मध्य प्रदेश: शिवराज के शासन में कौड़ी के भाव लहसुन बेच तबाह हो रहे किसान
आलम यह है कि कई जगहों पर किसानों को लहसुन एक रुपये प्रति किलो की कीमत में बेचना पड़ रहा है। कमोवेश ये हालात उन सभी जगहों पर है जहां किसानों ने बेहतर मुनाफे की उम्मीद में लहसुन बोया था। शिव पाटीदार सीहोर में किसान हैं और उन्होंने अपनी जमीन पर लहसुन लगाया था। लेकिन अब हालात ये हो गई है कि वो अपनी लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं।
क्या है स्थिति?
शिव पाटीदार ने बताया, ‘‘मैंने लहसुन का बीज खरीदने में ही 27,000 रुपए खर्च किए थे। उसके बाद उसे चौपने की मजदूरी गई 5,000 रुपए और 3,000 रुपए की खाद लगी। कुल मिलाकर 35,000 हजार रुपए का खर्च आया और अब मेरा माल बिक रहा है कुल 6,000 में। इसका मतलब है कि तकरीबन 29,000 रुपए का मुझे घाटा हो रहा है।’’
ऐसा ही हाल कई अन्य किसानों भी है।
लहसुन की स्थिति ये हो गई है कि मंदसौर की शामगढ़ मंडी में एक किसान को लहसुन 1 रुपए किलो में बेचना पड़ा। एक रुपए किलो की वजह से बहुत से किसानों उसे फेंकना ही बेहतर समझा क्योंकि मंडी ले जाकर उसे बेचने में उनके और भी ज्यादा पैसे लग जाते।
लहसुन की इतनी खराब कीमत को लेकर किसानों ने कई जगह प्रदर्शन भी किए हैं ताकि सरकार से उन्हें कुछ मदद मिल सके।
क्यों गिरे लहसुन के दाम?
जानकारी के मुताबिक, नीमच में इस साल जनवरी में लहसुन 60 से लेकर 80 किलो तक बिका। लेकिन इसके बाद इसके भाव गिरने का सिलसिला जो शुरू हुआ तो स्थिति यहां तक आ पहुंची। लहसुन के इस हाल में पहुंचने की मुख्य वजह भावांतर योजना को बताया जा रहा है। इस योजना के तहत शिवराज सिंह चौहान सरकार ने फैसा किया था कि समर्थन मूल्य के नीचे बेचने पर राज्य सरकार किसानों को बाजार भाव और एमएसपी के बीच के अंतर को मुआवजे के तौर पर देगी। लेकिन लहसुन के लिए सरकर ने 800 रुपए प्रति क्विंटल का रेट फिक्स कर रखा है।
आरोप है कि कारोबारी लहसुन को बहुत कम कीमत पर खरीद रहे हैं जिसकी वजह से किसानों को भारी नुकसान हो रहा है।
स्थानीय किसान यूनियन के केदार सिरोही ने कहा, ‘‘बहुत ज्यादा स्थिति खराब है, यह बात बिल्कुल सही है कि लहसुन एक रुपए किलो में बिक रहा है। किसान फेंकने को भी तैयार है। सरकार की जो नीति है वो पूरी तरह से गुमराह करने वाली है। भावांतर जब लाए थे तो सोयाबीन का भी यही हाल हुआ था।’’
‘लहसुन बोने वाले किसान रो रहे हैं’
मध्य प्रदेश लहसुन उत्पादन को लेकर देश में अव्वल राज्यों में शामिल है। मालवा को लहसुन उत्पादन के मामले में ‘गढ़’ माना जाता है, लेकिन लहसुन उत्पादन करने वाले किसान अब रो रहे हैं। प्रदेश में 20 जिले ऐसे हैं जहां किसान बड़ी तादाद में लहसुन का उत्पादन करते हैं। प्रदेश में वैसे ही किसानों की स्थिति अच्छी नहीं है। पहले प्याज, फिर टमाटर और अब लहसुन के चलत किसानों के पास कुछ भी नहीं बचा है। यही वजह है कि पिछले 10 दिनों में 6 किसानों ने मौत को गले लगाया है।
वहीं सरकार का मानना है कि इस तरह की सिथति पैदा होती रहती है। लहसुन के भाव काफी ऊपर चले जाते हैं तो कभी नीचे आ जाते हैं।
18 लाख मैट्रिक टन पैदावार
किसान कल्याण राज्यमंत्री बालकृष्ण पाटीदार कहते हैं, ‘‘सरकार ने किसानों के हित में नीति बनाई है लहसुन को कर सरकर ने फैसला भी कर लिया है कि बाजार में वो किसी भी कीमत में बिके, सरकार 800 रुपये प्रति क्विंटल किसान को देगी। वैसे भी यह कोई स्थायी भाव नहीं है। कभी 6000 रुपए बिकता है तो कभी 5000 रुपए।’’
प्रदेश में लहसुन का कुल रकबा 1.46 लाख हेक्टेयर है और उत्पादन लगभग 18 लाख मीट्रिक टन हुआ है।
किसानों के मुद्दों पर बात करने वाले नेताओं का कहना है कि ‘सरकार की भावांतर योजना का फायदा सबसे ज्यादा व्यापारी उठा रहे हैं। भावांतर योजना में खरीद होने पर व्यापारी माल को बहुत कम भाव में खरीदते हैं। बाद में व्यापारी भारी मुनाफा कमाएंगे।’’