग जो अपना धंधा चला रहे हैं और वेबसाइट चला रहे हैं, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली हुई है, वह सब खत्म हो जाएगी। फिर तो यही होगा कि जिसके पास पैसा होगा, वही यह कर सकेगा। 

आप मीडिया एंटरप्रिन्योर बने हुए हैं। ऐसे में हम सभी लोग जानना चाहते हैं कि आपका मीडिया बैकग्राउंड क्या है?

प्रदीप भंडारी-औपचारिक रूप से मीडिया में मेरा बैकग्राउंड नहीं है। मेरा बैकग्राउंड इंजीनियरिंग का रहा है। बचपन से ही मेरी डिबेट आदि में रुचि रही है। मैं कई पोर्टल्स के लिए पहले से लिखता हूं। मीडिया की पारंपरिक तरीके से कैमरे की पढ़ाई की उन लोगों को जरूरत है जो कैमरे के सामने संकोच करते हैं या जिन्हें लिखना नहीं आता। आप किसी भी विषय में पढ़ाई करें तो भी आप मीडिया में आसानी से काम कर सकते हैं। 

आप इंजीनियरिंग के छात्र हैं लेकिन आप मीडिया में क्यों आए?

प्रदीप भंडारी- इसे समझने की जरूरत है। टेªडिशनली मैं पब्लिक लाइफ में काफी सक्रिय हूं। इस वजह से मेरा मानना है कि मीडिया ऐसा प्लेटफॉर्म है जिसके जरिए आप समाज में बदलाव लाने में अपना योगदान दे सकते हैं। 

देश के दो वर्ग-हिन्दी और अंग्रेजी हैं आप मूलतः अंग्रेजी पत्रकार हैं। अंग्रेजी बैकग्राउंड से आए हैं। आप हिन्दी काफी अच्छी बोलते हैं। आपको क्या लगता है कि अपने देश में हिन्दी मीडिया और अंग्रेजी मीडिया में से कौन मजबूत है?

प्रदीप भंडारी- न तो पूरी तरह से इंग्लिश और न तो पूरी तरह से हिन्दी बल्कि दोनों के मिले-जुले रूप का आम लोग बातचीत में इस्तेमाल करते हैं। मेरा मानना है कि आने वाला समय इंग्लिश का होगा।  





ये भी पढ़े :

देश की राजनीति पर पैनी नजर

कुछ बड़ा करें या फिर घर बैठें- विजय शेखर शर्मा (पेटीएम)



मासिक-पत्रिका

अन्य ख़बरें

न्यूज़ लेटर प्राप्त करें