यह केवल टैक्स का नहीं, बल्कि निवेश का भी मामला है

2019-06-01 0


फरवरी को आमतौर पर टैक्स बचत और निवेश की योजना बनाने का महीना माना जाता है, लेकिन मैं इस तरह के विचारों से ऊब गया हूं। अगर निवेशकों के वास्तविक व्यवहार के लिहाज से देखें तो यह सही भी लगता है, लेकिन फिर भी यह गलत है। वर्ष में टैक्स बचाने और निवेश की योजना बनाने का सबसे उपयुक्त समय अप्रैल का है। अगर हमने टैक्स बचाने की योजना अप्रैल में नहीं बनाई, तो हो सकता है कि बहुत देर कर देंगे।

अमूमन ऐसा होता भी है। इतने वर्षाे के दौरान मैंने यही देखा है, और कई बार तो खुद मुझसे भी हो गया है, कि अगर हमने टैक्स बचत वाली निवेश योजना वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में नहीं बना ली, तो अक्सर यह लटकते-लटकते अगले वर्ष फरवरी-मार्च तक टल जाती है। कई बार तो हम आनन-फानन में वित्त वर्ष के आखिरी दिन यानी 31 मार्च को टैक्स बचत वाली निवेश योजनाओं में निवेश करते दिखते हैं। इसलिए, हम सभी को यह शपथ लेनी चाहिए कि हम निवेश संबंधी सभी योजनाएं इस वर्ष पहली अप्रैल से बनानी शुरू कर देंगे और ‘अगले कुछ ही दिनों में’ के चक्कर में इसे 31 मार्च, 2020 तक नहीं टालेंगे।

अंतिम वक्त में टैक्स बचाने वाली निवेश योजनाओं के बारे में सोचने का एक बुरा असर यह है कि हम अक्सर भूल ही जाते हैं कि टैक्स बचत वाली सभी निवेश योजनाएं बुनियादी तौर पर निवेश योजनाएं हैं। मेरे कहने का मतलब यह है कि इस पूरी प्रक्रिया में हमारा सारा फोकस टैक्स बचाने पर रहता है और निवेश वाले हिस्से के बारे में हम अक्सर ज्यादा विचार नहीं करते। इसका एक नुकसान यह होता है कि हम सही मायनों में निवेश वाली योजनाएं नहीं चुन पाते, बल्कि टैक्स बचाने के लिए हमारे सामने जो योजनाएं पेश की जाती हैं, हम आपाधापी में उनमें से ही एक चुन लेते हैं।

टैक्स बचाना हमारी विचारधारा पर इस कदर हावी हो जाता है कि हम यह भी नहीं देखते कि जिन योजनाओं में निवेश करने जा रहे हैं, वे हमारे लिए उपयुक्त  हैं भी या नहीं। उदाहरण के तौर पर, लगभग सभी बैंकों के अपने वेबसाइट और मोबाइल एप्लीकेशन हैं, जिनके माध्यम से पांच वर्षाे की अवधि की टैक्स बचाने वाली सावधि जमा (फिक्स्ड डिपॉजिट) योजनाएं ली जा सकती हैं। इसकी तुलना में ज्यादातर म्यूचुअल फंड योजनाओं ने अभी तक सीधे ऑनलाइन निवेश का कोई जरिया पेश नहीं किया है। और अगर किया भी है तो बहुत अधूरे मन से किया है।

हकीकत यह है कि अमूमन लोग अपने निवेश को लेकर जितने भी खराब निर्णय लेते हैं, उनमें से ज्यादातर उनकी टैक्स बचाने वाली निवेश योजनाओं से जुड़ी होती हैं। वे ऐसी योजनाएं चुन लेते हैं जिनकी लॉक-इन अवधि लंबी होती है और जिन पर महंगाई दर से ज्यादा का रिटर्न बमुश्किल मिल पाता है। वे ऐसी बीमा योजनाओं में रकम लगा देते हैं जिन पर ज्यादातर कमाई एजेंट के कमीशन में ही चली जाती है। यहां तक कि ईएलएसएस योजनाएं लेते वक्त भी वे अमूमन उसके पिछले ट्रैक रिकॉर्ड के बारे में ज्यादा छानबीन नहीं करते।

खिर ऐसा क्यों होता है? मेरी समझ में इसकी मुख्य वजह यह है कि अक्सर निवेशकों में टैक्स बचाने और निवेश करने के लक्ष्यों को लेकर असमंजस की स्थिति होती है। चूंकि बचतकर्ता अक्सर यह निर्णय मार्च के खि में लेते हैं। और वह भी इसलिए कि या तो इसकी समय-सीमा बीतने का दबाव रहता है या सेल्समैन द्वारा बार-बार पूछे जाने के चलते वे टैक्स बचत वाली योजनाओं में निवेश कर लेते हैं। ऐसे में खिकार लोग गलत निवेश निर्णय ले बैठते हैं। जब इसका आभास होता है, तब खुद को यह कहकर तसल्ली देने की कोशिश करते हैं कि उन्हें कम से कम टैक्स से तो राहत मिली।

समय की कमी के इस दबाव से मुक्त होना सरल है और यह एक सावधानी से भरा नजरिया भी पेश करता है। आपको समझना होगा कि ये सब आखिरकार निवेश हैं और अगर आप इनके साथ निवेश वाला व्यवहार नहीं कर सकते, तो आपको निवेश नहीं करना चाहिए। मसलन, अगर आपको फिक्स्ड डिपॉजिट में निवेश की जरूरत नहीं और आप इक्विटी में ही निवेश करना चाहते हैं, तो टैक्स बचाने के लिए भी इक्विटी योजनाओं में ही निवेश कीजिए। या अगर मामला इसके विपरीत है, तो टैक्स बचाने के लिए भी फिक्स्ड डिपॉजिट वाली योजनाओं में ही निवेश कीजिए। किसी भी निवेश के साथ निवेश वाला व्यवहार पहले होना चाहिए और टैक्स बचत वाला बाद में।

मैंने पहले भी लिखा है कि अगर आप रिटर्न और लिक्विडिटी के मामलों को देखेंगे, तो ईएलएसएस के मुकाबले में पब्लिक प्रोविडेंट फंड (पीपीएफ) में निवेश का कोई मतलब नहीं बनता। अगर आप 15 वर्षाे के लिए रिटर्न को सामने रखें, तो यह बात और स्पष्ट हो जाती है। इसके बावजूद ज्यादातर भारतीय बचतकर्ता पीपीएफ के साथ खड़े होते दिखते हैं। इसलिए मैं हमेशा यही सलाह देता हूंः सभी सूचनाएं जुटाइए, सभी तथ्यों पर विचार कीजिए और उसके बाद ही आने वाले वर्ष के लिए टैक्स बचत वाली योजनाओं में निवेश कीजिए।  



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