क्यों वाजपेयी और मोदी जैसे अच्छे वक्ता भारतीय विपक्ष के पास नहीं है

2019-08-01 0


‘‘यह महज संयोग नहीं है कि भाजपा के दोनों प्रधानमंत्री, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी असाधारण वाचक रहे हैं। भाजपा सार्वजनिक भाषण पर ज्यादा जोर देती है। ’’

तृणमूल सांसद महुआ मोइत्र की लोकसभा में दिया गया पहला भाषण, चर्चा का विषय बना है। याद नहीं कि आखिरी बार किस राजनेता का भाषण इस हद तक चर्चा का विषय बना था।

संसद में दिए गए मोइत्र के भाषण ने लोगों की खूब तालियां बटोरी। क्योंकि उन्होंने काफी सारे लोगों की भावनाओं को सामने रखा। बहुतों को लगता है कि मोदी फासिस्ट हैं लेकिन कुछ ही लोग हैं जो इसे कह पाते हैं। उनके इस भाषण के वायरल होने के पीछे कई कारण हैं। उन्होंने जोश और उत्साह से लबरेज इसे अच्छी तरह से प्रस्तुत किया था। एक अच्छे राजनीतिक भाषण की तरह, इसने आपको युद्ध लड़ने की अच्छी भावना दी है।

हालांकि, ध्यान देने वाली बात यह भी है कि उनका भाषण हिंदी और बांग्ला में न होकर अंग्रेजी में था। वो भी तब जब देश में केवल 10 प्रतिशत भारतीय अंग्रेजी बोलने का दावा करते हैं। अंग्रेजी में अच्छा भाषण देने से आप एलीट लिबरल की तालियां तो बटोर सकते हैं लेकिन हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषा में दिया गया भाषण ही आपको वोट दिलाएगा। विपक्ष में आपको बहुत सारे अच्छे अंग्रेजी के वत्तफ़ा मिल जाएंगे। वहीं भाजपा के पास हिंदी में अच्छे वक्ताओं  की भरमार है।

यह महज संयोग नहीं है कि भाजपा के दोनों प्रधानमंत्री, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी असाधारण वाचक रहे हैं। यह कहना मुश्किल है कि मोदी केवल अपनी बोलने की कला के कारण कितने वोट बटोरते हैं, लेकिन इसमें थोड़ा संदेह नहीं कि मतदाताओं के लिए उनकी अपील उनके वोटबैंक में इजाफा करने में एक बड़ा हिस्सा है। मैं ऐसे मतदाताओं से मिला हूं जो कहते हैं कि मोदी को बोलता हुआ देख वे बहुत ‘अच्छा महसूस करते हैं’।

मैंने देखा है कि लोग अपना काम छोड़कर मोदी के भाषणों का सीधा प्रसारण देखते हैं। चुनावों में जब भाजपा किसी सीट पर खराब प्रदर्शन कर रही होती है तो, पार्टी कार्यकर्ता आपको बताते हैं, ‘मोदी अगले सप्ताह एक रैली को संबोधित करने के लिए यहां आ रहे हैं। तब चीजें बदल जाएंगी। एक भाजपा नेता ने मुझे बताया कि उनके अनुमान के मुताबिक, मोदी की रैलियां एक सीट पर वोट-शेयर में चार प्रतिशत का अंतर लाती हैं।

राष्ट्रपति अभियान के लिए राष्ट्रपति का टेलीप्रॉम्प्टर

मोदी की रैलियों को टीवी कार्यक्रमों के लिए डिजाइन किया गया है, इसलिए उनका यह प्रभाव केवल वहां तक सीमित नहीं है जहां वह बोल रहे हैं। एक जमाना था, (अब याद रखना मुश्किल है), जब समाचार चैनल अधिकांश राजनेताओं

द्वारा दिए गए भाषणों के केवल प्रमुख हिस्सों को प्रसारित करते थे। किसी समाचार चैनल ने शायद ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के भाषण को पूर्ण रूप से प्रसारित किया था। लेकिन 2013 में, जैसे ही मोदी अभियान शुरू हुआ, समाचार चैनलों ने मोदी की रैली के भाषणों का सीधा प्रसारण शुरू कर दिया, वो भी शुरू से अंत तक। टीवी चैनलों में शीर्ष निर्णय निर्माताओं, संपादकीय और अन्य ने मुझे बताया है कि पर्दे के पीछे क्या हुआ। मोदी के भाषणों ने अच्छी टीआरपी अर्जित की।

ब्रांड मोदी को बनाने में भाषण की भूमिका इस कदर महत्वपूर्ण है कि वह राष्ट्रपति टेलीप्रॉम्प्टर का उपयोग करने वाले एकमात्र भारतीय राजनेता हैं, हालांकि ये पश्चिम में बहुत आम बात है। अधिकांश विपक्षी नेताओं को यह भी पता नहीं है कि यह कैसे काम करता है। फर्श पर लगी एलसीडी स्क्रीन ऊपर दिए गए पारभासी ग्लास पर शब्दों को दर्शाती हैं, और एक पोडियम पर दो सेट होते हैं, एक स्पीकर के बाएं और दूसरा स्पीकर के दाईं ओर। इस प्रकार वत्तफ़ा दाएं से बाएं घूमते हुए एक पूरे भाषण को पढ़ सकता है। दर्शकों को यह महसूस नहीं होता कि वत्तफ़ा देखकर बोल रहा है। राष्ट्रपति के टेलीप्रॉम्पटर किसी को भी एक अच्छे वत्तफ़ा की तरह दिखा सकते हैं, हालांकि अगर टेलीप्रॉम्पटर टूट जाए तो फिर उस बेचारे वत्तफ़ा का भगवान ही मालिक हैं।

विपक्ष का कोई नेता इसको लेकर सोचता क्यों नहीं है। राष्ट्रपति के टेलीप्रॉम्पटर का उपयोग क्या है? मोदी इसका उपयोग क्यों करते हैं? हमारे विपक्षी नेता राजनीतिक प्रचार के लिए अपने दृष्टिकोण में इतने आकस्मिक हैं कि उन्हें नहीं लगता कि उन्हें सीखने या सुधार करने की आवश्यकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि विपक्ष उन राजवंशों से भरा है, जिन्हें अपनी पार्टियों में उठने के लिए अपनी सूक्ष्मता को साबित नहीं करना है। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि महुआ मोइत्र किसी राजवंश से नहीं आती हैं। वह कठिन रास्तों पर चलते हुए आगे बढ़ रही हैं।

अच्छे वत्तफ़ा आज की मांग है

भारत में ऐसे कई राजनेता हैं जो वाक चातुर्य तो नहीं हैं लेकिन वत्तफ़ा होने के बावजूद सफल हुए हैं। मुलायम सिंह यादव और अशोक गहलोत की भाषा समझ से बाहर है। नीतीश कुमार और मायावती की भाषण कला बहुत ही फीकी है। सोनिया गांधी का विदेशी लहजा सामने आ जाता है। और नवीन पटनायक ओडिया ही बोलते हैं। लालू प्रसाद यादव जैसे अपवाद ही केवल इस धारणा को साबित करते हैं। भारतीय राजनीति में सफल होने के लिए आपको वास्तव में एक अच्छे संचालक होने की आवश्यकता नहीं है।

हालांकि, 24 घंटे चलने वाले समाचार चैनलों के आने के बाद और सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से साझा हो रहे कंटेंट के बीच भाषण की वैल्यू बढ़ गई है। जिस समय नवीन पटनायक और मुलायम सिंह अपना करियर शुरू कर रहे थे उसकी अपेक्षा आज के समय में हम जितने राजनेताओं को देख और सुन रहे हैं वो काफी ज्यादा है।

अच्छे वत्तफ़ाओं की कमी के साथ, विपक्ष ने भारतीय मतदाता का ध्यान खो  दिया है। महुआ मोइत्र ने कम से कम अंग्रेजी दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया है। भाजपा उनके खिलाफ अभियान चलाने पर पर्याप्त रूप से खतरा महसूस कर रही है। भाजपा को यह खतरा महसूस इसलिए भी हो रहा क्योंकि उनके भाषण से लोग यह सोचने सकते हैं कि क्या मोदी सरकार ‘फासीवाद के संकेत’ दिखा रही है। अच्छा भाषण लोगों को सुनने के लिए मजबूर करता है।

प्रमोद महाजन का योगदान

भाजपा और आरएसएस हमेशा राजनीतिक संचार में अच्छे भाषण का मूल्य जानते थे। वे लंबे समय से इसको आगे बढ़ाने में लगे हैं। उन्होंने 1982 में भावी राजनेताओं को प्रशिक्षित करने के लिए एक संस्थान स्थापित किया, रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी, जो नेतृत्व के अन्य पहलुओं के बीच सार्वजनिक बोलना सिखाती है। सार्वजनिक बोलने की कार्यशालाओं में अपने कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित करने वाली इस योजना का कांग्रेस के लिए कल्पना करना मुश्किल है। पार्टी बड़े नेताओं को हतोत्साहित करती है।

मुझे बीजेपी-आरएसएस के इकोसिस्टम में भाषण के महत्व का एहसास तब हुआ जब एक बीजेपी कार्यकर्ता ने मुझे प्रमोद महाजन का एक पुराना वीडियो देखने के लिए कहा। फायरब्रांड भाजपा नेता ने एक बार पार्टी कार्यकर्ताओं के एक समूह को संबोधित किया, उन्हें सार्वजनिक बोलने का प्रशिक्षण दिया। महाजन की 2006 में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी लेकिन आज भी, भाजपा कार्यकर्ता उनके व्याख्यान को देखते हैं। (पहला भाग, दूसरा भाग) संयोग से, महाजन भविष्य के भाजपा नेताओं को प्रशिक्षित करने के लिए रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी का उपयोग करने में एक प्रेरक शत्तिफ़ थे।

व्याख्यान में एक बिंदु पर, महाजन कहते हैं कि यदि आप पहले कुछ मिनटों में श्रोता के दिमाग (‘कब्जे में न लें) तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितना महत्वपूर्ण प्वाइंट बोल रहे हैं, आप श्रोता का ध्यान हार गए हैं।

अच्छे संचालकों की कमी के साथ, विपक्ष ने भारतीय मतदाता का ध्यान खो दिया है। महुआ मोइत्र ने कम से कम अंग्रेजी दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया है। भाजपा स्पष्ट रूप से उसके  खिलाफ अभियान पर जाने के लिए पर्याप्त रूप से खतरा महसूस करती है। भाजपा को खतरा महसूस हुआ क्योंकि उनके भाषण से लोग यह सोचने लग सकते हैं कि क्या मोदी सरकार ‘फासीवाद के संकेत’ दिखा रही है। यह वही है जो अच्छा भाषण देता है, लोग उसको सुनते हैं। 



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