कॉरपोरेट फि़क्स्ड डिपॉजिट में निवेश करने से पहले ये बातें जानना जरूरी

2018-10-03 0

कई निवेशक अपने इन्वेस्टमेंट प्लान के एक हिस्से के रूप में बैंक एफडी(फिक्स्ड डिपॉजिट) में निवेश करते हैं। निवेशकों के पैसे को सुरक्षित रखने के साथ-साथ पहले से तय किए गए दर पर रिटर्न देने के कारण बैंक एफडी एक पॉप्युलर इन्वेस्टमेंट चॉइस बन गया है। कंपनी फिक्स्ड डिपॉजिट या कॉर्पाेरेट फिक्स्ड डिपॉजिट भी उसी निवेश सिद्धांत पर काम करते हैं जिस सिद्धांत पर बैंक एफडी में अपनाए जाते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि आपके पैसे को एक बैंक के बजाय एक कंपनी को उधार में दिया जाता है और इस पर आपको बैंक से थोड़ा ज्यादा इंट्रेस्ट भी मिल सकता है। यहां आपको कंपनी या कॉर्पाेरेट फिक्स्ड डिपॉजिट के बारे में जानने लायक जरूरी बातें बताई जा रही हैं---

क्या है कॉर्पाेरेट फिक्स्ड डिपॉजिट?

कंपनियों को बिजनस से जुड़े अलग-अलग जरूरतों के लिए पैसों की जरूरत पड़ती है। वे बैंकों, इक्विटी इन्वेस्टरों या फिक्स्ड डिपॉजिट के रूप में पब्लिक से पैसे मांग सकती हैं। भारतीय रिजर्व बैंक इन कंपनियों को कॉर्पाेरेट एफडी के माध्यम से पैसे जुटाने की अनुमति देता है। अलग-अलग कंपनियों और अलग-अलग इन्वेस्टमेंट पीरियड के आधार पर इंट्रेस्ट रेट भी अलग-अलग होता है। आम तौर पर लंबे समय के लिए ज्यादा ब्याज दर होता है।

कितना सुरक्षित है कॉर्पाेरेट एफडी?

डिपॉजिट इंश्योरेंस और क्रेडिट गारंटी को-ऑपरेशन हर बैंक में 1 लाख रुपये तक आपके बैंक डिपॉजिट को सुरक्षित करता है। लेकिन कॉर्पाेरेट फिक्स्ड डिपॉजिट पर इस तरह का कोई प्रोटेक्शन नहीं रहता है। इसका मतलब यह नहीं है कि आपका इन्वेस्टमेंट जोिखम भरा है। फिर भी आपको किसी कंपनी के कॉर्पाेरेट एफडी में पैसे इन्वेस्ट करने से पहले उस कंपनी की क्रेडिट रेटिंग जरूर देख लेनी चाहिए। अच्छी क्रेडिट रेटिंग वाली कंपनी पर आप सबसे ज्यादा यकीन कर सकते हैं कि वह आपका पैसा और उसका इंट्रेस्ट आपको समय पर लौटा देगी।

ब्याज दर

एक असुरक्षित लोन होने के कारण जहां कॉर्पाेरेट या कंपनियां आपके निवेश के बदले में कोई ऐसेट या सिक्यॉरिटी नहीं देती हैं, इसलिए वे आपको ज्यादा इंट्रेस्ट रेट देती हैं। कॉर्पाेरेट फिक्स्ड डिपॉजिट के इंट्रेस्ट रेट बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट से थोड़े ज्यादा होते हैं। कॉर्पाेरेट एफडी में इन्वेस्ट करने पर सीनियर सिटीजंस को अपने इन्वेस्टमेंट पर 0-50» एक्स्ट्रा इंट्रेस्ट मिल सकता है।

किस कंपनी में निवेश करना चाहिए?

आईसीआरए (प्ब्त्।)ए केयर (ब्।त्म्)ए क्रिसिल (ब्त्प्ैप्स्)ए इत्यादि सहित कई रेटिंग एजेंसियां तरह-तरह के रिस्क पैरामीटरों के आधार पर कॉर्पाेरेट फिक्स्ड डिपॉजिट को रेटिंग प्रदान करती हैं। इन क्रेडिट रेटिंग को ।।।ए ।।ए ।।़ए ठए ब् इत्यादि जैसे अक्षरों के माध्यम से दिखा या जाता है। ।।। सबसे अच्छी सेफ्रटी रेटिंग है जिसके बाद ।।ए । और क्रिसिल बीबीबी (ब्त्प्ैप्स् ठठठ) का नंबर आता है। सबसे खराब रेटिंग है- क्रिसिलएल डी (ब्त्प्ैप्ैस् क्) जो डिफॉल्ट या चूक की अधिक संभावना का संकेत देती है। यह रेटिंग जितनी ज्यादा या अच्छी होती है आपका पैसा उतना ज्यादा सुरक्षित रहता है। रेटिंग जितनी खराब या कम होती है, आपका इन्वेस्टमेंट उतना ज्यादा रिस्की होता है।

कॉर्पाेरेट एफडी को त्ठप् रेग्युलेट करता है?

बैंकिंग रेग्युलेशन ऐक्ट, 1949 में कवर होनेवाला बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट आरबीआई के रेग्युलेशन के तहत आता है जबकि कॉर्पाेरेट फिक्स्ड डिपॉजिट को सिर्फ कंपनीज ऐक्ट 1956 के सेक्शन 58-। के अनुसार कंट्रोल किया जाता है।

कॉर्पाेरेट एफडी पर टैक्स बेनिफिट भी मिलता है?

कॉर्पाेरेट फिक्स्ड डिपॉजिट में इन्वेस्ट करने पर कोई टैक्स बेनिफिट नहीं मिलता है। इस पर मिलने वाले इंट्रेस्ट को आपके टोटल टैक्सेबल इनकम में जोड़ दिया जाता है और आपके इनकम टैक्स स्लैब के अनुसार उस पर टैक्स लिया जाता है। इस तरह आप देख सकते हैं कि सबसे ज्यादा टैक्स देने वाले 30» के सबसे ऊंचे टैक्स ब्रैकिट में आने वाले इन्वेस्टरों के लिए कॉर्पाेरेट फिक्स्ड डिपॉजिट में इन्वेस्ट करना फायदेमंद नहीं भी हो सकता है।

ध्यान देने लायक बातें

रिस्क या खतरा जितना ज्यादा होता है, रिवॉर्ड या लाभ भी उतना ज्यादा मिलता है। इसलिए यदि आप अपनी फाइनैंशल प्लानिंग के अनुसार एक कॉर्पाेरेट एफडी में इन्वेस्ट करने का एक्स्ट्रा रिस्क ले सकते हैं तो आपको अपने इन्वेस्टमेंट को सुरक्षित बनाने के लिए निम्नलिखित  काम करने चाहिएः

  • ज्यादा क्रेडिट रेटिंग वाली कंपनियों के कॉर्पाेरेट एफडी में इन्वेस्ट करें।
  • सार्वजनिक रूप से ट्रेड करने वाली कंपनियों में इन्वेस्ट करने से आपको उनके फाइनैंशल हेल्थ का पता लगाने में मदद मिलती है।
  • बहुत ज्यादा या हैरान कर देने वाले इंट्रेस्ट रेट ऑफर के जाल में न फंसें और सही या सच्चे इंट्रेस्ट रेट ऑफर करने वाली कंपनियों के कॉर्पाेरेट एफडी में इन्वेस्ट करें।
  • अच्छी तरह देख लें कि कंपनी की बैलेंस शीट में पिछले 2-3 साल का मुनाफा दिखाई दे रहा हो।   



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