रिश्तों को कोई नाम न दें खत्म होने लगती है गर्माहट

2018-10-04 0

रिश्ता कोई भी हो उसमें खटपट और टकराहट होती ही है। खुन के रिश्ते भी विपरीत परिस्थितियों में बेहद कमजोर हो जाते हैं। मुश्किल तब होती है जब ये खटपट या मतभेद, मनभेद में बदल जाता है फिर रिश्ते के दरमियां अहम और स्वार्थ की दीवार आड़े आ जाती है। ऐसी अवस्था में किसी भी तीसरे व्यत्तिफ़ का हस्तक्षेप बेहद खतरनाक साबित होने लगता है।

यदि हम खुन के रिश्तों की बात छोड़ दें और स्वयं के द्वारा बनाए गए संबंधों की बात करें तो इसमें कुछ चीजें बेहद कॉमन देखी  गयी हैं। सबसे पहला तो हम हर संबंध को कोई न कोई नाम जरूर देते हैं। बेनाम रिश्ते हमें स्वीकार नहीं हो पाते। दूसरी बात जो बेहद सामान्य है वह है कि हर रिश्ते से यदि वह हमने खुद बनाए हैं तो वहां अपेक्षा यानि एक्सपेक्टेशन भी जरूर करते हैं। बिना लेन-देन या अपेक्षाओं के भी कोई रिश्ता हो सकता है, ये बात हमारे ख्यालों से बाहर की चीज है।

कोई भी चिंगारी खत्म कर देती है रिश्ता

ये अनुभव ज्यादातर को हुआ होगा कि रिश्ता कैसा भी हो, यदि वह खून का रिश्ता नहीं तो उसमें किसी भी थर्ड की एंट्री संबंध में पहले से अधिक कड़वाहट घोल देती है। अगर कहीं थोड़ी-बहुत गलतफहमी रही हो तो तीसरा व्यत्तिफ़ उसका फायदा उठाते हुए ऐसी गत बना देता है कि दुबारा रिश्ते का संभलना मुश्किल ही होता है और गफलत ऐसी देखिए कि हम खुद ही ऐसे किसी तीसरे की एंट्री को बढ़ावा देते हैं और दिल के गुबार उसके सामने जरूर निकालते हैं। कहा गया है कि दो गहरे फ्रेंड्स जब दुश्मन बनते हैं तो स्वयं ही नष्ट होने लगते हैं। ऐसे में किसी थर्ड की एंट्री तो बेहद विनाशकारी साबित होती है।

किसी नाम में बंधते हैं तो रिश्तों का आकर्षण खत्म होने लगता है

अक्सर ये होता है कि हम जिस भी संबंध में जुड़ते हैं उसे कोई न कोई नाम देना चाहते हैं। जैसे दोस्त, प्रेमी, ब्वॉयफ्रेंड, गर्लफ्रेंड, आदि-आदि और फिर उस रिश्ते से कुछ खास अपेक्षाएं भी होने लगती हैं। ऐसे में ज्यादातर हमारी उम्मीदें तो बढ़ती हैं किंतु उनके पूरी होने की संभावनाएं कमतर होती जाती हैं। आप अनुभव करेंगे कि जब तक वह रिश्ता बिना किसी नाम का था तब तक उसका आकर्षण अपने चरम पर था किंतु जैसे ही आपने उसे कोई नाम दिया और अपने संबंध को मजबूती देने की कोशिश वैसे ही वह खत्म सा होने लगता है, उसका आकर्षण, परस्पर लगाव में कमी आने लगती है। 

 कुछ लोग पूरी तरह यूज करते हैं कुछ उतना ही प्रतिदान देते हैं यूज करने के बावजूद - दोनों में बड़ा फर्क है

कुछ लोग बेहद समझदार होते हैं। उन्हें पता होता है कि किस रिश्ते से कितनी उम्मीद पालनी चाहिए और बदले में कितना प्रतिदान या समर्पण दिया जाना चाहिए। ऐसे लोग अक्सर ताउम्र अपने रिश्ते निभा जाते हैं। भले ही एक-दूसरे से उन्हें कितनी भी शिकायतें हों लेकिन कभी भी ऐसे हालात नहीं बनते कि एकदम से खत्म होने वाली सिचुएशन आ जाए। हालांकि ऐसी समझदारी की उम्मीद हम कितने लोगों से कर सकते हैं?

अंतिम विकल्प नहीं है अलगाव

ख्याल रहे कि कभी भी अलगाव को प्राइमरी विकल्प के रूप में नहीं आजमाना चाहिए। हां, इसके लिए सबसे अच्छा तरीका तो ये है कि आप अपने रिश्तों की पुनर्समीक्षा करें, सोचें कि गलती कहां हो रही है, ये भी विचार करें कि आपने कहीं अत्याधिक अपेक्षाएं तो नहीं पाल रखी  हैं। यदि आपको ऐसा कुछ भी दिखाई देता है तो वापस कदम खीचे, रिश्ते को परिभाषित करें, उसे पहले की तरह बेनाम करें, दुबारा जुड़ें और फिर बिना किसी एक्सपेक्टेशन के उसे जीने की कोशिश करें---------बिल्कुल पहले की तरह जब आप रिश्ते की ओर कदम तो बढ़ा रहे थे लेकिन वहां सिर्फ

आकर्षण था-----------जुड़ने की ललक थी और अपेक्षाएं नहीं के बराबर थीं---------



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