‘आर्थिक गलियारा योजना’ बनी चीन-पाक के गले की हड्डी

2018-11-01 0

चीन और पाक के लिए सी-पी-ई-सी- (चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) गले की हड्डी  बन गई है। अब ये दोनों देश अपनी इस परियोजना पर पछता रहे हैं और इससे बाहर आने के लिए दिन-प्रतिदिन नए हथकंडे अपना रहे हैं, नए ख्वाब दिखाए जा रहे हैं, तीसरे देशों को लालच दिया जा रहा है, लाभ की परियोजना बताने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं, मगर स्थिति यह है कि सी-पी-ई-सी- परियोजना को लेकर कोई तीसरा देश न तो रुचि दिखा रहा है और न ही चीन-पाकिस्तान की इस परियोजना को लाभ की परियोजना समझने के लिए तैयार हैं।

तीसरे देशों की समझ यह है कि चीन का उपनिवेशवाद पाकिस्तान में ही दफन हो जाएगा। चीन ने अपने पड़ोसियों को धमकाने और उनके आर्थिक संसाधनों पर कब्जा जमाने की जो मानसिकताएं पाल रखी  हैं, वे सभी पाकिस्तान के अंदर में दफन होने वाली हैं। यह भी प्रश्न है कि जो परियोजना खुद विवादास्पद हो, अत्यंत खर्चीली हो गई हो, अलाभकारी बन गई हो, जिसकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है, जिसको लेकर हिंसा की बड़ी-बड़ी घटनाएं घटती हैं, जनविरोध की स्थिति उत्पन्न है, राजनीतिक झगड़ा भी खड़ा है, उस परियोजना को तीसरे देश लाभकारी और हितकारी कैसे समझेंगे

नए प्रधानमंत्री इमरान खान की भी यह समझदारी बन गई है कि सी-पी-ई-सी- को लेकर आंतरिक विसंगतियां दूर नहीं की जाएंगी, बलूचिस्तान की आबादी की आशंकाएं दूर नहीं की जा सकती हैं, वहां की आबादी को लाभ का हिस्सेदार नहीं बनाया जाएगा तो फिर यह परियोजना आत्मघाती साबित हो सकती है।

बलूचिस्तान की आबादी को खुश करने के लिए नए सिरे से ख्वाब दिखाए गए हैं, फिर भी उनका जनविरोध समाप्त नहीं हो रहा है। चीन चाहता है कि पाकिस्तान की नई सरकार परियोजना को लेकर आंतरिक विसंगतियों का समाधान करे और उसमें लगे चीनी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। परियोजना की सुरक्षा में पाकिस्तान सेना के 15,000 जवान लगे हुए हैं। इमरान खान सरकार ने एक बयान दिया था कि सी-पी-ई-सी- से सऊदी अरब को जोड़ा जाएगा, पर सऊदी अरब ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। चीन चाहता था कि इस परियोजना के साथ ईरान भी जुड़े पर ईरान ने पाकिस्तान की आतंकवादी नीति के कारण जुडने से इंकार कर दिया। ईरान में घटने वाली आतंकवादी घटनाओं में पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों की हिस्सेदारी से ईरान चिढ़ा हुआ है। वह पाकिस्तान के साथ कोई भी विकासात्मक कूटनीति को हितकारी नहीं मानता है।


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चीन ने सी-पी-ई-सी- परियोजना को लेकर दुनिया को चकित कर दिया था, दुनिया भी भ्रमित हो गई थी। वह यह समझ बैठी थी कि यह परियोजना सही में विश्व के लिए लाभकारी है। चीन एक ऐसा आर्थिक गलियारा बनाने जा रहा है जो अमरीका और यूरोप को न केवल आईना दिखाएगा बल्कि उनसे भी बड़ी शत्तिफ़ बन जाएगा। चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग ने 2013 में इस परियोजना की घोषणा की थी। परियोजना की घोषणा करते हुए जिनपिंग ने कहा था कि पाकिस्तान के लिए यह परियोजना गेम चेंजर साबित होगी, दुनिया के लिए पाकिस्तान अब विकसित देश के रूप में सामने आएगा, उसकी आर्थिक छवि बदल जाएगी, वह एशिया की सबसे बड़ी आर्थिक अर्थव्यवस्था वाला देश होगा।

चीनी राष्ट्रपति की इस घोषणा को लेकर पाकिस्तान का शासक वर्ग बड़ा खुश था। पाकिस्तान में पहली बार कोई देश इतना बड़ा निवेश करने को तैयार हुआ था। सी-पी-ई-सी- परियोजना पर चीन ने 46 अरब डालर खर्च करने की घोषणा की थी। सिर्फ सड़क मार्ग ही नहीं बल्कि विकास की कई अन्य योजनाओं को भी गति देने की बात थी। सड़क, रेल और बंदरगाहों के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाना था। चीन ने अपने व्यापारिक हितों के लिए पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह पहले से ही तैयार कर ली थी, जिसका उपयोग चीन अब अपने व्यापारिक हितों के लिए कर रहा है।

ढेर सारे प्रश्न चीन की इच्छा को लेकर हैं? आखिर चीन की सी-पी-ई-सी- जैसी परियोजनाओं की इच्छा कैसे परवान चढ़ीआखिर चीन को ऐसी परियोजना की जरूरत क्यों और कैसे हुईआखिर चीन इतना बड़ा निवेश करने के लिए कैसे तैयार हुआ? क्या पाकिस्तान की आंतरिक कलह बारे उसे मालूम नहीं था, क्या पाकिस्तान की आतंकवादी कारखाने की जानकारी उसको नहीं थी, क्या वह यह नहीं जानता था कि पाकिस्तान एक असफल देश है? वास्तव में चीन की खुशफहमी थी कि उसकी परियोजना को विश्व के अन्य देश हाथों-हाथ ले लेंगे। चीन अपनी शर्तों पर विश्व के अन्य देशों को इस परियोजना में शामिल कर सकेगा

चीन की दो इच्छाएं प्रबल थीं। एक यह थी कि इस परियोजना को हथकंडा बना कर भारत को डराना और अमरीका व यूरोप को चुनौती देना। चीन की यह भी खुशफहमी थी कि वह इस परियोजना के माध्यम से अफ्रीका और यूरोपीय देशों के बाजार तक पहुंच बना सकता है। चीन को पहले अफ्रीका और यूरोप से व्यापार करने के लिए भारतीय महासागर क्षेत्र से गुजरना पड़ता था जो लम्बा रास्ता था। ग्वादर बंदरगाह के माध्यम से वह अफ्रीका और यूरोप के देशों से सीधा व्यापार कर सकता है? अरब सागर से तेल व्यापार पर अमरीकी सैनिक नजर रखते हैं जो चीन के लिए मुश्किल बात थी। ग्वादर बंदरगाह के माध्यम से चीन अरब सागर में भी अपनी पैठ बनाना चाहता था।

चीन को बदलते भारत की पहचान नहीं थी। उसे भारतीय सत्ता पर नरेन्द्र मोदी जैसे व्यत्तिफ़ के बैठने की कल्पना नहीं थी। चीन ने जब इस परियोजना की घोषणा की थी तब भारत में मनमोहन सिंह सरकार थी, जो कमजोर थी। मनमोहन सिंह सरकार की कूटनीति कैसी कमजोर थी, यह भी उल्लेखनीय है। नरेन्द्र मोदी ने सरकार में आने के साथ ही साथ चीन की घेराबंदी शुरू कर दी। चीन को ‘जैसे को तैसा’ में जवाब देना शुरू कर दिया। चीन की घेराबंदी के लिए मोदी ने ईरान में बंदरगाह निर्माण का ठेका लिया, जो चीन को स्वीकार नहीं हुआ। इसके साथ ही भारत ने वियतनाम के साथ तेल उत्नन की हिस्सेदारी बढ़ाई। भारत ने दुनिया को यह बताया कि सी-पी-ई-सी- परियोजना विवादित है, यह भारतीय भू-भाग का अतिक्रमण है। भारतीय भू-भाग पर पाकिस्तान ने अवैध कब्जा कर रखा है, उस पर चीन आर्थिक गलियारे का निर्माण नहीं कर सकता है। सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि नरेन्द्र मोदी ने बलूचिस्तान की राष्ट्रीयता का भी समर्थन कर दिया, दुनिया के सामने यह कह दिया कि बलूचिस्तान में पाकिस्तान जनभावना को कुचल रहा है,

सी-पी-ई-सी- के  खिलाफ बलूचिस्तान की जनभावना है। बलूचिस्तान के हितों का बलिदान कर यह परियोजना बनाई जा रही है। इस परियोजना से सर्वाधिक लाभ पाकिस्तान के पंजाब राज्य को होगा जबकि सर्वाधिक नुक्सान बलूचिस्तान प्रांत का होगा। उल्लेखनीय यह भी है कि पाकिस्तान में अलग बलूचिस्तान देश के लिए हिंसक आंदोलन चल रहा है। पाकिस्तान में ही नहीं, बल्कि चीन में भी सी-पी-ई-सी- को लेकर विवाद-विरोध जारी है। चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग को यह संदेश देने की कोशिश हो रही है कि यह परियोजना चीन की बर्बादी का कारण बनेगी। चीन का सरकारी अखबार भी सी-पी-ई-सी- के खिलाफ मुखर हुआ है। उसने लिखा है कि यह परियोजना सिर्फ बर्बादी ही लाएगी। इस परियोजना की नियत राशि 46 अरब डॉलर से बढ़ती ही जा रही है, जो वर्तमान में 60 अरब डालर तक पहुंच चुकी है।

परियोजना पूरी होने पर भी लाभकारी नहीं होगी क्योंकि इसकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। अभी चीन के करीब 6000 नागरिक पाकिस्तान में हैं जो दिन-रात काम कर रहे हैं, पर उनकी सुरक्षा हमेशा खतरे में रहती है। चीनी नागरिकों की सुरक्षा के लिए पाकिस्तान की सेना के 15000 जवान लगे हुए हैं। अखबार यह भी लिखता  है कि भारत के विरोध के कारण और कोई देश इस परियोजना से जुडना नहीं चाहता है इसलिए चीन को इस खतरे की घंटी वाली परियोजना पर फिर से विचार करना होगा। चीन के सरकारी अखबार का आकलन एकदम सही है। जब पाकिस्तान का ही भविष्य तय नहीं है तो फिर सी-पी-ई-सी- परियोजना का भविष्य कैसे लाभकारी होगा?


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