मिशन ऑस्ट्रेलिया

2019-08-01 0

- कमल हंसपाल, मेलबॉर्न, ऑस्ट्रेलिया

आस्ट्रेलिया गए हुए हमें लगभग दस साल हो गये हैं। अप्रैल माह में हम आये तो दिन-रात सुबह शाम बारिश ही बारिश। काले घने बादल सूरज कोही नहीं, हमारे दिलों को भी घेरे रहते। अपना देश, देश की मिट्टी व बारिश पड़ने पर मिट्टी से उठने वाली खुशबू को हम महसूस करने की कल्पना करते।

एक सप्ताह बाद बच्चे स्कूल और पति काम पर चले गये। मैं अपने आपको अकेलेपन का कम और पागलपन का शिकार समझने लगी। एक से दो साल तक मैं अपने देश, अपने परिवार व अपने तीज-त्यौहारों को याद करती रही।

थोड़ी स्टडी की ताकि नौकरी मिल सके और अकेलेपन व पुरानी यादों से बाहर निकल सकूं। देश समाज और मानवता की सेवा भावना तो शुरू से ही मन में थी। सौभाग्य से नौकरी ऐसी मिली जहां की मुख्य शाखा पूरी तरह मानवता की सेवा में समर्पित थी। मेरा काम उनके काम से बिल्कुल अलग था। मगर ये सोच की प्रत्यक्ष नहीं तो अप्रत्यक्ष रूप से ही सही मैं मानवता के करीब हूं।

मिशन आस्ट्रेलिया एक ऐसी संस्था है जो बेघर, ड्रग्स में पड़े व्यक्तियों की मदद करती है। असहाय व मजबूर लोगों के लिए रहने, खाने की व्यवस्था करती है।

इस संस्था से जुड़े व्यक्ति अपना ही नहीं, दूसरों की अधिकांश भावनाओं व मूल्यों की भी रक्षा करते हैं। ये संस्था 160 देश की सेवा कर रही है। जिसकी मुख्य शाखा सिडनी में ये सबका ख्याल केसे करते हैं। इसका उदाहरण मैं इस घटना से स्पष्ट करती हूं।

हमारा रोस्टर साप्ताहिक बनता है। अगले हफ्रते मुझे अपना काम सात बजे शुरू करना था यानि मुझे घर से छः बजे निकलना होगा। छः बजे यानी घनी धुंध। शुक्रवार शाम को मुझे फोन आया कि सात बजे आने में कोई मुश्किल तो नहीं, मैंने कहा ‘‘आ तो जाऊंगी मगर धुंध में थोड़ा-सा डर लगता है। मेरी डायरेक्टर बोली ‘‘आप 1030 बजे आओ। सात बजे के लिए मैं उसको बुलाती हूं जो बिल्कुल 20 मिनट की दूरी पर रहती हो। ऐसी संस्था जहां ध्यान व ख्याल रखा जाता है सबका उसका तुच्छ हिस्सा समझने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। ये मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। 



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