छोटी जोत के किसान हैं तो सामूहिक खेती की कला इन महिलाओं सीखिए
छोटी जोत के किसानों की खेती में लागत कम आये और बाजार से बिचौलिये खत्म हों जिससे किसानों को सीधो लाभ मिल सके ये हल अब झारखंड की इन महिला किसानों ने खोज निकाला है। ये सामूहिक रूप से खेती करती है और अपने उत्पाद को एक साथ सीधे बाजार भेजती हैं जिससे इनकी आमदनी में सुधाार हुआ है।
छोटी जोत के किसानों की खेती में लागत कम आये और बाजार से बिचौलिए खत्म हों जिससे किसानों को सीधे लाभ मिल सके ये हल अब झारखण्ड की इन महिला किसानों ने खोज निकाला है। ये सामूहिक रूप से खेती करती हैं और अपने उत्पाद को एक साथ सीधे बाजार भेजती हैं। जिससे इनकी आमदनी में सुधार हुआ है।
झारखण्ड में ज्यादातर किसान छोटी जोत के हैं। इनके पास जमीन के
छोटे-छोटे टुकडे़ हैं। ऐसे में एक किसान एक फसल लगाकर उससे मुनाफा कमा पाये ये
असम्भव है। पर सामूहिक खेती करके यहां कि महिला किसानों ने इसे सम्भव करके दिखा
दिया है। अब ये अपने जमीन के छोटे टुकड़ों में वो फसलें लगा रही हैं जिससे इन्हें
अच्छा मुनाफा मिले। जहां एक तरफ सामूहिक खेती करने पर इन महिला किसानों को एक साथ
खाद बीज उत्पादक समूहके जरिए घर पर कम दरों में मिल जाता है वहीं दूसरी तरफ ये एक
साथ गाड़ी करके अपनी सब्जियां सीधे बाजार पहुचाती हैं जिससे इन्हें अब दिनभर अब
बाजार में बैठकर सब्जी बेचने से मुक्ति मिल गयी है।
रामगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 32 किलोमीटर दूर
गोला ब्लॉक के टोनागातू गांव में कुछ महिलाएं बीन तोड़कर खेत के पास खड़ी गाड़ी में
लोड कर रही थीं पूछने पर तीरथी देवी (28 वर्ष) ने बताया, ‘‘अब
हमें दो तीन किलोमीटर दूर पैदल चलकर रोज सब्जी बेचने के लिए बाजार नहीं जाना पड़ता
और न ही पूरे दिन बाजार में बैठना पड़ता। हम तीन चार दीदी एक साथ सब्जी तोड़कर इस
गाड़ी से बाजार भेज दते हैं। दो तीन घंटे में थोक के भाव सब्जी बिक जाती है और हमें
नकद पैसा मिल जाता है।’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘हम लोग मिलकर
गाड़ी का भाड़ा दे देते हैं। एक साथ बेचने पर हमारे पास इतनी सब्जी हो जाती है जिससे
पूरी गाड़ी भर जाये। कोई एक या दो दीदी इस गाड़ी से बाजार चली जाती जहां हाथों-हाथ
सब्जी बेचकर वापस आ जाती।’’
आपको सामूहिक खेती करके एक साथ बाजार में सब्जी बेचने का ये दृश्य
झारखण्ड के केवल गोला ब्लॉक में नहीं मिलेगा बल्कि ये नजारा राज्य के उन 17
जिलों में मिलेगा जहां जोहार परियोजना का क्रियान्वयन जा रहा है। जोहार परियोजना
के अंतर्गत सखी मंडल से जुड़ी महिलाओं को उत्पादक समूह में जोड़कर इन्हें न केवल
सामूहिक रूप से खेती करने के लिए प्रेरित किया जाता है बल्कि एक साथ अपने उत्पादों
को बाजार भेजने पर पर भी जोर दिया जाता है। अब तक 17 जिलों में 2100 से
ज्यादा उत्पादक समूह बन चुके हैं। जहां की महिलाएं ऐसे ही सामूहिक रूप से ख्ेाती
करके न केवल सीधे बाजार से जुड़ रही हैं बल्कि समय और लागत दोनों बचा रही हैं।
टोनागातू गांव में जनवरी 2018 में टोनागातू आजीविका महिला किसान
उत्पादक समूह का गठन किया गया। जिसमें सखी मंडल की 73 महिलाएं जुड़ी
हुई हैं। ये खेती तो वर्षों से करती आ रही थीं लेकिन सामूहिक खेती ये उत्पादक समूह
बनने के बाद पहली बार कर रही हैं। जिसके इन्होंने फायदे गिनाए।
उत्पादक समूह की गीता देवी (32 वर्ष) सामूहिक
खेती के फायदे गिनाते नहीं थकतीं वो बताती हैं, ‘‘पहले हम लोग
अपनी-अपनी जरूरत के हिसाब से बाजार से बीज और खाद खरीदते थे जिसमें समय और पैसे
दोनों खर्च होता था। अब तो हर महीने की 10 और 25 तारीख को
उत्पादक समूह की बैठक होती है जिसमें जिसको जितना खाद और बीज की जरूरत होती है वो
नोट करा देता है समूह की कोई एक या दो दीदी बाजार से एक साथ बीज, खाद
कीटनाशक दवाइयां ले जाती हैं। इससे थोक में ये सब चीजें सस्ती पड़ जाती हैं।’’ वो
आगे बताती हैं, ‘‘पहले हर दीदी अपनी-अपनी टोकरी लेकर एक से दो किलोमीटर पैदल चलकर आटो
पकड़ती थी और अलग-अलग जगहों पर जाकर पूरे दिन बैठकर सब्जी बेचती थी। ऐसे मेहनत भी
ज्यादा लगती थी और पूरे दिन बाजार में बैठना पड़ता था लेकिन अब एक साथ सब्जी बाजार
भेजने से बहुत आराम हो गया है।’’
गीता अपने उत्पादक समूह की आजीविका कृषक मित्र हैं। एक आजीविका कृषक
मित्र हर एक उत्पादक समूह में होती है। इनका काम खुद ट्रेनिंग लेकर उत्पादक समूह
से जुड़ी दूसरी महिलाओं को खेती में आ रही समस्याओं को सुलझाना और खेती करने के ऐसे
तरीके बताना जिससे इनकी लागत कम आये। उत्पादक समूह की वन देवी (60
वर्ष) बताती हैं, ‘‘हम वर्षों से एक ही ढर्रे पर खेती करते आ रहे थे। लेकिन अब कब क्या
फसल लगाना है और क्या लगाना है, कैसे फसल की देखरेख करें जिससे अच्छा
पैदावार हो। इस पर समूह में बातचीत होती है। वहीं थोड़ी जमीन में जहां कल तक मेहनत
और लागत दोनों ज्यादा लगती थी लेकिन कमाई ज्यादा कुछ नहीं होती थी लेकिन अब एक साल
से ही मिलकर खेती करने का फायदा दिखाई दे रहा है।’’
रामगढ़ जिले की तरह लोहरदगा जिले में भी उत्पादक समूह की महिलाएं ऐसे
ही मिलकर सामूहिक खेती कर सीधे बाजार में सब्जियां भेज रही हैं। कुड्डु प्रखंड के
सुन्दर पंचायत में मार्च 2018 में गठित सुकुमार महिला किसान उत्पादक
समूह की 22 महिलाओं ने पिछले साल 30-30 डिसमिल में गोभी लगाई थी। छह टन गोभी
एक लाख छियालीस हजार साठ रुपए की बिकी थी। उत्पादक समूह की सचिव गीता देवी ने
बताया, ‘‘हमारी तीस डिसमिल जमीन में तीन हजार गोभी की लागत आई और 12
हजार की आमदनी हुई। पहली बार ऐसा हुआ है कि हमारे गांव की महिलाएं खेती को बिजनेस
मानने लगी हैं। अभी तक तो यही सोचते थे कि इतना पैदा हो जाए जिससे खर्चा चलता रहे
पर अभी हम लोग ऐसा नहीं सोचते।’’
वो बताती हैं, ‘‘जानकारी होने के बाद अब हम सोचते हैं
कि कम खेत में ही हम कैसे अच्छा लाभ ले सकते हैं। पहले बाजर में मोल-तोल करके जो
जैसे सब्जी खरीदता हम फुटकर दे देते थे। लेकिन अब जब एक साथ ग्रेडिंग के साथ हमारी
सब्जी बाजार में आती है तो हम बाजर भाव के हिसाब से ही सब्जी बेचते हैं।’’
उत्पादक समूह से जुड़ी महिलाओं को प्रशिक्षण के बाद इतना सक्षम बनाया
जा रहा है कि ये खेती को बिजनेस के तौर पर देखें और अच्छा मुनाफा कमायें।’’
सामूहिक खेती के फायदे
उत्पादक समूह से जुड़ी महिलाएं सामूहिक खेती के कई फायदे गिनाती हैं।
इनका मानना है इससे न केवल लागत कम आती है बल्कि समय और मेहनत भी कम लगती है।
दीप महिला किसान उत्पादक समूह की अध्यक्ष कुलसुम बीबी (34
वर्ष) बताती हैं, ‘‘अगर एक महिला अपने तीस डिसमिल खेत के लिए बाजार से बीज लेने जाती है
तो आने-जाने का खर्चा और दिन के दो-तीन घंटे की बर्बादी। ऐसे ही जब वो खाद और दवा
लेने जाएगी तो भी खर्चा। लेकिन अगर अगर यही खाद, बीज और दवा एक
साथ 60-70 महिलाएं मंगाती हैं तो सिर्फ एक या दो महिला का समय बर्बाद होगा और
आने-जाने का खर्चा भी इन्हीं दो का ही खर्च होगा।’’
वो आगे बताती हैं, ‘‘ठीक यही चीज सब्जी बेचने पर भी लागू होती है। अगर एक महिला अपनी सब्जी लेकर सुबह बाजार जाती है तो उसे पूरे दिन बैठकर अपनी सब्जी बेचनी होगी। कई बार शाम होते-होते जब सब्जी पूरी नहीं बिकती तो घर जल्दी आने के चक्कर में उसे औने-पौने दाम में बेचकर भागना पड़ता है। जबकि एक साथ सब्जियां बाजार भेजने से ये नौबत नहीं आती है।’’
- नीतू सिंह