वीडियो एडिटिंग करियर के लिए एक बेहतर विकल्प

2018-07-01 0

आज के दौर में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और मनोरंजन जगत का विस्तार तेजी से हो रहा है। ऐसे में वीडियो एडिटिंग करियर के एक बेहतर विकल्प के तौर पर उभर रहा है।

वीडियो एडिटरः जॉब प्रोफाइल

अलग अलग कई वीडियो को एक वीडियो बनाना, खराब दृश्यों में सुधार करना, साउंडट्रैक जोड़ना जैसे कार्य एक वीडियो एडिटर के जिम्मे होते हैं।

एक वीडियो एडिटर का मुख्य काम किसी भी मोशन पिक्चर, केबल या ब्रॉडकास्ट विजुअल मीडिया इंडस्ट्री के लिए साउंडटैªक, फिल्म और वीडियो का संपादन करना होता है। इसकी खास बात यह है कि बिना किसी औपचारिक शिक्षा के भी युवा इसे करियर विकल्प के तौर पर चुन सकते हैं। डिजिटल वीडियो एडिटिंग में करियर बनाने के लिए एक व्यक्ति के पास इसके लिए जरूरी कंप्यूटर सिस्टम और प्रोग्राम की टेªनिंग प्राप्त होना जरूरी है।

क्या करता है एक वीडियो एडिटर

किसी भी फिल्म के निर्माण के दौरान रॉ फुटेज शूट के संपादन का काम एक  वीडियो एडिटर के जिम्मे होता है। आधुनिक वीडियो डिजिटल कैमरे के बढ़ते इस्तेमाल से पहले फिल्म फुटेज को असली स्ट्रिप्स (पट्टिट्टयों) पर शूट किया जाता था। उस वक्त वीडियो एडिटर्स को हाथ से उन्हें काटना पड़ता था और कई दृश्यों को एक साथ जोड़ना पड़ता था।

एक वीडियो एडिटर को आमतौर पर निर्देशक या निर्माता के साथ बैठकर घंटों तक शूट किए गए रॉ फुटेज को देखना होता है। फिर उनके साथ मिलकर यह निर्धारित करना होता है कि कौन सा दृश्य रखना है और कौन सा हटाना है।

कोर्स का विवरण

वर्तमान में वीडियो या फिल्म एडिटिंग का कोर्स भारत के लगभग सभी प्रतिष्ठित फिल्म संस्थानों में उपलब्ध है। ये कोर्सेज सर्टिफिकेट, डिप्लोमा और पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा स्तर पर कराए जाते हैं। इन कोर्सेज का लक्ष्य फिल्म एडिटिंग के सभी पहलुओं जैसे नॉन लीनियर एडिटिंग, प्रोफेशनल एडिटिंग, कैमरा बेसिक्स, ग्राफिक्स और स्पेशल इफेक्ट टेक्नीक्स इत्यादि की शिक्षा छात्रों को मुहैया कराना है। 

फिल्म या वीडियो एडिटिंग के अंडरग्रेजुएट कोर्स में एडमिशन के लिए अभ्यार्थियों का 12वीं पास होना जरूरी है और पीजी डिप्लोमा कोर्स के लिए संबंधित स्ट्रीम में ग्रेजुएट होना अनिवार्य शर्त है। वीडियो एडिटर के असिस्टेंट के तौर पर काम शुरू करने के लिए बैचलर डिग्री काफी है।

रोजगार की संभावनाएं

भारत में हर साल 1000 से ज्यादा फिल्में बनाई जाती हैं, जो भारत को सबसे ज्यादा फिल्म बनाने वाले देशों में से एक बनाती हैं। फिल्म निर्माण के लिए एडिटिंग मौलिक जरूरत है, इसलिए कुशल वीडियो संपादकों की मांग आने वाले दशकों में घटने वाली नहीं है। वीडियो एडिटर के तौर पर एक व्यक्ति फीचर या नॉन फीचर फिल्मों, डॉक्युमेंट्री, विज्ञापनों और टीवी कार्यक्रमों में रोजगार तलाश कर सकता है। मोशन पिक्चर इंडस्ट्री में असिस्टेंट एडिटर से एडिटर के पद तक प्रमोशन पा सकते हैं।

वेतन

शुरुआती तौर पर अभ्यर्थी 7000 से 10000 रूपये तक कमा सकते हैं। दो से तीन साल का अनुभव प्राप्त करने के बाद वेतन 15000 से 25000 रूपये तक बढ़ सकता है। बेहद अनुभवी वीडियो एडिटर छह अंकों वाली उम्दा सैलरी की भी उम्मीद कर सकते हैं।

रोजगार के अवसर

  • फिल्म, टीवी और म्यूजिक प्रोडक्शन
  • फिल्म और टीवी की मार्केटिंग और डिस्ट्रिब्यूशन
  • फिल्म प्रोडक्शन, डिस्ट्रिब्यूशन या थियेटर संबंधी पर्सनल या फैमिली बिजनेस
  • पोस्ट प्रोडक्शन स्टूडियो
  • कॉर्पोरेट एप्लायर (कॉर्पोरेट टेªनिंग वीडियो)
  • विज्ञापन

एक्सपर्ट की राय

करियर काउंसलर जितिन चावला के मुताबिक आज व्यक्तित्व स्तर से लेकर बड़े-बड़े कॉर्पोरेट घराने खुद को हाइलाइट करने के लिए यूटयूब, विभिन्न अभियानों और कॉर्पोरेट सीडी का सहारा लेते हैं। एडिटिंग का क्षेत्र अब बस फिल्म एडिटिंग तक ही सीमित नहीं है।

वह बताते हैं कि स्कूली स्तर पर शुरू किए गए मीडिया विषयों में भी अब एडिटिंग की क्लासेज दी जाती हैं।

प्रमुख संस्थान

  • सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट, कोलकाता
  • फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे
  • एशियन एकेडमी ऑफ फिल्म एंड टेलीविजन, नोएडा
  • सेण्टर फॉर रिसर्च इन आर्ट फिल्म एंड टेलीविजन, नई दिल्ली
  • डिपार्टमेंट ऑफ फिल्म एंड टीवी स्टडीज, भारतीय विद्या भवन

आजकल दुनियाभर में कंपनियां, बैंक, कारपोरेट और फौजें भी भर्ती करने से पहले योग्य उम्मीदवार के बारे में काफी पड़ताल करती है। विभित्र देशों में कंपनियों का विस्तार बढ़ रहा है जिसकी वजह से अब कंपनियां सिर्फ उम्मीदवारों की आईक्यू और बैकग्राउंड ही नहीं जांचती बल्कि उनकी सीक्यू भी चेक करती है। आज के दौर में नौकरी पाने के लिए सीक्यू बेहद अहम भूमिका निभाता है। सीक्यू मतलब कल्चरल कोशचंेट जिसके बारे में ज्यादातर उम्मीदवारों को पता नहीं होता। अगर आपकी कंपनी आपको नौकरी के दौरान किसी दूसरे देश में भेजती है तो उसके लिए सबसे पहले सीक्यू की जांच की जाती है।

क्या है सीक्यू

जब आप किसी और देश, समाज या समुदाय के लोगों से मिलते हैं, तो उनकी जबान बोलने की कोशिश करते हैं। उनके जैसे हावभाव अपनाते हैं। उनसे करीबी रिश्ता बनाने की आपकी ये कोशिश कल्चरल इंटेलीजेंस या सीक्यू कहलाती है। आप अपनी बॉडी लैंग्वेज बदलकर, सामने वाले के हावभाव की नकल करके उसके जैसा दिखने की जो कोशिश करते हैं। वो अक्सर सामने वाले पर गहरा सकारात्मक असर डालती है। ये बहुत से करियर में काम का फन है। इसीलिए आजकल बैंक हों या दुनिया भर में तैनात होने वाली सेनाएं, सब, भर्ती के दौरान लोगों में इस हुनर के होने, न होने की पड़ताल करती हैं।

ग्लोबल होते करियर की जरूरत है सीक्यू

आज दुनिया में सरहदों की पाबंदियां टूट रही हैं। ऐसे में आप की कामयाबी के लिए आईक्यू से ज्यादा जरूरी है सीक्यू। वैज्ञानिक हों या अध्यापक या फिर बैंक में काम करने वाले, सब के पास ये हुनर होना जरूरी है क्योंकि ऐसे करियर वाले, बहुत से लोगों के संपर्क में आते हैं। उनसे बात करते हैं। ये उनके काम के लिए जरूरी होता है। उनकी कामयाबी इसी बात पर टिकी होती है कि अलग-अलग देशों के लोगों से अच्छा तालमेल बना लें। इसीलिए इन दिनों कंपनियों ने नौकरी से पहले सीक्यू लेवल चेक करना शुरू किया है।

तय सवालों से मापा है जाता है सीक्यू

किसी का भी सीक्यू कुछ तयशुदा सवालों से मापा जाता है। पहला होता है, सीक्यू ड्राइव, यानी दूसरे देश, समुदाय या संस्कृति के बारे में जानने-समझने की ख्वाहिश फिर सीक्यू नॉलेज यानी किसी भी समुदाय के बारे मंे जानकारी और उसके और आपके समुदाय में फर्क की समझ होना। फिर सीक्यू स्ट्रेटेजी के सवालों से ये पता लगाया जाता है कि किसी और समाज या समुदाय के लोगों से तालमेल बिठाने की आपकी रणनीति क्या है। इसके अलावा सीक्यू एक्शन से ये जानने की कोशिश होती है कि आप किस तरह से सामने वाले के साथ तालमेल बिठाते हैं। क्या आप झुकने के लिए तैयार होते हैं। क्या आप गिरगिट की तरह रंग बदलने में माहिर हैं। अगर किसी का सीक्यू कम है, तो वो सब को अपने ही नजरिए से देखने की कोशिश करेगा।

सीक्यू वालों को विदेश में आसानी से मिलती है नौकरी

2011 की एक स्टडी के मुताबिक, आईक्यू, इमोशनल इंटेलीजेंस और सीक्यू, ये तीन तरह की बुद्धिमत्ता होती है। ये तजुर्बा स्विस मिलिट्री एकेडमी में किया गया था। जहां पर काम करने वाले, अलग-अलग देशों से आए सैनिकों की मदद कर रहे थे। एक दूसरे के साथ काम कर रहे थे। जिसके पास ये तीनों तरह की अक्लमंदी भरपूर तादाद में है, वो तो सबसे अच्छा काम कर ही रहा था। मगर, इनमें भी जिसका सीक्यू ज्यादा था, वो तालमेल बनाने की रेस में सबसे आगे निकल गया था। जाहिर है कि जिनका सीक्यू ज्यादा होगा, उन्हें विदेश में नौकरी मिलने में आसानी होगी। नौकरी मिलने के बाद उनकी तरक्की भी तेजी से होगी। यही वजह है कि बहुत सी कंपनियां, कर्मचारी रखने से पहले लोगों के सीक्यू की पड़ताल कर रही हैं।


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