IBC 2018: NPA की पहचान और उसके खिलाफ़ प्रावधाान सरकार का बड़ा कदम

2018-10-03 0

- गोपाल कृष्ण  अग्रवाल

दो दिवसीय इंडिया बैंकिंग कॉन्क्लेव दिल्ली में शुरू आयोजित हुआ। गोपाल कृष्ण अग्रवाल इंडिया बैंकिंग कॉन्क्लेव 2018 के चीफ ऑर्गनाइजर और एक अर्थशास्त्री हैं। वे नॉर्थ ईस्टर्न पॉवर कार्पाेरेशन और बैंक ऑफ बड़ौदा के इंडिपेंडेंट डायरेक्टर भी हैं। गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने बैंकिंग सेक्टर की तमाम समस्याओं पर बातचीत की।

सवाल- इंडिया बैंकिंग कॉन्क्लेव का आयोजन 23, 24 अगस्त को होने जा रहा है जिसमें आप महत्वपूर्ण रोल निभा रहे हैं। बैंकिंग सेक्टर पहले ही काफी विवादों में रहा है और ऐसे में इंडिया बैंकिंग कॉन्क्लेव के आयोजन का उद्देश्य क्या हैं?

गोपाल कृष्ण अग्रवाल- पीएम मोदी के सत्ता संभालने के बाद बैंकिंग सेक्टर में बदलाव को लेकर काफी चर्चाएं होती रही हैं। पीएम मोदी ने बैंकों के भारी एनपीए पर पहले भी कहा था ये सब उनके कार्यकाल के दौरान नहीं हुआ है। बैंकों के एनपीए में काफी बढ़ोत्तरी देखी  गई है जोकि बैंकों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। पीएम मोदी ने कहा था कि ये एनपीए 2014 के पहले भी सिस्टम में थे लेकिन इनकी पहचान नहीं हो सकी थी। मोदी सरकार ने अब इसको हल करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। इसलिए पहला कदम समस्या की पहचान करना था ताकि उसका समाधान किया जा सके। सरकार ने एनपीए की पहचान की और अब उनके खिलाफ कदम उठाए जा रहे हैं। सरकार ने साढ़े 4 सालों में कई कदम उठाए हैं इन पर लगाम लगाने के लिए। इसके पहले इनकी पहचान नहीं हो पाती थी और लोन रिसाइकल होते रहते थे। जिसके कारण ये समस्या बढ़ती गई और एक विकराल रूप ले लिया। बैंकों का पैसा लेकर भागने वालों पर या तो कर्ज चुकाने का दबाव बनाया जा रहा है या फिर, उनकी संपत्ति जब्त की जा रही है। ये सरकार द्वारा उठाया जाने वाला बड़ा कदम है जिससे एनपीए में कमी आएगी।

सवाल- सरकार ने दो बड़े फैसले किए- नोटबंदी और GST बैंकिंग पर इसका क्या प्रभाव पड़ा है?

गोपाल कृष्ण अग्रवाल- नोटबंदी और ळैज् लागू होने से बैंकों पर सीधे तौर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन जो कुछ किया जा रहा है इससे सिस्टम पारदर्शी बनेगा। सभी को आज एक बनाए गए नियमों के मुताबिक एक बैंकिंग चैनल के जरिए आना होता है जिसके कारण सरकार उन पर नजर रऽ पाती है और टैक्स चोरी पर लगाम लग रही है। अगर फिर भी कोई टैक्स चोरी करना चाहे, सरकार उसकी पहचान कर उसको टैक्स चुकाने को कह सकती है, जोकि महत्वपूर्ण कदम है। नोटबंदी का दूसरा लाभ है कि इसके जरिए अर्थव्यवस्था का डिजिटलाइजेशन होने लगा है जोकि बैंकिंग सेक्टरों (मोबाइल बैंकिग, डिजिटल पेमेंट) के लिए भी फायदेमंद साबित हो रहा है

सवाल- बैंकिंग सेक्टर में हाई-डेब्ट-टू-जीडीपी का क्या रोल है?

गोपाल कृष्ण अग्रवाल- हाल ही में सीनियर बीजेपी लीडर और कैबिनेट मंत्री अरुण जेटली इस पर बात की थी जब पूर्व वित्तमंत्री चिदंबरम ने मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना की थी। जेटली लिऽते हैं कि यूपीए के समय प्राइवेट कैपिटल एनडीए की तुलना में काफी ज्यादा था और ये शायद इसलिए कि उस दौरान कार्पाेरेट को बड़ी राशि लोन के रूप में दी गई थी। साल 2009 से 2013 के बीच हाई-डेब्ट-टू-जीडीपी काफी ज्यादा है जोकि ये बताता है कि बैंकों ने बिना जांच पड़ताल के ही बड़े-बड़े कार्पाेरेट को लोन दे दिया। इस प्रकार के बैड लोन और एनपीए ने काफी प्रभाव डाला। सरकार और जनता का पैसा कार्पाेरेट के बिजनेस के लिए दिया गया जोकि सही तरीका था और इसका बुरा प्रभाव पड़ा।

सवाल- रोबोट बैंकिंग और IPod बैंकिंग की बातें भी हो रही हैं, भारत के नजरिए से ये तकनीक कितनी प्रभावी होगी?

गोपाल कृष्ण अग्रवाल- अगर देखें  तो BHIM ऐप और API नंबर ने मोबाइल बैंकिंग में काफी मदद की है। इस कारण लोगों को रोज बैंक जाकर पैसे जमा करने और निकालने से बचने में मदद मिली है। अब कोई भी आसानी से अपने मोबाइल से बैंकिंग कर सकता है। र#99 एक फिनटेक प्रोडक्ट है जो पेमेंट में मदद करता है व्हाट्सऐप भी बैंकिंग की तरफ बड़ा कदम बढ़ा रहा है। सरकार भी पोस्टल बैंकिंग की तरफ कदम बढ़ा रही है और कई पेमेंट बैंक भी आगे आ रहे हैं। बैंकिग और लोन पर नजर रऽने का ये एक बेहतर तरीका साबित हो रहा है। ये सभी बैंकिंग में फिनटेक के उदाहरण हैं। बैंकिंग क्षेत्र में इस कारण काफी बदलाव आ रहा है और सेंट्रलाइज्ड कंट्रोल में भी काफी आसानी हो रही है।

सवाल- बैंकिंग सेक्टर में निजीकरण और विलय पर आपका क्या कहना है?

गोपाल कृष्ण अग्रवाल- इस पर सरकार को फैसला लेना है। कुछ बैंकों की हालत अच्छी नहीं है जबकि कुछ बेहतर स्थिति में हैं। कई क्षेत्रीय और ग्रामीण बैंक हैं जो अच्छा नहीं कर रहे हैं लेकिन कुछ अन्य काफी बेहतर कार्य कर रहे हैं। इसलिए इसका फैसला सरकार को ही लेना है कि क्या वो नुकसान में चल रहे छोटे बैंकों का विलय एसबीआई जैसे बड़े बैंकों के साथ करना चाहते हैं। दूसरी राय ये भी है कि बैंकिंग सेक्टर में सरकार का क्या काम है? सरकार को इनका निजीकरण उनके हाथों में छोड़ देना चाहिए। सरकार को शासन तक केंद्रित रहना चाहिए। लेकिन आज के वत्तफ़ में नुकसान में चल रहे बैंकों को खरीदना कोई नहीं चाहता है। इन तमाम मुद्दों पर अंतिम फैसला सरकार को ही लेना है।

सवाल- इंस्टिटड्ढूशनल फाइनेंसिंग और यूनिवर्सल बैंकिग में स्पष्ट विभाजन था, आज सभी बैंक हर तरीके आजमा रहे हैं, क्या इनसे बैंकिग उद्योग को लाभ मिल रहा है?

गोपाल कृष्ण अग्रवाल- इसके पहले IDBI IFCI और ICICI जैसे फाइनेंसियल इंस्टिटड्ढूशन्स हमारे पास थे। सरकार इनको एक पूंजी देती थी और कुछ वैश्विक एजेंसियां इनको लॉंग टर्म फंड दिया करती थी। उनके कर्ज और पुनर्भुगतान के बीच सिंक्रनाइजेशन था, जो समय के साथ चलता जा रहा था। दूसरी चीज, कुछ ऐसे संस्थान थे जो राज्य विकास वित्तीय संस्थान थे, फिर क्षेत्रीय विकास वित्तीय संस्थान विशेष क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे। उनकी मांग और आपूर्ति बड़ी थी लेकिन वो फायदेमंद नहीं थे इसलिए कई यूनिवर्सल बैंकिंग की तरफ शिफ्रट हो गए। वर्तमान में अभी इंस्टिटड्ढूशनल फाइनेंसिंग में कोई गहराई नजर नहीं आती है। इसका तकनीकी पक्ष है कि बिजली, सड़क निर्माण या बांध निर्माण आदि जैसे विशेष फील्ड में कैसे वे क्षेत्र-विशिष्ट परियोजनाओं को वित्त पोषित कर रहे हैं, उन्हें पता है कि उनका मूल्यांकन कैसे किया जाए। कई लोग कह रहे हैं कि हमें विकासशील वित्तीय संस्थानों की जरूरत है और ये अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में बड़ा रोल निभा सकते हैं।

सवाल- 2030 में बैंकिग सेक्टर का क्या रोल होगा?

गोपाल कृष्ण अग्रवाल- बैंकिग सेक्टर देश के आर्थिक विकास के लिहाज से काफी अहम रहा है। यह व्यत्तिफ़ से छोटी से छोटी सेविंग को एकत्र करता है और छोटे निवेशक, बड़े औद्योगिक विकास और वित्तीय संरचना और यहां तक कि कॉर्पाेरेट घरानों की भी मदद करता है। ये सब वो लोन या कर्ज के रूप में करता है। 2030 के लिए कई चीजें है। सामजिक सुरक्षा की सरकारी योजनाओं को लागू करने में इनका बड़ा योगदान है। भारत में अब कई विदेशी बैंक आ रहे हैं और ये पेमेंट बैंकों के एक चुनौती भी है। भारत सरकार पोस्टल बैंकिंग भी लेकर आ रही है। नई तकनीक आधारित सॉफ्रटवेर, मोबाइल बैंकिग आदि लोगों की मदद कर रहे हैं। एसबीआई और पीएनबी के देशभर में 5000 से अधिक ब्रांच हैं। भविष्य में इनको इतने शाखाओं की जरूरत नहीं होगी। आने वाले दिनों में बैंकिग का क्या स्वरुप होगा, इसके लिए पूंजी कहां से आएगी, क्या सरकार इनकी मदद करेगी, इसको देखते हुए एक रोडमैप तैयार किया जाएगा। 


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