इमरान का ‘नया पाकिस्तान’ कितना सच

2018-11-01 0

भारत -पाकिस्तान के बीच पिछले 7 दशकों से असामान्य संबंधों का प्रमुख  कारण क्या है, वह हालिया घटनाक्रमों से स्पष्ट हो जाता है। पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान की तीसरी बेगम पीर बुशरा मेनका ने हाल ही में एक साक्षात्कार में दावा किया है, ‘‘पाकिस्तान की छवि बदलेगी, जिसमें समय लग सकता है क्योंकि उनके शौहर के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है।’’ जिस ‘‘नए पाकिस्तान’’ की बात इमरान खान कर रहे हैं, क्या वह कभी मूर्तरूप लेगा?

पाकिस्तान दीवालिया होने की चौखट पर पहुंच चुका है और उसके प्रधानमंत्री इमरान खान विश्वभर में स्वयं को अपने देश का नया भाग्य-विधाता स्थापित करने का प्रयास और भारत के साथ शांति की बात कर रहे हैं। किंतु उनका असली और पाकिस्तान का चिर-परिचित चेहरा सबके सामने आने लगा है। यह किसी से छिपा नहीं है कि विश्व जिस इस्लामी आतंकवाद से जकड़ा हुआ है, उसकी जड़ें पाकिस्तान की वैचारिक नींव में काफी गहराई तक फैली हुई हैं।

गत दिनों इस्लामाबाद में एक सर्वदलीय बैठक हुई, जिसमें इमरान सरकार में धार्मिक मामलों के मंत्री नूर-उल-हक कादरी, आतंकी संगठन जमात-उद-दावा के प्रमुख और 26/11 मुंबई हमले का मुख्य साजिशकर्त्ता हाफिज सईद एक साथ मंच सांझा करते नजर आए। कार्यक्रम के बैनर में उर्दू भाषा में लिखा था, ‘‘पाकिस्तान की रक्षा के लिए’’, जिसमें कश्मीर को लेकर भारत विरोधी टिप्पणियां भी लिखी हुई थीं। कादरी-सईद की एक मंच पर उपस्थिति से स्पष्ट है कि वहां के आम चुनाव में भले ही सईद समर्थित उम्मीदवार बुरी तरह पराजित हो गए हों, किंतु उसका पाकिस्तान के सत्ता-अधिष्ठानों में गहरा प्रभाव आज भी है।

यही कारण है कि पाकिस्तान के सर्वाेच्च न्यायालय ने 14 सितम्बर को उसके संगठन जमात-उद-दावा (जे-यू-डी-) और फलाही इंसानियत फाऊंडेशन (एफ-आई-एफ-) को फिर से देश में अपने ‘‘सामाजिक कार्य’’ शुरू करने की स्वीकृति दे दी। हाफिज के प्रशंसकों में हालिया निर्णय देने वाले न्यायाधीश मंजूर अहमद और न्यायाधीश सरदार तारिक मसूद के अतिरित्तफ़ पाकिस्तान का वह बड़ा वर्ग भी है, जो उसके भारत-हिंदू विरोधी विषवमन से स्वयं को जोड़ पाता है।

जिस समय (30 सितम्बर) तथाकथित ‘‘नए पाकिस्तान’’ के कैबिनेट मंत्री, संयुत्तफ़ राष्ट्र और अमरीका द्वारा घोषित आतंकी हाफिज सईद के साथ गलबहियां कर रहे थे, ठीक उससे एक दिन पहले (29 सितम्बर) न्यूयॉर्क स्थित संयुत्तफ़ राष्ट्र की महासभा में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भारत पर 2014 के पेशावर स्थित एक स्कूल में हुए आतंकी हमले में शामिल होने का बेतुका आरोप लगा रहे थे। क्या इससे बड़ा झूठ कोई हो सकता है? क्या यह सत्य नहीं कि इस हमले की जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने ली थी, जिसमें आतंकियों ने 132 स्कूली बच्चों को निर्ममता के साथ मौत के घाट उतार दिया था


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इस घटना से पहले तालिबान 2012 में मलाला युसुफजई को मारने के प्रयास के साथ स्वात, वजीरिस्तान और पाकिस्तान के उत्तर पश्चिम कबायली क्षेत्रें के 150 से अधिक स्कूलों को आग लगाकर बर्बाद कर चुका है। 30 सितम्बर को भी खैबर पख्तूनख्वा के चित्रल स्थित एक मात्र प्राथमिक स्कूल को भी तालिबानियों ने बम से उड़ा दिया। तालिबान की स्कूल की आधुनिक शिक्षा के प्रति घृणा की जड़ें भी उस विषात्तफ़ मानसिकता में हैं, जिसने 1947 में मजहब के

आधार पर पाकिस्तान के जन्म का मार्ग प्रशस्त किया। जिया-उल-हक ने कुरान और शरीयत

आधारित शासन व्यवस्था की शुरुआत कर पाकिस्तान में पहले से स्थापित कट्टðर और जेहादी मानसिकता को मजबूती दी। यही कारण है कि आज हाफिज सईद और ओसामा बिन लादेन जैसे दर्जनोंखूखार आतंकियों को पाकिस्तान का बड़ा वर्ग जननायक मानता है।

पाकिस्तान के इसी वैचारिक दर्शन में इस्लामी कट्टðरता के साथ ‘काफिर’ भारत को मौत के घाट उतारने का मजहबी उद्देश्य भी है, जिसके लिए दशकों पुराने हजारों घाव देने की नीति का अनुसरण किया जा रहा है। वहां के अधिकतर नागरिकों को बाल्यकाल से ही गैर-मुसलमानों, विशेषकर  ‘काफिर’ सिख और भारत विरोधी शिक्षा दी जा रही है। हिन्दुओं सहित गैर-मुस्लिमों को ‘काफिर’ और इस्लाम का शत्रु बताया जाता है। उनके इतिहास में वैदिक युग, अशोक कालीन और सिंधु सभ्यता इतिहास का कोई स्थान नहीं है।

इसी कुत्सित दर्शन के कारण वहां गैर-मुसलमान, जिनमें नाममात्र के हिंदुओं और सिखों के अतिरित्तफ़ मुस्लिम समाज से निष्कासित अहमदिया समुदाय के लोग भी शामिल हैं, आए दिन इस्लामी कट्टðरपंथियों के मजहबी उत्पीडन का शिकार होते हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस्लामी कट्टðरपंथियों के समक्ष घुटने टेकते हुए अपनी नवगठित आर्थिक परिषद में अर्थशास्त्री आतिफ रहमान मियां की नियुत्तिफ़ को केवल इसलिए रद्द कर दिया क्योंकि वह अहमदिया समाज से थे, जिसे पाकिस्तानी बहुसंख्यकों द्वारा मान्य इस्लाम का ‘‘सच्चा अनुयायी’’ नहीं माना जाता है।

निर्विवाद रूप से इमरान खान को प्रधानमंत्री बनाने में पाकिस्तानी सेना और इस्लामी कट्टरपंथियों का बहुत बड़ा हाथ है। ऐसा पहली बार भी नहीं हुआ है कि सेना और इस्लामी कट्टðरपंथियों का वहां की नागरिक सरकार में हस्तक्षेप हो रहा है। जनरल अयूब खान, जनरल याहिया खान, जनरल जिया-उल-हक से लेकर जनरल परवेज मुशर्रफ-ये सभी पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह रहे, किंतु इस बार सेना ने सरकार में इमरान खान को अपना पिटू बनाकर भेजा है, जिनका एक-एक शब्द, विशेषकर भारत विरोधी वत्तफ़व्य सेना द्वारा लिखित  होता है।

गत दिनों जब भारत ने संयुत्तफ़ राष्ट्र में दोनों देशों के बीच प्रस्तावित विदेश मंत्री स्तर की बैठक को सीमापार से निरंतर हो रही गोलीबारी, एक भारतीय सैनिक की नृशंस हत्या और पाकिस्तान में आतंकवादी बुरहान वानी पर डाक टिकट जारी करने के कारण रद्द किया, तब इमरान खान ने अपनी नेतृत्व गुणवत्ता की भारी कमी का परिचय देते हुए और पाकिस्तानी सेना का मुखपत्र बनकर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए ट्विटर पर अपशब्दों का उपयोग किया था। उनके ट्वीट के अंतिम वाक्य थे, ‘‘मैं पूरी जिंदगी छोटे लोगों से मिला हूं, जो ऊंचे पदों पर बैठे हैं लेकिन इनके पास दूरदर्शी सोच नहीं होती है।’’ विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बने भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री को इमरान द्वारा परोक्ष रूप से छोटा कहना हास्यास्पद है क्योंकि दुनिया जानती है कि पाकिस्तान में किसी भी प्रधानमंत्री या फिर नागरिक सरकार की हैसियत क्या होती है?

क्या यह सत्य नहीं कि अरबों डॉलर के चीनी कर्ज में दबा पाकिस्तान अपनी देनदारी चुकाने के लिए कीमती गाड़ियों से लेकर भैंसों तक की नीलामी कर रहा है और बांध परियोजना के लिए जनता से 14 अरब डॉलर का चंदा मांग रहा है? इस स्थिति का कारण भी पाकिस्तान की भारत विरोधी मानसिकता है, जिसकी पूर्ति हेतु वह साम्राज्यवादी चीन के समक्ष अपनी संप्रभुता को भी गिरवी रख चुका है। प्रधानमंत्री बनने से पहले बतौर क्रिकेट खिलाड़ी और राजनेता इमरान खान किस चाल और चरित्र के रहे हैं, उसका खुलासा उनके निजी जीवन और दूसरी पत्नी रेहम खान की पुस्तक से हो जाता है। जिस भ्रष्टाचार विरोधी अभियान की नींव पर इमरान खान ने पहले सेना-न्यायतंत्र की ‘‘जुगलबंदी’’ के बूते नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद से हटवाकर जेल भिजवाया और स्वयं प्रधानमंत्री बनने में सफल हुए, उसी भ्रष्टाचार से इमरान सरकार भी अछूते नहीं हैं।

कालांतर में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत पं- नेहरू, इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अन्य पड़ोसी देशों की भांति पाकिस्तान से रिश्ते भी सुधारने के अथक प्रयास किए हैं, किंतु पाकिस्तान का चरित्र अपरिवर्तित रहा है, जो अब उसके लिए आर्थिक और सामाजिक रूप से आत्मघाती भी हो गया है। ऐसे में हालिया घटनाक्रमों की पृष्ठभूमि और इमरान खान के नेतृत्व में क्या पाकिस्तान में कोई सकारात्मक परिवर्तन संभव है

- बलबीर पुंज


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