ग्राम प्रधाान की सोच पर ही निर्भर करती है गांव की तस्वीर

2019-08-01 0


 

गांव में गए होंगे अभी तक आपने देखा होगा कि किसी के राशन कार्ड नहीं बने तो कहीं स्वच्छता का अभाव है तो किसी के घर शौचालय की दिक्कत है लेकिन हम आपको एक ऐसे प्रधाान और गांव से मिलवा रहे हैं जो इन सारी समस्याओं से मुक्त हैं।

लखनऊ से 40 किलोमीटर दूर मोहनलालगंज ब्लॉक के लालपुर गांव की रहने वाली गायत्री जो कि हरिता स्पवयं सहायता की कोषाध्यक्ष हैं बताती हैं, ‘‘हमारा गांव पहले बहुत गन्दा रहता था फिर बनारस से लोग आये और हम लोगों को प्रशिक्षण दिया अभी हरिता स्वयं सहायता में 5 औरतें काम करती हैं प्रधान जी के सहयोग से अभी हम लोगों को रोजगार भी मिलता है और हमारा गांव भी साफ रहता है।’’

ग्राम प्रधान ज्ञानेन्द्र सिंह को 28 मई को मेंस्टुअल हाईजिन डेपर अपने गांव में माहवारी पर किए गये काम के लिए वॉटर ऐडकी तरफ से पुरस्कार भी मिल चुका है। डीएम के तरफ से स्वच्छता के लिए भी अवार्ड मिला है।

ज्ञानेन्द्र सिंह कहते हैं? ‘‘मैं 2015 में प्रधान चुना गया, पहले के प्रधानों द्वारा भी काम किया गया था। सरकारी भवनों के निर्माण हुए थे, लेकिन उनके रख-रखाव की कमी के कारण भवन भी खंडहर की दशा में पहुंच गए। मैं जब ब्लॉक गया तो मुझे ओडीएफ का पर्चा थमाया गया तब मुझे पता भी नहीं था कि ये क्या होता है’’

वो आगे बताते हैं, ‘‘मुझे लगा कि कोई लोहिया गांव या जनेश्वर गांव जैसी योजना होगी खूब पैसे आएंगे, लोगों को खूब हैंडपंप आवास मिलेंगे लेकिन जब मुझे वो पर्चा थमाकर पूछा गया कि आपके गांव में कितने घर शौच मुक्त हैं तो मैं थोड़ा सहम गया फिर मुझे लगा कि ये तो बड़ी जिम्मेदारी का काम है तभी मैंने सोचा कि मुझे अपने गांव को ही शौच मुक्त बनाना है।’’

3 मई 2016 को लालपुर गांव शौच मुक्त हो गया, फिर वॉटर ऐड वाले आए सर्वे किया हम लोगों को माहवारी के बारे और पैड या गंदे कपड़ों का कैसे निस्तारण होगा इस बारे में जानकारी दी इससे पहले मुझे भी इसकी जानकारी नहीं थी।

वो बताते हैं, ‘‘घर में पहले माताजी भाभी को खाना देने या बनाने से भी रोकती थीं मुझे तब लगता था कि माता जी गुस्सा हैं, लेकिन अब पता चला कि ये व्यवहार माहवारी के कारण था। पहले लोग कुप्रथाओं में घिरे रहते थे खाना नहीं बनाना है, मंदिर नहीं जाना है ऐसी तरह-तरह की बातें जो वो फॉलो करते आ रही थीं अच्छा सबसे बड़ी समस्या नहाने की थी कि इस अवस्था में नहाना नहीं है तो मैंने पूछा ऐसा क्यों तो वो बताती थीं कि तालाब में नहाना होता था और लोग तालाब का पानी पीते थे तब मुझे लगा कि वाकई ये बड़ी समस्या थी।’’

अब मैं खुद इस मुद्दे पर जागरूक हूं और भी जो हमारे गांव की लड़कियां हैं वो इसके बारे में सुनकर झिझक जाती थीं, लेकिन अब वो खुद लोगों के घरों में जाकर जागरूक करती हैं इस पर चर्चाएं होती हैं, कार्यक्रमों में हिस्सा लेती हैं।

कूड़ा निस्तारण की बेहतरीन व्यवस्था

गांवों में आज भी कूड़ा निस्तारण सबसे बड़ी समस्या है। सफाई के प्रति लोग जागरूक ता हो रहे हैं लेकिन कूड़ा निस्तारण के प्रति सरकार इतनी सजग नहीं दिखती, इसके लिए कोई व्यापक योजना भी नहीं है। लेकिन इस मामले में भी यह गांव अपवाद है। इस बारे में प्रधान ज्ञानेन्द्र सिंह कहते हैं, ‘‘हम शौच मुक्त हो गये लेकिन फिर भी लोग बीमार पड़ रहे थे। मैंने अपने गांव को देख कि कूड़ा फेंकने को लेकर दिक्कत आ रही है। लोग कूड़ा सड़कों पर या किसी सरकारी जगह पर

फेंक देते थे जिससे मच्छर पनपते थे। मैंने प्लास्टिक पर काम करना शुरू किया।’’

गीले और सूखे कपड़ों के बारे में लोगों को बताया फिर वॉटर ऐड तथा वात्सल्य (एनजीओ) के माध्यम से ढाई सौ घरों में लाल और हरा डस्टबीन रखवाया। हरिता स्वयं सहायता की महिलाओं द्वारा कूड़ा कलेक्ट किया जाता है। जिसको एक सेंटर पर ले जाकर सूखे और गीले कचरों की छंटनी होती है। सूखे कचरों में से बिकने लायक सामनों को निकाल लिया जाता है। गीले कचरे से खाद बनाया जाता है। हमारे इस प्रयास से गांव के 80 फीसदी लोग अपना सहयोग दे रहे हैं।

शिक्षा पर भी काम किया है

प्रधान बताते हैं कि शिक्षा की हालत भी खस्ता थी फिर मैंने सोचा कि क्या किया जाये तो मैंने जो रिटायर हो चुके हैं उनसे बात की कि वो अगर पढ़ाने के इच्छुक हैं तो उन लोगों ने हामी भर दी। इस तरह वो बच्चों को ट्यूशन देते हैं। (स्कूल में भी काफी दिक्कत थी शौचालय टूटे थे उनकी मरम्मत करवा ऑरो लगवाया तथा टीचरों को रेगुलर आने को बोला)।

नशा और गरीबी मुक्त बनाना है गांव

वो बताते हैं, ‘‘हमने शौच मुक्त किया, माहवारी पर काम किया, स्वच्छता पर काम किया लेकिन अब समस्या है कि गांव को गरीबी मुक्त कैसे किया जाये। मैंने अपने गांव में एक सर्वे करवाया था, जिसक मुताबिक करीब ढाई सौ परिवारों सौ परिवारों जो अंत्योदय कार्डधारक हैं, 80 लोग जो बीपीएल कार्ड धारक हैं उनका रेश्यो लगाया तो लगभग 8500 रुपए रोज पान-पुड़िया पर खर्च किया जा रहा हैै तो मुझे लगा कि जिसकी आमदनी ढाई सौ रुपए प्रतिदिन है और वो सौ रुपए बीड़ी-दारू पर खर्च देता है।’’

वो कहते हैं कि ‘‘अगर ये आदत छूट जाये तो लगभग 9000 तक की बचत होगी लेकिन दूसरे की आदत भी छुड़वाना एक चुनौती है लेकिन हम पीछे नहीं हटेंगे शौचालय भी एक समस्या थी उसका भी हमने निस्तारण किया। हां, इसमें वक्त लगेगा लेकिन हम पीछे नहीं हटेंगे।

आसपास के गांवों के लिए प्रेरणा है

पहले आसपास के गांव के प्रधान काम को लेकर या जागरूकता को लेकर कोई कदम उठाना नहीं चाहते थे, लेकिन जबसे मुझे मेरे कार्यों के लिए पुरस्कार मिलने लगे, बडे़-बड़े स्टेजों पर मेरा नाम लिया जाने लगा तो और प्रधानों पर प्रभाव पड़ा वो भी स्वच्छता को लेकर काम करने लगे। मुझे अभी मेंस्टुअल हाईजीन डे पर माहवारी को लेकर किए गये काम के लिए पुरस्कार मिला है। डीएम के

द्वारा भी पुरस्कृत किया गया हूं। मेरे गांव की ही एक महिला कतला देवी को पचास लोगों में पुरस्कार दिया गया। हमारे गांव की चर्चा विदेशों में भी पहुंच गई। ऑस्ट्रेलिया, यूके, दक्षिण कोरिया से भी लोग आये हमारे गांव को विजिट किया और खूब प्रशंसा भी की। 



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