ईरान का साथ अमरीका से बगावत---
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के एक संबोधान में कहा है कि दुनिया के सभी देश ईरान से संबंधा तोड़ दें।
अमरीका ने ईरान पर एक बार फिर कठिन आर्थिक प्रतिबंधों को लगाते हुए
कहा कि जब तक ईरान अपने आक्रामक रुख में परिवर्तन नहीं करेगा तब तक ये प्रतिबंध
जारी रहेंगे। अमरीका इस साल की शुरुआत में ईरान समेत छह देशों के बीच हुई परमाणु
संधि से बाहर निकल आया था। लेकिन इस समझौते में शामिल दूसरे देश अब भी ईरान के साथ
आर्थिक संबंधों को बरकरार रखते हुए इस समझौते को जिंदा रखने की कोशिशें कर रहे
हैं।
ऐसे में जो कंपनियां ईरान के साथ अभी भी काम करने की इच्छुक हैं उनके
सामने दो विकल्प हैं- पहला विकल्प ये है कि ईरान में व्यापार के बदले अमरीकी
प्रतिबंधों का उल्लंघन करने की वजह से गंभीर जुर्माने का जोिखम उठाया जाए। दूसरा
विकल्प ये है कि ईरान जैसे उभरते हुए संभावनाओं वाले बाजार से बाहर निकलकर वहां
व्यापार करने से होने वाले संभावित लाभ से मुंह मोड़ लिया जाए।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि इस सबके बाद ईरान के साथ व्यापार कौन कर
रहा है और कौन नहीं?
परमाणु समझौते के परिणाम
ईरान और छह विश्व शत्तिफ़यों के बीच साल 2015 में परमाणु समझौता हुआ था। इस समझौते में अमरीका, रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्ररांस और जर्मनी शामिल थे। समझौते के बाद इन देशों ने तेल, व्यापार और बैंकिंग क्षेत्रें के साथ-साथ पिस्ता और कालीन जैसे सामानों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों को हटा दिया था।इसके बदले में, ईरान अपनी परमाणु गतिविधियों को सीमित करने पर सहमत हो गया। ईरान दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातकों में से एक है। इसलिए ये प्रतिबंध हटने से ईरान की अर्थव्यवस्था को एक अच्छी बढ़त मिली। इसके बाद अलग-अलग औद्योगिक क्षेत्रें ने ईरान के साथ व्यापारिक चैनलों को फिर से खोल दिया। इनमें स्वास्थ्य सेवा देने वाली विदेशी कंपनियां, कार निर्माता, वित्तीय सेवा देने वाली कंपनियां और विमानन कंपनियों ने ईरान में अवसरों की खोज शुरू कर दी। इनमें जर्मनी की फोक्सवैगन और फ्रांस की रेनॉल्ट जैसी कंपनी शामिल थी। ऊर्जा क्षेत्र की एक बड़ी फ्रांसीसी कंपनी टोटल ने ईरान के तेल क्षेत्र को विकसित करने के लिए अरबों डॉलर का सौदा हासिल किया।
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अमरीका ने लगाए नए प्रतिबंध
इसके साथ ही जर्मन कंपनी सीमेंस ने ईरान के रेलवे नेटवर्क को अपग्रेड करने के लिए अनुबंध हासिल किया। हालांकि, मई 2018 में अमरीका के इस परमाणु डील से बाहर निकलने के बाद नए आर्थिक गठजोड़ संदेह के घेरे में आ गए थे। लेकिन नए प्रतिबंधों की घोषणा के साथ, राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि ईरान के साथ व्यापार करने वाला ‘अमरीका के साथ व्यापार नहीं कर सकेगा।’ अमरीकी सरकार ने इन नए प्रतिबंधों से ईरान के तेल, शिपिंग, बैंकिंग संस्थानों, सोने और कीमती धातु निर्यात क्षेत्र को निशाने पर लिया है।
कंपनियों के सामने क्या हैं विकल्प?
अमरीकी जुर्माने के जोखिम की वजह से कुछ कंपनियों ने ईरान में अपनी
परियोजनाओं को रोक दिया है और वहीं कुछ कंपनियां पूरी तरह से ईरान से बाहर आ गई
हैं। फ्रांसीसी कंपनी टोटल ने घोषणा की है कि वह ईरान और चीनी कंपनी सीएनपीसी
दोनों के साथ किए गए अरब डॉलर के सौदे से बाहर हो जाएगी। इस साझेदारी के तहत एक
विशाल प्राकृतिक गैस क्षेत्र को विकसित किया जाना था। शिपिंग कंपनी मेर्स्क ने
घोषणा की कि वह किसी भी नए अनुबंध पर हस्ताक्षर नहीं करेगी।
रेनॉल्ट ईरान में एक नया संयंत्र बनाने के लिए तैयार हो गया था।
लेकिन नए प्रतिबंधों के बाद कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों ने विश्लेषकों से कहा है,
‘हम
अमरीकी प्रतिबंधों का पूरी तरह से पालन करते हैं और इस बात की संभावना है कि हमारा
आगे का काम रोक दिया जाए।’
जनरल इलेक्ट्रिक (जीई) और इसकी सहायक कंपनी बेकर ह्यूजेस ने ईरानी
कंपनियों को तेल और गैस व्यापार से जुड़े बुनियादी ढांचे के उत्पादों को उपलब्ध
कराने की डील की है। लेकिन उन्होंने भी कहा कि वे अमरीकी कानून का पालन करते हुए
अपना संचालन बंद कर देंगे। बोइंग बीए ने दो ईरानी एयरलाइंस के साथ विमानों की
बिक्री के लिए अनुबंध किया था। लेकिन प्रतिबंधों के बाद बोइंग ने कहा है कि
प्रतिबंधों के सामने आने के बाद वह ईरान को विमान नहीं देगा।
भारत की ऑयल रिफाइनिंग कंपनी रिलायंस ने ईरान से कच्चा तेल लेना बंद
कर दिया है। वहीं, सीमेंस ने कहा है कि अब यह ईरान से आने वाले नए ऑर्डर्स को स्वीकार
नहीं करेगा।
क्या है यूरोपीय संघ की प्रतिक्रिया?
यूरोपीय संघ एक ऐसा तंत्र बनाने की कोशिश कर रहा है जिसकी मदद से
अमरीकी कानून का उल्लंघन किए बिना ईरान के साथ व्यापार किया जा सके। इससे तेल और
दूसरे तमाम व्यापारिक समझौते बच सकते हैं। यूरोपीय संघ की विदेश नीति विभाग की
प्रमुख फेडेरिया मोगेरिनी ने संयुत्तफ़ राष्ट्र संघ में ईरान परमाणु डील के पांच
दूसरे सदस्य देशों के साथ मिलकर अपनी इस योजना के बारे में बताया है।
एक बयान में कहा गया है कि वे ‘ईरान के साथ वैध व्यापार करने के लिए
अपने आर्थिक ऑपरेटरों की आजादी की रक्षा’ करने के लिए दृढ़ हैं। इसके साथ ही एक
‘अवरोध कानून’ यूरोपीय संघ में स्थित कंपनियों को अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से
होने वाली क्षतिपूर्ति को हासिल करने में सक्षम बनाता है। लेकिन यूरोपीय सरकारों
के सामने अपनी कंपनियों को ईरान में व्यवसाय करने के लिए तैयार करना भी एक चुनौती
जैसा है।
बर्मिर्ंघम विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के प्रोफेसर स्कॉट लुकास कहते हैं कि इन प्रतिबंधों को कुछ इस तरह लिखा गया है कि अगर कोई भी कंपनी ईरान के साथ व्यापार करती है और वह अमरीका से किसी भी तरह जुड़ी हुई है, तो उसे आर्थिक दंड का सामना करना पड़ेगा। वो कहते हैं कि अमरीकी प्रभुत्व वाली आर्थिक दुनिया में ये प्रतिबंध कई कंपनियों के लिए जोखिम पैदा करते हैं।
हालांकि, ऐसे संकेत भी मिल रहे हैं कि कुछ कंपनियां कुछ समय के लिए ईरान के
साथ अपने व्यापारिक करारों को जारी रखेंगीं। चीन अमरीकी दबाव के बावजूद ईरानी तेल
को आयात करना जारी रख सकता है।
प्रोफेसर लुकास कहते हैं, ईरान के लिए चीन में कार्यरत और
पश्चिमी वित्तीय प्रणाली के बाहर काम करने वाली कंपनियों के साथ व्यापार करना आसान
होगा क्योंकि वह डॉलर के अलावा दूसरी मुद्रा में लेनदेन कर सकते हैं। लेकिन चीनी
युआन या रूसी रूबल जैसी मुद्राओं को डॉलर की तुलना में स्थानांतरित करना बहुत
मुश्किल है।
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