साक्षात्कार - अरुण पूरी

2018-09-01 0

चार साल के लम्बे इंतजार के बाद पिछले दिन जारी ‘इंडियन रीडरशिप सर्वे’ के आंकड़ों ने प्रिंट इंडस्ट्री खासकर मैगजीन्स पब्लिशर्स के मन में सुनहरे भविष्य की उम्मीद जगा दी है। दुनिया भर के टेªंड्स को धता बताते हुए पिछले चार वर्षों में भारतीय इंडस्ट्री की रीडरशिप में 75 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। आईआरएस 2017 के नए आंकड़े इंडस्ट्री को किस तरह प्रभावित करेंगे और भारत में मैगजींस के भविष्य के लिए इनके क्या मायने हैं, इस बारे में हमने ‘इंडिया टुडे ग्रुप’ के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ अरुण पुरी से बात की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंशः

मैगजींस पब्लिशर्स के लिए आईआरएस के क्या मायने हैं आपको क्या लगता है कि ये आंकड़े इंडस्ट्री और खासकर ऐड रेवेन्यू को किस तरह प्रभावित करेंगे?

प्रिंट इंडस्ट्री के लिए आईआरएस सर्वे का बहुत ज्यादा महत्व है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि मैगजींस ने लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो पहले से कहीं ज्यादा अब प्रासंगिक है। ये तमाम तरह की सूचनाओं और घटती विश्वसनीयता के बीच एक तरह की स्पष्टता लेकर आती है। इनके द्वारा हम हमेशा वास्तविक तथ्यों को हासिल कर पाते हैं। 3-2 लाख के विशाल सैंपल साइज की अच्छी तरह से स्क्रूटनी के बाद इस तरह के आंकड़ों का आना निश्चित रूप से मैगजींस पब्लिशर्स पर सकारात्मक प्रभाव डालने वाला है।

इन आंकड़ों से किसी अन्य मीडिया प्लेटफॉर्म के मुकाबले पब्लिशर्स को और बेहतर कंटेंट तैयार करने में मदद मिलती है। इसके अलावा ये आंकड़े समझदार पाठकों के लिए मैगजींस को पसंदीदा माध्यम बनाने में भी मदद करते हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि नए आंकड़े मैगजींस पब्लिशर्स के लिए काफी काम आएंगे। 

‘इंडिया टुडे’ अंग्रेजी के लिए भी ‘आईआरएस 2017 के आंकड़े काफी खास रहे हैं। जिसमें सभी बिजनेस अखबारों और लगभग सभी अंग्रेजी अखबारों के बीच इसकी रीडरशिप सबसे ज्यादा बताई गई है। ऐसे में वाजिब कीमत और बढ़ती पहुंच के कारण इंडिया टुडे किसी भी एडवर्टाइजर के लिए फायदे का सौदा साबित होती है और मुझे लगता है कि कोई भी एडवर्टाइजर इस मौके से चूकना नहीं चाहता है। 

डिजिटल मीडिया से प्रतिद्वंद्विता के बावजूद मैगजींस की रीडरशिप में 75 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। आपको क्या लगता है कि ऐसे में क्या अब भी यह कहना सही रहेगा कि मैगजीन पीछे की ओर जा रही है। इन आंकड़ों के बाद आप आगे मैगजींस के सफर को किस रूप में देखते हैं?

इंडस्ट्री काफी महत्वपूर्ण दौर से गुजर रही है। देश में चल रही डिजिटल क्रांति में भी पब्लिकेशंस आगे बढ़ रहे हैं। रीडरशिप में हुई 75 प्रतिशत की बढ़ोत्तर से पता चलता है कि अब मीडिया कंज्यूमर काफी स्मार्ट हो गये हैं और वो पहले की तरह चीजों को गहराई और विस्तार से समझना चाहते हैं। ऐसे में मैगजींस उनकी इस जरूरत को बखूबी पूरी करती हैं। मेरा मानना है कि आने वाले समय में मैगजींस को और आगे बढ़ना चाहिए। हालांकि प्रिंट से डिजिटल की तरफ जाने का सिलसिला लगातार जारी है लेकिन मैगजींस ने इस निराशा को गलत साबित कर दिया है। सिर्फ प्रतिस्पर्धा की बजाय डिजिटल की आंधी को संभालने के लिए वे दूसरों से ज्यादा बेहतर और सक्षम हैं। दर्शकों के लिए पारदर्शी होना मैगजीन की सबसे बड़ी ताकत है। 

सर्वे के लिए इस बार जिस तरह की पद्धति का इस्तेमाल किया गया, उसको लेकर आप कितने आश्वस्त हैं, आने वाले सर्वे में आप इसमें और क्या सुधार की उम्मीद रखते हैं?

मैं समझता हूं कि इस सर्वे में सभी स्तरों पर स्क्रूटनी को बढ़ावा दिया गया था। इस बार सैंपल साइज भी जयादा रखा गया था। इसकी लगातार मॉनीटरिंग की गई थी और इसमें दखलंदाजी की गुंजाइश बहुत कम थी। 2-35 लाख से बढ़ाकर सैंपल साइज को 3-2 लाख करने से भी इस सर्वे को मजबूती मिली है। हालांकि आईआरएस को लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ा, इसके बावजूद यह टिका रहा है और भविष्य के लिए नए रास्ते तैयार किये। 

इंडिया टुडे मैगजींस (अंग्रेजी और हिन्दी दोनों) के आंकडे़ इस बार के सर्वे में बेहतर रहे हैं। आपको क्या लगता है कि किस स्टेªटजी के कारण ‘इंडिया टुडे’ इस पोजीशन पर पहुंचने में कामयाब रही?

हमने मैगजीन को रिडिजाइन करने का और समकालीन बनाने का बोल्ड निर्णय लिया था। इंडिया टुडे (अंग्रेजी) गंभीर पत्रकारिता को बेहतर तरीके से प्रस्तुत करने में विश्वास रखती है। आजकल 24 घंटे चलने वाले चैनलों और फेक न्यूज व डिजिटल की सुनामी के बीच पब्लिकेशंस को जरूरत है कि वे पाठकों को स्पष्ट और तथ्यपरक जानकारी उपलब्ध कराएं। ‘इंडिया टुडे’ यही भूमिका निभा रही है और यही कारण है कि इस मैगजींस का भविष्य बहुत उज्जवल है। 

अन्य मैगजीन पब्लिशर्स को आप क्या सलाह देना चाहेंगे?

मेरा मानना है कि सभी मैगजींस को अपनी कोर वैल्यू और यूएसपी का हिसाब रखना चाहिए और उसी के अनुसार अपने क्षेत्र में बेहतर करने का प्रयास करना चाहिए। मैगजींस पब्लिशर्स अपनी कंटेंट  स्ट्रेटजी  को देखते रहे और अपने पत्रकारीय दृष्टिकोण पर सच के साथ खड़े रहें और मानकों को अपग्रेड करते रहें। इसके अलावा वह रेवेन्यू के लिए अन्य विकल्पों जैसे इवेंट्स, ई-कॉमर्स, न्यूज लेटर्स और क्लब मेंबरशिप आदि पर भी ध्यान दें।   



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