धारती का भगवान

2018-10-03 0

मानसिक रूप से बीमार लोगों का इलाज कर उन्हें सहारा देने वालेजय प्रकाश जय डॉक्टर को ‘धारती का भगवान’ मानते हैं।

 

मुंबई के डॉ- भरत वाटवानी को वे लोग ‘धरती का भगवान’ मानते हैं, जिन्हें विक्षिप्तावस्था में सड़कों पर भटकना पड़ा था। डॉ- वाटवानी का ‘श्रद्धा फाउंडेशन’ ऐसे सात हजार से अधिक लावारिस बदनसीबों को निःशुल्क आश्रय, दवा-इलाज के बाद उनके घरों तक पहुंचा चुका है।

मानसिक संतुलन खो  बैठना ही उनकी जिंदगियों के साथ सबसे क्रूर मजाक होता है। स्वस्थ कर उनकी जिंदगियां भी सामान्य ढर्रे पर लाई जा सकती हैं। फिर तो उन्होंने इस काम को अपनी जिंदगी का पहला और आखिरी  मकसद बना लिया।

मुंबई के डॉ- भरत वाटवानी को एशिया के ‘नोबेल’ पुरस्कार कहे जाने वाले ‘रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया है। आज उनकी शख्सियत को पूरी दुनिया सलाम कर रही है। उनका काम ही कुछ ऐसा रहा है - सड़क पर भीख  मांगने वाले हजारों मानसिक रोगियों का इलाज ही नहीं करना, बल्कि उन्हे उनके घर तक पहुंचाना। डॉ- वटवानी कहते हैं - ‘सवाल मेरे व्यत्तिफ़गत सम्मान का नहीं है। इस पुरस्कार का महत्व इस बात में है कि इससे मानसिक रोगियों पर लोगों का फोकस बढ़ेगा। उनका शिकार होकर दर-दर भटक रहे गरीब-गुरबों, बेघरबारों, अनाथों और बेसहारों के दु-दर्द के बारे में समाज में जागरूकता बढ़ेगी। निश्चित रूप से भारत में मानसिक रोगों के प्रति जागरूकता बढ़ी है, पर अब भी यह जिस स्तर पर होनी चाहिए, नहीं है। ऐसे रोगियों को अब भी हिकारत से देखा  जाता है। यहां तक कि परिवार के सदस्य भी उन्हें उतनी सहानुभूति नहीं देते, जिसकी उन्हें अपेक्षा है।’

वह बताते हैं कि ‘बाबा आम्टे से मुलाकात के बाद मैंने मनोरोगियों के लिए पुनर्वास केंद्र खोलने का फैसला किया, जिसके लिए मेरी पत्नी ने मेरा पूरा साथ दिया। दरअसल बाबा आम्टे को रोगियों की सेवा करते देखना किसी आश्चर्य से कम नहीं था। रोगियों से उनका भावनात्मक जुड़ाव चरम पर था। सेवा का ऐसा उदाहरण मैंने पहले कभी नहीं देखा  था। कुष्ठ और मानसिक रोगियों के लिए ताउम्र काम करने वाले बाबा आम्टे मेरे

प्रेरणास्रोत हैं।’

डॉ- वाटवानी बताते हैं कि सन् 1991 में उन्होंने ‘श्रद्धा फाउंडेशन’ की स्थापना की। उसके बाद से अभी तक उन्होंने सात हजार से अधिक मानसिक रोगियों को उनके परिवारों को मिलवाया है। अभी उनके रिहैबिलिटेशन सेंटर में 74 पुरुष और 50 महिलाएं हैं। यहां इनका इलाज होता हैखाना-पीना दिया जाता है और इनकी देभाल की जाती है। मनोरोगियों को सामाजिक मान्यता दिलाने के लिए कई बार मुझे अदालती लड़ाई लड़नी पड़ी। हजारों मनोरोगियों को ठीक करके उनके पुनर्वास की व्यवस्था करने के साथ मैंने तमाम बच्चों तक को उनके परिवारों से मिलाया। जिंदगी के इस पड़ाव में अब कुछ नया करने का विचार तो नहीं है, पर यह जरूर है कि मैं किसी भी व्यत्तिफ़, जो इस दिशा में काम करना चाहता है, की मदद करना चाहता हू्ं।’ यद्यपि 1988 से चिकित्सारत लेकिन सुव्यवस्थित तरीके से वर्ष 1991 से इस चुनौतीपूर्ण सफर पर चल पड़े वाटवानी दंपत्ति पिछले लगभग तीन दशक से मुंबई महानगर से सटे कर्जत जिले में स्थित श्रद्धा फाउंडेशन के रिहैबिलिटेशन सेंटर को अपनी

साधना स्थली बनाए हुए हैं। आज हमारे देश में वह अपना दिमागी संतुलन खो  बैठे लोगों के ‘भगवान’ हैं। पत्नी स्मिता के साथ चिकित्सा के पेशे में उतरने के बाद डॉ- भरत वाटवानी ने जब पहली बार उलझे बालों, गंदे-फटे कपड़ों वाले एक नौजवान को मुंबई के एक रेस्टोरेंट के बाहर नारियल के खोपरे में नाली का पानी पीते देखा  था, उनका मन करुणा से भर उठा था। उन दिनों यह चिकित्सक दंपति पांच बेड का एक छोटा सा क्लीनिक चलाया करते थे। पति-पत्नी उस दिन उस युवक को अपने क्लीनिक ले आए। भर्ती कर लिया। इलाज शुरू हो गया। स्वस्थ हो जाने पर पता चला कि वह युवक तो पैथोलॉजिस्ट है। उसके पिता आंध्रप्रदेश में जिला परिषद के सुपरिन्टेंडेंट हैं। उस दिन डॉ- वाटवानी को लगा कि सड़कों पर घूमते ज्यादातर मानसिक रोगी भिखारी नहीं।

डॉ- वाटवानी के ‘श्रद्धा रिहैबिलिटेशन फाउंडेशन’ में सड़कों पर दिन गुजार चुके मानसिक बीमारों को निःशुल्क आश्रय, भोजन और दवा-इलाज की सुविधाओं के साथ ही उनको उनके घर वालों तक पहुंचाने का भी काम किया जाता है। इस काम में उनको पुलिस और सामाजिक कार्यकर्ताओं का भी साथ-सहयोग मिलता है। सड़कों पर लावारिस फटेहाल घूमती ऐसी हजारों जिंदगियों को रोशन करने वाले इस महान चिकित्सक के साथ तमाम ऐसी दास्तानें जुड़ गई हैं, जिन्हें जान-सुनकर किसी की भी आंखें नम हो सकती हैं।

मानसिक संतुलन खो  बैठना ही उनकी जिंदगियों के साथ सबसे क्रूर मजाक होता है। स्वस्थ कर उनकी जिंदगियां भी सामान्य ढर्रे पर लाई जा सकती हैं। फिर तो उन्होंने इस काम को अपनी जिंदगी का पहला और आिऽरी मकसद बना लिया और इस कठोर साधना के नाते ही ‘रेमन मैग्सेसे अवार्ड’ से नवाजे जाने के बाद आज वह साबित कर चुके हैं कि चिकित्सक सचमुच धरती का भगवान होता है, बशर्ते उसमें डॉ- वाटवानी जैसे डॉक्टर का दिल धड़कता हो



मासिक-पत्रिका

अन्य ख़बरें

न्यूज़ लेटर प्राप्त करें