आस्था एवं श्रध्दा का त्यौहार - जन्माष्टमी

2019-08-01 0


जन्माष्टमी अर्थात कृष्ण जन्मोत्सव इस वर्ष जन्माष्टमी का त्यौहार 23/24 अगस्त 2019 को मनाया जाएगा। जन्माष्टमी जिसके आगमन से पहले ही उसकी तैयारियां जोर शोर से आरंभ हो जाती है पूरे भारत वर्ष में इस त्यौहार का उत्साह देखने योग्य होता है। चारों का वातावरण भगवान श्री कृष्ण के रंग में डूबा हुआ होता है। जन्माष्टमी पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।

पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु के ने पृथ्वी को पापियों से मुत्तफ़ करने हेतु कृष्ण रूप में अवतार लिया, भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी और वासुदेव के पुत्ररूप में हुआ था। जन्माष्टमी को स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय के लोग अपने अनुसार अलग-अलग ढंग से मनाते हैं। श्रीमद्भागवत को प्रमाण मानकर स्मार्त संप्रदाय के मानने वाले चंद्रोदय व्यापनी अष्टमी अर्थात रोहिणी नक्षत्र में जन्माष्टमी मनाते हैं तथा वैष्णव मानने वाले उदयकाल व्यापनी अष्टमी एवं उदयकाल रोहिणी नक्षत्र को जन्माष्टमी का त्यौहार मनाते हैं।

जन्माष्टमी के विभिन्न रंग रुप

यह त्यौहार विभिन्न रुपों में मानाया जाता है कहीं रंगों की होली होती है तो कहीं फूलों और इत्र की सुगंन्ध का उत्सव होता तो कहीं दही हांडी फोड़ने का जोश और कहीं इस मौके पर भगवान कृष्ण के जीवन की मोहक छवियां देखने को मिलती हैं  मंदिरों को विशेष रुप से सजाया जाता है। भत्तफ़ इस अवसर पर व्रत एवं उपवास का पालन करते हैं इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है तथा कृष्ण रास लीलाओं का आयोजन होता है।

जन्माष्टमी के शुभ अवसर समय भगवान कृष्ण के दर्शनों के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु मथुरा पहुंचते हैं। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर ब्रज कृष्णमय हो जाता है। मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। मथुरा के सभी मंदिरों को रंग-बिरंगी लाइटों व फूलों से सजाया जाता है। मथुरा में जन्माष्टमी पर आयोजित होने वाले श्रीकृष्ण जन्मोत्सव को देखने के लिए देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से लाखों की संख्या में कृष्ण भत्तफ़ पंहुचते हैं। भगवान के विग्रह पर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाबजल, मखन, केसर, कपूर आदि चढ़ाकर लोग उसका एक दूसरे पर छिड़काव करते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं तथा भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है और रासलीला का आयोजन किया जाता है।

जन्माष्टमी व्रत पूजा विधि

शास्त्रें के अनुसार इस दिन व्रत का पालन करने से भत्तफ़ को मोक्ष की प्राप्ति होती है यह व्रत कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है। श्री कृष्ण जी की पूजा आराधना का यह पावन पर्व सभी को कृष्ण भक्ति  से परिपूर्ण कर देता है। इस दिन व्रत-उपवास करने का विधान है। यह व्रत सनातन-धर्मावलंबियों के लिए अनिवार्य माना जाता है। इस दिन उपवास रखे जाते हैं तथा कृष्ण भक्ति के गीतों का श्रवण किया जाता है। घर के पूजागृह तथा मंदिरों में श्रीकृष्ण-लीला की झांकियां सजाई जाती हैं। जन्माष्टमी पर्व के दिन प्रातःकाल उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पवित्र नदियों में, पोखरों में या घर पर ही स्नान इत्यादि करके जन्माष्टमी व्रत का संकल्प लिया जाता है।

पंचामृत व गंगा जल से माता देवकी और भगवान श्रीकृष्ण की सोने, चांदी, तांबा, पीतल, मिट्टी की मूर्ति या चित्र पालने में स्थापित करते हैं तथा भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति नए वस्त्र धारण कराते हैं। बालगोपाल की प्रतिमा को पालने में बिठाते हैं तथा सोलह उपचारों से भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करते है। पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी आदि के नामों का उच्चारण करते हैं तथा उनकी मूर्तियां भी स्थापित करके पूजन करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण को शंख में जल भरकर, कुश, फूल, गंध डालकर अर्घ्य देते हैं। पंचामृत में तुलसी डालकर व माखन मिश्री का भोग लगाते हैं।

रात्रि समय भगवद्गीता का पाठ तथा कृष्ण लीला का श्रवण एवं मनन करना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्राम का दूध, दही, शहद, यमुना जल आदि से अभिषेक किया जाता है तथा भगवान श्री कृष्ण जी का ‘षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाता है। भगवान का श्रृंगार करके उन्हें झूला झुलाया जाता है। श्रद्धालु भत्तफ़ मध्यरात्रि तक पूर्ण उपवास रखते हैं। जन्माष्टमी की रात्रि में जागरण, कीर्तन किए जाते हैं व अर्धरात्रि के समय शंख तथा घंटों के नाद से श्रीकृष्ण-जन्मोत्सव को संपन्न किया जाता है। 



मासिक-पत्रिका

अन्य ख़बरें

न्यूज़ लेटर प्राप्त करें