अच्छे पड़ोसी हैं जरूरी

2019-07-01 0

अच्छे पड़ोसी हैं जरूरी पड़ोसियों से रिश्ते बनाने का सबसे पहला नियम है कि उन्हें उनकी प्राइवेसी दें। दोस्ती का हाथ जरूर बढ़ाएं, पर दख लअंदाजी न करें।

ज की भागदौड़ भरी जिंदगी ने हमें इतना मसरूफ कर दिया है कि हमारे पास अपने पड़ोसियों के साथ बैठ कर बात करने का क्या, उन से उन का नाम तक पूछने का समय नहीं है।

अब लोगों के घर तो बड़े होते जा रहे हैं, पर अपने पड़ोसियों के लिए उन के दरवाजे तक नहीं खुलते हैं। मर्द अपने पड़ोसियों से कोई खास संबंध नहीं रखते हैं, जबकि औरतें टेलीविजन के सामने पड़े रहने में ज्यादा सुकून महसूस करती हैं। बच्चों को भी बाहर जा कर पड़ोस के बच्चों के साथ न खेलने की हिदायतें दी जाती हैं।

यह नया चलन अच्छा नहीं है, पर अफसोस हमारे समाज पर हावी हो रहा है, जबकि पड़ोसी के साथ रिश्ते केवल 1-2 वजहों से नहीं, बल्कि बहुत सी वजहों से अच्छे साबित होते हैं।

मुसीबत की घड़ी में आप के दूर बैठे रिश्तेदार मदद करने के लिए एकदम से नहीं आ पाते हैं, बल्कि आपके पड़ोसी ही सबसे पहले आपकी तरफ मदद का हाथ बढ़ाते हैं।

पड़ोसी हर तरह के होते हैं। कुछ अच्छे भी होते हैं तो कुछ बुरे भी, लेकिन एक अच्छा पड़ोसी आपकी हर तरह से मदद करता है।

मुश्किल घड़ी में साथ

आजकल अखबारों की सुखिर्यों में किसी न किसी वारदात की खबर छपी होती है। इन वारदातों में लोगों के घरों में चोरी होना, घर में घुसकर किया गया जोर-जुल्म व घर से बाहर गली-पड़ोस में बच्चों को अगवा कर लेने की खबरें होती हैं।

इन वारदातों के पीछे अहम वजह है अकेलापन। लोगों के अपने पड़ोसियों से खत्म हो रहे रिश्ते उन के घर की तरफ बढ़ रहे जुर्म को बढ़ावा देने का काम करते हैं, जबकि पड़ोसियों से जुड़े रहने पर आप एक मजबूत संगठन की तरह होते हैं जिस पर एक-दूसरे की हिफाजत व मदद करने की जिम्मेदारी होती है।

  • अक्टूबर , 2018। हरियाणा में गुरुग्राम के ट्यूपलिप  औरेंज हाईराइज अपार्टमैंट्स में पड़ोसी की मदद करने का एक ऐसा वाकिआ सामने आया जिस ने अच्छे और हिम्मती पड़ोसी होने की मिसाल दी। 33 साल की स्वाति गर्ग ने पड़ोसियों की जिंदगी बचाने के लिए अपनी ही जान दांव पर लगा दी थी।  हुआ यों था कि एक छोटे से शॉर्टसर्किट से लगी आग ने उस इमारत के एक फ्लोर पर बड़ा भीषण रूप ले लिया था। स्वाति गर्ग अपार्टमेंट्स से निकलने के बजाय वहां मौजूद सभी लोगों को होशियार कर बाहर जाने के लिए कहने लगीं। आग बुझने के बाद फायरफाइटर्स को छत के दरवाजे पर बेहोशी की हालत में स्वाति मिली थी। अस्पताल ले जाते समय उन की रास्ते में ही मौत हो गई थी।
  • अगस्त, 2017। अपने देवर द्वारा चाकू से किए गए कई वारों के बाद छत से फेंकी गई एक औरत को उस के पड़ोसियों ने बचाया। दिल्ली के वजीरपुर में रहने वाली 25 सा की उस औरत के साथ बलात्कार की नाकाम कोशिश के बाद उसके देवर ने उसे छत से नीचे गिराने की कोशिश की थी। उस औरत के शोर मचाने से पड़ोसी अपने-अपने घरों से बाहर आ गए थे। छत से धक्का दिए जाने के बाद वह औरत एक कूलर के स्टैंड को पकड़ कर कुछ देर लटकी रही थी, फिर होश खोने पर जब वह गिरी तो उसके पड़ोसियों ने उसे पकड़ लिया। अस्पताल जाने पर पता लगा कि जख्म गहरे नहीं थे।
  • अक्टूबर, 2015। उत्तर प्रदेश के बिसड़ा गांव में एक मुस्लिम परिवार की हिंदू पड़ोसियों ने मदद कर जान बचाई और सही-सलामत दूसरी जगह पहुंचने में मदद की थी। ऐसे ढेरों मामले सामने आते हैं जहां पड़ोसियों ने अपने आसपास के लोगों की जान बचाई या उन्हें किसी बड़े खतरे से बाहर निकाला जिंदगी में रस घोलते पड़ोसी केवल मुश्किल समय में ही नहीं, बल्कि खुशी के माहौल को और मजेदार बनाने में भी सब से बेहतर साबित होते हैं। बगीचे की छोटी-मोटी सफाई हो या घर की चीनी खत्म हो जाए तो पड़ोसी का दरवाजा खटखटा दें। पड़ोसियों के साथ ऐसे आपसी संबंध बहुत खट्टे मीठे होते हैं जो जिंदगी में ताजगी भर देते हैं।
  • तारक मेहता का उलटा चश्मा’ जैसे टैलीविजन सीरियल हमें अच्छे पड़ोसियों की अहमियत का अहसास दिलाते हैं। पड़ोसियों के साथ तीज-त्योहार मनाना, पिकनिक पर जाना या बैठ कर बातें करना, इन सब में अपना ही एक मजा है।
  • बच्चों के स्कूल के दोस्त अकसर उन के घरों से बहुत दूर रहते हैं। घर में दिनभर बंद कमरे में वीडियो गेम खेलना बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर बुरा असर डालता है। अगर बच्चे पड़ोस के बच्चों का साथ देंगे तो वे अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेल सकेंगे, बातें कर सकेंगे और शारीरिक व मानसिक तौर पर सेहतमंद भी रहेंगे। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 55 फीसदी बच्चों को उन के माता-पिता द्वारा बाहर जाकर खेलने की इजाजत नहीं दी जाती है, जबकि उनके विकास के लिए उन्हें पड़ोस के बच्चों के साथ खेलने दिया जाना चाहिए।
  • अगर आप घर से दफ्तर जाने में लेट हो रहे हैं या आप को दोपहर में कहीं बाहर जाना हो, आधी रात में कभी अस्पताल जाने की जरूरत हो तो आप के पड़ोसी ही आप की मदद कर सकते हैं, आप को लिफ्ट दे सकते हैं। साथ ही, आपके न होने पर पीछे से आप के घर की निगरानी भी रख सकते हैं आल इंडिया इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, डिप्रैशन से पीड़ित 50 फीसदी बच्चे 14 साल की उम्र से कम के हैं और ऐसे 75 फीसदी नौजवान 15 से 25 साल की उम्र के हैं। ये आंकड़े इस बात के सुबूत हैं कि किस तरह बच्चों और नौजवानों के मानसिक तनाव उन्हें समाज से दूर व अकेलेपन के करीब खींच रहे हैं। अगर वे अपने आसपड़ोस के हमउम्र से बात करें, उनके साथ घूमें-फिरें व अपनी परेशानियों के बारे में चर्चा करें, तो शायद उन्हें इस अकेलेपन से जूझना नहीं पड़ेगा।
  • पड़ोसियों में अगर आपसी स्नेह हो तो उनके बच्चे भी आमतौर पर एकदूसरे के अच्छे दोस्त होते हैं। वे आपस में जहां चाहे साथ जा सकते हैं और उन के बुरी संगत में पड़ने की चिंता से माता-पिता भी मुफ्त रह सकते हैं।

ऐसे कायम रखें रिश्ते

पड़ोसियों से रिश्ते बनाने का सब से पहला नियम है कि उन्हें उन की प्राइवेसी दें। दोस्ती का हाथ जरूर बढ़ाएं, पर दखलअंदाजी न करें। अगर उन्हें किसी तरह की जरूरत है तो कोशिश करें कि आप उन की मदद कर सकें।

आप हफ्ते  में एक बार किटी पार्टी का प्रोग्राम भी बना सकते हैं। इस से आप एक-दूसरे के परिवारों से परिचित होंगे व आपसी संबंधों में मिठास भी रहेगी।

अक्सर घरेलू औरतें घरों में ही रहती हैं और केवल बच्चों को स्कूल से लाना, ले जाना ही करती हैं। ऐसी औरतें पड़ोस की दूसरी औरतों के साथ पास के बाजार या माल वगैरह में जाकर बाहरी दुनिया से रूबरू हो सकती हैं।

अगर आपकी और आपके पड़ोसी की काम करने की जगह आसपास है तो गाड़ी में एक साथ भी जाया जा सकता है। इससे पैसों की बचत के साथ-साथ रिश्ते भी मजबूत होते हैं।



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