बच्चों का ख्याल रखें, लेकिन उनके सीखने की प्रक्रिया के बीच
बच्चों में याद्दाश्त का विकास तभी से होने लगता है जब वह दो से तीन
हफ्ते के होते हैं। उम्र के इसी पड़ाव से बच्चे माता-पिता की गंध पहचानने लगते हैं।
इसी के साथ वह थोड़ी-बहुत हरकतें करना शुरू कर देते हैं।
बच्चों में याद्दाश्त का विकास तभी से होने लगता है जब वह दो से तीन
हफ्रते के होते हैं। उम्र के इसी पड़ाव से बच्चे माता-पिता की गंध पहचानने लगते
हैं। इसी के साथ वह थोड़ी-बहुत हरकतें करना शुरू कर देते हैं। यहीं से माता-पिता की
जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं।
लखनऊ स्थित संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई)
बाल रोग विशेषज्ञ
डॉ- पियाली भट्टाचार्य बताती हैं कि बच्चे जब पैदा होते हैं तो उनके
आंखों से पहचानने की इंद्रियां गंध पहचानने की इंद्रियों के मुकाबले बेहद कमजोर
होती हैं। इसलिए शिशु तीन से चार घंटे सोते हैं, भूख लगने पर जग
जाते हैं और दूध पीकर फिर सो जाते हैं। धीरे-धीरे उनकी इंद्रियों का जब विकास होता
है, उनके दिमाग का भी विकास होता है, उनको ज्ञान होता
है कि उन्हें कब जगना है और कब सोना? शिशु अपने माता-पिता और चाहने वालों से
संवाद करते हैं और आसपास के वातावरण को समझने का प्रयास करते हैं। कुछ वर्ष पहले
एक रिपोर्ट आई थी कि शास्त्रीय संगीत सुनाने से बच्चे बुद्धिमान होते हैं। इस बारे
में डॉ- पियाली सिंह कहती हैं, ‘‘संगीत से बच्चों के दिमाग पर अच्छा
प्रभाव पड़ता है। बच्चे संगीत सुनकर शांत हो जाते हैं। अच्छे संगीत से बच्चों में
अच्छी बातें आती हैं।’’
बच्चे के लिए मां का स्तनपान है सबसे जरूरी
डॉ- पियाली भट्टाचार्य कहती है, एक शिशु की पोषण
सम्बंधित सभी जरूरतें स्तनपान से होती हैं, माताओं को
बच्चों को छह माह तक स्तनपान जरूर कराना चाहिए। माताओं के दूध में अच्छी मात्र में
न्यूट्रिशन मौजूद होता है। कई बार देखा गया है कि बच्चों के भोजन में न्यूट्रिशन
की कमी होती है। इससे भोजन की गुणवत्ता और विविधता दोनों प्रभावित होती है। बच्चों
को जब न्यूट्रिशन नहीं मिलेगा तो मानसिक विकास रुकेगा ही, साथ ही शारीरिक
विकास पर भी प्रभाव पड़ेगा। ऐसे समय में मां को अपने बच्चे को अधिक से अधिक स्तनपान
कराना चाहिए।
नवजात का इम्यून सिस्टम विकसित होने में काफी मदद करता है कंगारू मदर
केयर
अभी तक हुए कई रिसर्च से ये सबूत मिलते हैं कि नवजात शिशुओं के लिए न
केवल इंसानी स्पर्श बल्कि जानवरों जैसा स्पर्श भी महत्वपूर्ण है। इस बारे डॉ-
ट्टचा सिंह पांडे बताती हैं कि बच्चे जब पैदा होते हैं तो, उन्हें
हाइपोथर्मिया (ठंडा बुखार) का ज्यादा खतरा होता है। ऐसे समय में बच्चों को कंगारू
मॉडल देखभाल की बेहद जरूरत होती है।
कंगारू मॉडल देखभाल में बच्चे को मां के सीने से चिपकाकर रखा जाता है,
ताकि
मां की शरीर की गर्माहट बच्चे तक ट्रांसफर हो सके। ऐसा करने से बच्चे को मां के
शरीर का वह तापमान मिल जाता है जो बच्चे के स्वास्थ्य के लिए बेहद आवश्यक होता है।
डॉ- ट्टचा पांडे के अनुसार पहले केवल कम वजन के पैदा हुए बच्चों को
ही यह सलाह दी जाती थी, क्योंकि उनकी रोगों से लड़ने की क्षमता बेहद कम होती है, वह
जल्दी बीमार हो जाते हैं, लेकिन आज डॉक्टर सभी नवजात बच्चों के
सम्बंध में यह प्रक्रिया अपनाने की सलाह देते हैं। इससे बच्चों में रोग से लड़ने की
क्षमता तो विकसित होती ही है, साथ में मां के साथ एक इमोशनल बॉडिंग
(भावनात्मक रिश्ता) बनता है। बच्चे को सीने से चिपकाने के दौरान यह ध्यान देना
चाहिए बच्चे का चेहरा एक तरफ टर्न हो, ताकि नवजात की नाक न दबे और उन्हें
सांस लेने में तकलीफ न हो।
बच्चों का ख्याल रखें, लेकिन उनके सीखने की प्रक्रिया के बीच
न आएं
डॉ- पियाली भट्टाचार्य कहती हैं, ‘‘बच्चे जिज्ञासु
होत हैं, वे अपने आसपास की दुनिया को समझना चाहते हैं, उनके लिए सब-कुछ
नया होता है। लेकिन कई बार इस सीखने की प्रक्रिया में माता-पिता हस्तक्षेप करने
लगते हैं। वह बच्चे को अपने जैसा बनाने की कोशिश करते हैं, एक प्रक्रिया
में बांधने की कोशिश करते हैं। ‘‘पियाली भट्टाचार्य इस बात पर जोर देती हैं कि
बच्चों का दिमाग शुरुआती वर्षों में सीखने के बेहद अनुकूल होता है। उन्हें अपने
तरीके सी सीखने देना चाहिए, बस इतना ख्याल रखें कि बच्चा सुरक्षित
रहे। बच्चा शुरुआती सालों में खुद से जितना सीखेगा उतना ही ज्यादा समझदार बनेगा।
वह प्रक्रियाओं का पालन नहीं कर सकता। ऐसे कई मौके आएंगे जब आप उन्हें कुछ बता
सकते हैं जैसे उनके लिए गाना गाइए, घुमाइए, उन्हें ये बताइए
कि ये पेड़ है, घर, है, लेकिन उनके सीखने के बीच में नहीं आना चाहिए।
वह आगे कहती हैं, ‘‘छोटे बच्चे एक बात बार-बार सुनना चाहते
हैं, एक ही गाना बार-बार सुनना चाहते हैं। एक ही किताब बार-बार पढ़ना पसंद
करते हैं। वह माता-पिता की भाषा पर भी ध्यान देते हैं। इसलिए माता-पिता को बच्चों
से खूब बातें करनी चाहिए। लेकिन माता-पिता को ध्यान रखना चाहिए कि इस संवाद में
बच्चों की भूमिका ज्यादा होनी चाहिए।
बच्चों के बेहतर मानसिक विकास के लिए माता-पिता को बनना पड़ेगा खुद
बच्चा
डॉ- पियाली भट्टाचार्य और डॉ- ट्टचा सिंह पांडे दोनों का मानना है कि जीवन की इसी शुरुआती दौर में बच्चों की सबसे ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। उन्हें ऐसा माहौल चाहिए जिससे उनका विकास हो सके। उन्हें ऐसे माता-पिता की जरूरत होती है जो उनके लिए बच्चे बन सकें। बच्चे के पहले शिक्षक माता-पिता होते हैं, वो बच्चे से बात करते हैं, उनके साथ गाना गाते हैं, पढ़ते हैं। शुरुआती दौर में बच्चों का दिमाग एक नेटवर्क की तरह काम करता है। इस दौरान सीखी गई सभी बातें उन्हें जीवन भर याद रहती हैं। अगर माता-पिता इन बातों पर ध्यान दें, तो बच्चे में वो सब गुण आएंगे जो माता-पिता चाहते हैं।