भारत में आलंपिक आयोजन के दावे

2018-08-01 0

पिछले साल ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट शहर में समाप्त हुए राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान 26 बार भारत का तिरंगा पदक मंच पर राष्ट्रीय गान के साथ लहराया। यह इस बात का सबूत था कि भारत के खाते में इतने ही स्वर्ण पदक आ चुके हैं। यह पल न सिर्फ खिलाड़ी को रोमाचित करते हैं, बल्कि देशवासियों को भी अभिभूत कर देते हैं। भीतर ही भीतर कुछ ऐसा महसूस होने लगता है कि उसकी पहली झलक आंखों में आंसू बनकर नजर आने लगती है। 

क्या है भविष्य की डगर?

तो क्या राष्ट्रमंडल खेलों में मिले 66 पदकों ने भारतीय ओलंपिक संघ में इतना जोश भर दिया है कि वह साल 2026 के युवा ओलंपिक खेल, 2030 के एशियाई खेल और 2036 के ओलंपिक खेलों की मेजबानी के दावे कर रही है।  यहां तक कि इस सिलसिले में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष थामस बाक और एशियाई ओलंपिक परिषद् के अध्यक्ष शेख अहमद अल सबाह के साथ बैठक भी की। भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष नरेन्द्र बत्रा ने एक कदम आगे बढ़कर कहा कि हमें मेजबानी मिले या नहीं हम दावेदारी करेंगे। लेकिन पिछले रियो ओलंपिक खेलों में महज एक रजत और एक कांस्य पदक जीतने वाले भारत के क्या इतने बड़े खेल मेले की मेजबानी करनी चाहिए?

क्या ओलंपिक की मेजबानी संभव?

हमारे सवाल का जवाब कुछ ऐसे अंदाज में साल 1975 में अपने गो से मलेशिया में आयोजित हुए विश्व कप हॉकी टूर्नामेंट का फाइनल जिताने और भारत को चैंपियन बनाने वाले पूर्व ओलंपियन अशोक कुमार ने दिया। उन्होंने कहा कि पदक तालिका में हम हमेशा नीचे की तरफ रहते हैं। भारत में अधिक खेलों के आयोजन होते हैं। इसमें कोई कमी या कोर-कसर नहीं रहती। इसके बावजूद हमें अपने खिलाड़ियोें की तैयारी पर ध्यान देना चाहिए। अगर खिलाड़ी चैंपियन बनने का यकीन दिलाए, अधिक से अधिक पदक आएं तो ओलंपिक की मेजबानी करें। ऐसा ना हो कि स्टेडियमों में सिर्फ तालियां बजाने जाएं वह भी दूसरी टीमों के लिए।

यह सच है कि भारत आईपीएल से लेकर हॉकी लीग, राष्ट्रमंडल, एशियाई खेल, वर्ल्ड कबड्डी लीग, ढेरों क्रिकेट सिरीज, यहां तक कि विश्व कप जैसे आयोजन भी कामयाबी से हो चुके हैं। लेकिन इनकी तुलना ओलंपिक खेलों से नहीं की जा सकती।yy


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