हिंदी के सफ़र का अहम पड़ाव - गिरीश्वर मिश्र

2018-10-05 0

जब चित्त प्रसन्न रहता है, तो सोचने-विचारने और कार्य करने की प्रवृत्ति को बल मिलता है और अच्छे विचार उपजें, इसमें अच्छा परिवेश बड़ा सहायक होता है।

जब चित्त प्रसन्न रहता है, तो सोचने-विचारने और कार्य करने की प्रवृत्ति को बल मिलता है और अच्छे विचार उपजें, इसमें अच्छा परिवेश बड़ा सहायक होता है। इसलिए आंतरिक शत्तिफ़ और क्षमताओं से भरपूर हिंदी के सम्मुख उपस्थित चुनौतियों को समझने-बूझने और पार पाने हेतु युत्तिफ़यों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तजबीज के लिए जब किसी स्थल का चुनाव करना था, तो मॉरीशस कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण विकल्प था। सांस्कृतिक मूल को साझा करते हुए दोनों देश एक-दूसरे के काफी निकट हैं। अतः 2015 में भोपाल में हुए दसवें सम्मेलन से उपजी ऊर्जा और सक्रियता को गति देने के लिए ग्यारहवें विश्व हिंदी सम्मेलन के लिए मॉरीशस का चयन एक स्वाभाविक और फलदायी फैसला था।

ग्यारहवें विश्व हिंदी सम्मेलन के लिए हिंदी विषयक चिंतन को संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में स्थापित किया गया और ‘हिंदी विश्व और भारतीय संस्कृति’ को केंद्रीय विषय रखा गया। 18 से 20 अगस्त 2018 तक यह भव्य आयोजन राजधानी पोर्ट लुई के विवेकानंद अंतरराष्ट्रीय केंद्र में संपन्न हुआ। मॉरीशस  एक छोटा और खू बसूरत देश है, जहां प्रकृति उदार है। चारों ओर समुद्र और बीच में नाना प्रकार की वनस्पतियों, लताओं, पुष्पों और फलदार वृक्षों से हरा-भरा लघु आकार का यह देश आज अनेक संस्कृतियों का संगम है। यहां बहुलता उन भारतवंशियों की है, जो कभी शर्तबंदी प्रथा के तहत मजदूर बनकर आए थे। उन्होंने अपने खून-पसीने से कमाकर पथरीली बंजर धरती पर स्वर्ग उतारा। आज वहां उनकी चौथी-पांचवीं पीढ़ी रह रही है। भारत से हजारों मील दूर हिंद महासागर के बीच बसे इस द्वीप देश में एक लघु भारत अंगड़ाई ले रहा है।



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यह आयोजन सही अर्थों में एक विश्व सम्मेलन रहा, जिसके केंद्र में हिंदी और भारतीय संस्कृति थी। भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के निधन से सबके मन में विराट वट वृक्ष के न रहने से उपजी चिंता और विकलता थी। सबके मन में हिंदी को अंतरराष्ट्रीय मंच देने वाले अटल जी कवि, ओजस्वी वत्तफ़ा और हिंदी के एक समर्पित योद्धा के रूप में बसे हैं। सम्मेलन में यह गंभीरता से अनुभव किया गया कि हिंदी एक बड़े समाज की भाषा है। उसका एक वृहत्तर रूप भी है, जिसमें न केवल भारत की लोक भाषाएं सम्मिलित हैं, बल्कि भारत के बाहर त्रिनिदाद, मॉरीशस, सूरीनाम, दक्षिण अफ्रीका, फिजी और गयाना जैसे देशों में हिंदी के जो विविध रूप विकसित हो रहे हैं, वे भी शामिल हैं।

यह सम्मेलन हिंदी की सामर्थ्य और संभावना को लेकर आशा बंधाता है। सम्मेलन में कई संकल्प लिए गए। बहुत से संकल्प नीतिगत पहल की अपेक्षा रखते हैं। कार्य के स्तर पर कुछ अहम प्रस्ताव ये थेः सांस्कृतिक अवध ग्राम की स्थापना, अटल बिहारी वाजपेयी पत्रकारिता विश्वविद्यालय की स्थापना, लोक साहित्य तथा बाल साहित्य का संकलन और प्रकाशन, विभिन्न आईटी समाधानों को हिंदी में उपलब्ध कराना, हिंदी की प्रामाणिकता के लिए ‘निकष’ प्रणाली का विकास, देवनागरी लिपि का प्रसार, इंडिया की जगह ‘भारत’ का उपयोग, फिल्म सहित सभी संचार माध्यमों तथा शिक्षण-प्रशिक्षण में विभिन्न स्तरों पर भारतीय संस्कृति को यथोचित स्थान दिलाना, विश्व हिंदी सचिवालय को समर्थ बनाना और उसकी शाखाएं विश्व के अन्य भागों में स्थापित करना। अगले सम्मेलन के लिए फिजी का प्रस्ताव किया गया, जहां हिंदी राजभाषा के रूप में स्वीकृत है। मॉरीशस का यह विश्व सम्मेलन विश्व भाषा बनने की दिशा में हिंदी का एक प्रमुख पड़ाव साबित हुआ।  


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