परिश्राम का महत्व

2018-11-01 0

बात तब की है जब बीमारियाँ एक पहाड़ पर रहा करती थी। पहाड़ बीमारियों को अपनी बेटी की तरह पालता-पोसता था। बीमारियाँ पहाड़ के इस उपकार के लिए पहाड़ का अहसान मानतीं और हमेशा पहाड़ के इस अहसान के लिए किसी भी उपकार के लिए इच्छुक रहतीं। लेकिन, पहाड़ तो पहाड़ ठहरा, था ही इतना विशाल और अपनी जगह डटा हुआ कि उसे कभी बीमारियों के किसी उपकार की जरूरत ही नहीं पड़ी।

पहाड़ की तलहटी में ही एक गाँव था। कुछ दिन बीते और गाँव के एक किसान को खेती के लिए अतिरित्तफ़ जमीन कि जरूरत पड़ी। किसान को कहीं जमीन दिखाई नहीं दी। अचानक किसान की नजर हजारों एकड़ जमीन दबाए हुए पहाड़ पर पड़ी। किसान ने सोचा क्यों न पहाड़ को खोदकर खेती योग्य जमीन को निकाल दिया जाए।

बस फिर क्या था, किसान के सोचने भर की देर थी और उसने पहाड़ को खोदकर बहुत सारी जमीन निकाल ली। किसान को पहाड़ खोदता देख और दूसरे किसान भी जमीन के लिए पहाड़ को खोदने चले आए। देखते ही देखते किसानों की संख्या सैकड़ों तक पहुँच गई। किसान फावड़ा लेकर पहाड़ को खोदने में जुटे रहे।

यह देख पहाड़ को अपना अस्तित्व खतरे में नजर आने लगा। पहाड़ घबराया और अपने बचाव के उपाय खोजने लगा। पहाड़ को जब अपने बचाव का कोई उपाय न सुझा तो उसे अपने कोटर में पल रही बीमारियों की याद आई। पहाड़ ने सभी बीमारियों को इकठ्ठा किया और कहा, फ्मैंने कई साल तुम्हारी रक्षा की है और तुम्हें रहने के लिए अपनी कोटर में स्थान दिया है। लेकिन अब मेरे किए गए इस उपकार का वत्तफ़ आ गया है।य् बीमारियाँ पहाड़ के किसी भी काम के लिए पहले ही तैयार थीं। पहाड़ ने फावड़े और कुदाल चलाते हुए किसानाें की और इशारा किया और कहा, फ्पुत्रियों! यह देखो मेरे शत्रु फावड़ा और कुदाल लेकर मेरे अस्तित्व को खतरे में डाले हुए हैं। तुम सब-की-सब इन पर झपट पड़ो और मेरा नाश करने वालों का सत्यानाश कर डालो।य

पहाड़ का आदेश मानकर बीमारियाँ आगे बढ़ीं और किसानों के शरीर से जाकर लिपट गईं। पर किसान तो अपनी धुन में लगे थे। जितने तेजी से फावड़े और कुदाल चलाते उतनी ही तेजी से पसीना बाहर निकलता और सारी बीमारियाँ धुलकर नीचे गिर जातीं। बीमारियों ने किसानों को बीमार बनाने के लिए बहुत प्रयत्न किये लेकिन बीमारियों की एक न चली। एक अच्छा स्थान छोड़कर उन्हें गंदे स्थान पर जाना पड़ा सो अलग।

पहाड़ ने देखा की जिन बीमारियों को उसने सालों से पाला था वह भी उसकी रक्षा न कर सकीं तो पहाड़ बहुत क्रोधित हुआ और उसने बीमारियों को श्राप दिया, कि फ्मैंने तुम्हें अपनी पुत्रियों कि तरह पाला पर फिर भी तुम मेरी रक्षा नहीं कर सकी अब तुम जहाँ हो वहीं पड़ी रहो।

तब से बीमारियाँ गन्दगी में ही पड़ी रहती हैं और मेहनत करने वाला अनपढ़ आदमी भी स्वस्थ जीवन जीता है। बस यही नियम आज तक चला आ रहा है।


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