कुछ बड़ा करें या फिर घर बैठें- विजय शेखर शर्मा (पेटीएम)

2018-08-01 0

कुछ बड़ा करें या फिर घर बैठें-  विजय शेखर शर्मा (पेटीएम)


मैं 15 वर्ष का था और क्लास में सबसे छोटा था। मैं बहुत शर्मिन्दा था कि कैसे मैं पहले बेंच से मिला-जुलाकर पिछले बेंच पर चला गया और फिर क्लास से बाहर। प्रोफेसर कहा करते थे कि आप कितने उम्र के हो भूल जाओ। आपने पहले क्या किया भूल जाओ। लेकिन मुझे हमेशा लगता था कि मैं क्लास में टॉपर था। मैं इतने पीछे कैसे चला गया, क्या हो गया मुझे? मेरे पास कोई दोस्त भी नहीं था जो मुझे इस मनः स्थिति से मुझे बाहर निकाल पाता। 

मैं 13 वर्ष का था जब मेरी स्कूल की पढ़ाई समाप्त हुई। मेरे पास 1 वर्ष था इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा के लिए लेकिन फिर भी मैं नर्वस था। क्योंकि सभी प्रवेश परीक्षाएं अंग्रेजी में होती थीं और मैं हिन्दी मीडियम से पढ़ा हुआ था। मैं सोचता रहता था कि मैं पास हो पाऊंगा या नहीं। कुछ ऐसे क्लासमेट भी थे जिनके पास चप्पल तक नहीं था, ये बात मुझे बहुत तकलीफ देती थी। 

मेरे पिताजी एक स्कूल मास्टर थे और घर चलाने के लिए एकमात्र कमाने वाले व्यक्ति थे। वे ट्यूशन नहीं पढ़ाते थे। उनका मानना था कि शिक्षा सभी के लिए होनी चाहिए लेकिन ये आसान नहीं था। हम 6 लोग थे जिनकी जिन्दगी एक शिक्षक के वेतन पर निर्भर थी। मुझे याद है कि बहन की शादी के लिए किस तरह से 2 लाख रुपए जमा किए थे। अपने परिवार को इन सभी मुसीबतों से बाहर निकालने का एक प्लान मेरे दिमाग में आया कि मैं नौकरी करूंगा और 10 हजार सैलरी मिलेगी जिससे सबकुछ ठीक हो जाएगा। 

हिन्दी भाषी होने के कारण मेरी दुनिया सिमट के रह गई थी। मैंने हिन्दी और अंग्रेजी की किताब साथ-साथ पढ़ने का फैसला किया। जिसका बेहतर परिणाम सामने आया। आईआईटी रुड़की में मेरा सेलेक्शन नहीं हो पाया तो मेरे पिता जी ने कहा कि मैं दिल्ली इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिले के लिए कोशिश करूं। फिर मैंने दिल्ली इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिले के लिए कोशिश की और अच्छे नम्बर से पास हो गया। तब काउंसिलिंग सेशन में मेरे और मेरे पिताजी का एक प्रश्न था कि कौन से स्टिम में सबसे ज्यादा कैम्पस सेलेक्शन होता है। उन्होेंने कहा Electronics and Communication.

            अंग्रेजी सीखने की जिज्ञासा ने मेरी आंखें खोल दीं। मैंने अंग्रेजी न्यूज पेपर, मैगजीन पढ़ना शुरू किया। रविवार के दिन मार्केट जाकर पुरानी बिजनेस मैगजीन लाना शुरू किया। मैं ज्यादा से ज्यादा समय लैब में बिताता था। मुझे प्रोग्रामिंग करने में ज्यादा मजा आता था। उससे भी बड़ी बात थी कि मैं पैसा कमा सकता था और मुझे नौकरी करने की जरूरत नहीं थी, हो सकता है मेरी अंग्रेजी कमजोर होने के कारण ही मुझे अपनी कम्पनी ओपन करने में  मदद मिली हो।

            मैं परीक्षा में पास होने के लिए पढ़ने से ज्यादा अपनी प्रोग्रामिंग करता था। इसलिए मैं फेल हो गया। फेल होना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। क्योंकि मेरी प्रोग्रामिंग काफी अच्छी हो गई थी। अब मुझे जरूरत थी अपनी कम्पनी के लिए कानूनी प्रक्रिया पूरी करने की। मैंने अपनी कम्पनी का पता दिया 37. ECE K Gate, Delhi.  अब मुझे जरूरत थी कस्टमर की। मैंने न्यूज पेपर का क्लासीफाइड पेज देखा और प्रोग्रामिंग की वैकेंसी मिल गई। मैं इण्टरव्यू देने गया। अब मैें सैलरी के लिए बात कर रहा था।  मैंने कहा मैं जॉब नहीं कर सकता। इण्टरव्यू वाले ने कहा फिर आप यहां क्यों आये हो? तो मैंने कहा ये मेरा क्लाइंट ढूंढ़ने का तरीका था। उसमें से एक ने हंसते हुए कहा ये तुम्हारा क्लाइंट ढूंढ़ने का अनोखा तरीका है। इस तरह से मुझे बहुत कुछ मिला भी और बहुत कुछ खोया भी। इससे मुझे कम्पनी के नियम-कानून के बारे में भी सीखने का मौका मिला। 

            मैंने जेट एयरवेज के लिए वेब प्रोग्राम लिखा और वेबसाइट ट्रेवल  इन इंडिया के नाम से बनाया। इसके लिए जेट एयरवेज ने मुझे 1000 रुपया दिया जो कि मेरी पहली कमाई थी और मैं बहुत खुश था। हमने पिज्जा पार्टी मनाई। अब मुझे पढ़ने की जरूरत नहीं थी। लेकिन मेरे प्रिंसिपल का मानना कुछ और था। उन्होंने मुझे मौका दिया और इस बात मैं पास हो गया। कैम्पस सेलेक्शन में मुझे सबसे ज्यादा सैलरी ऑफर की गई। मेरे माता-पिता का सपना साकार हो रहा था, वे लोग बहुत खुश थे लेकिन मैं खुश नहीं था। एक महीने बाद जब मैं घर गया तो माता-पिता जी से वादा किया कि मैं आपको हर महीने पैसा भेजता रहूंगा। लेकिन कैसे भेजूंगा इसका कोई आइडिया नहीं था। फिर मैंने मैनेज करने का प्लान किया और जॉब ज्वाइन कर लिया। लेकिन 6 महीने बाद नौकरी छोड़ दी। मैंने तीन दोस्तों के साथ X3 CORPS  शुरू किया। हम लोगों ने मीडिया हाउस के कांटेंट मैनेजमेंट सिस्टम बनाया। 1999 के अंत में हमें एक अमेरिकन कम्पनी से ऑफर मिला। 10 लाख डॉलर |1 करोड़ नकद और बाकी के शेयर में। यह एक 20 वर्ष के लड़के लिए बुरा नहीं था। 

            अमेरिका जाना हमारे लिए हमेशा से सपना रहा था। मैं जाने के लिए तैयार हो रहा था। मेरे पिताजी के लिए सफलता बस मल्टीनेशनल कम्पनी में नौकरी पाना और अमेरिका जाना है। लेकिन एक बार फिर अमेरिका ने मेरा वीजा रिजेक्ट करके मुझे पीछे धकेल दिया। जब उन्होंने मेरी सैलरी सर्टीफिकेट देखा। 20 लाख और मेरी उम्र भी 20 वर्ष ही थी। तब उसने मुझे बैंक स्टेटमेंट के लिए बोला। मैं अपना बैंक स्टेटमेंट नहीं दिखा सका। क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि मेरी कम्पनी सेल का खुलासा हो। इस कारण से मेरा वीजा रद्द कर दिया गया। फिर मैंने कोशिश नहीं की। मैंने सोचा मैं कुछ ऐसा बनाऊंगा जिससे वे खुद मुझे बुलाएंगे। 

            2001 में ONE 97 Communication आई तो हमारा आइडिया था कि ऐसा सॉफ्टवेयर बनाएं जिससे आप फोन नम्बर डालो और उसकी सारी डिटेल आ जाये। लेकिन टेलीकॉम कम्पनी ने डाटा प्रोवाइड करने से मना कर दिया। लेकिन वो (ज्योतिष सेवा) चाहते थे, मुझे नहीं पता था कैसे? धीरे-धीरे मैं 1/3 हिस्सेदारी से 100% का मालिक हो गया। एक दिन मेरी बहन ने मुझे फोन किया और बोली कि मैं सुन रही हूं कि तुम एक ज्योतिष का व्यापार कर रहे हो। जहां तक मैं जानती हूं तुम एक इंजीनियर हो। मैंने फोन काट दिया। लेकिन उसकी इस बात से मैं बहुत प्रभावित हुआ। तब मैंने सोचा क्रिकेट स्कोर आर म्यूजिक इससे अच्छा बिजनेस है और मेरी फैमिली भी इसके लिए मना नहीं करेगी। मैं भारती एयरटेल के पास गया और पंजाब सर्किल मांगा और मुझे मिल भी गया। लेकिन इसका मतलब था महत्वपूर्ण निवेश। IVR Platforms and Service  में। 

            मैं पहले जरूरी बिजनेस के पैसे की कमी झेल रहा था। मेरे पास जो पहली कम्पनी के पैसे थे वो भी लगा दिया। मेरे सारे पैसे समाप्त हो चुके थे। अब मुझे पैसों की दिक्कत हो रही थी। तभी मेरे एक रिश्तेदार 24% ब्याज पर 8 लाख रुपए लोन देने के लिए तैयार हो गये।  ये अच्छा सौदा नहीं था लेकिन मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था। अब मुझे भारती एयरटेल से 20 लाख लेना था। मैं सोच रहा था जैसे ही ये पैसा मिलेगा सबसे पहले मैं लोन चुकाऊंगा।

            लेकिन भारती एयरटेल पैसा दे नहीं रहा था। भारती एयरटेल कुछ वरिष्ठ अधिकारी मुझसे पैसे मांग रहे थे पेमेंट करने के लिए। लेकिन मैं घूस देने के लिए तैयार नहीं था। आखिर देता भी तो क्या? उस दिन पता चला कि प्राइवेट कम्पनी में भी भ्रष्टाचार होता है। मैं धीरे-धीरे किसी तरह से अपना बिजनेस और फैलाता गया। 

            एक दिन मेरे मकान मालिक ने 3 बार फोन किया। महीने के किराए के लिए। मैं देर रात को घर जाता था और सुबह घर से जल्दी निकल जाता था ताकि मकान मालिक की नजर मुझ पर न पड़े। तब मैंने एक अजीब-सी नौकरी कर ली। जिससे कि मैं अपने मकान का किराया दे सकूं। इससे मुझे 500 रुपए मिला। इसका मतलब था एक टाइम का अच्छा खाना और मैं रिक्शा से घर जा सकता था। ये मेरा बहुत ही खराब समय चल रहा था। मेरा बिजनेस खराब नहीं था। लेकिन मुझे पैसे की दिक्कत हो रही थी। मैं वापस अपने घर नहीं जाना चाहता था क्योंकि मुझे पता था कि लोग मेरे बारे में क्या सोचते थे। 

            कुछ दिन बाद मैं मेरे मित्र के माध्यम से पीयूष अग्रवाल से मिला। उन्होंने अभी-अभी एक कम्पनी टेक ओवर किया था। जो कि नुकसान में जा रही थी। मैंने उसे नुकसान से बाहर निकाला तो उन्हांेने मुझसे कहा कि आप इस कम्पनी के सीईओ बन जाओ, तो मैंने कहा मेरे पास मेरी अपनी कम्पनी है। 

            मेरे पिता जी को पता था कि सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा है। एक दिन उन्होंने कहा तुम कंपनी किसी और को क्यों नहीं दे देते और कोई जॉब कर लो ताकि कर्ज वापस कर सको। उस समय मैं पिताजी से बातचीत नहीं कर सकता था, सिर्फ सुन सकता था। और अब मुझे प्रोग्रामिंग किए 5 साल हो चुका था। तब मुझे Call Center Manager  की सबसे अच्छी नौकरी मिली थी। मेरी आंखों से आंसू गिर रहे थे। 

            एक बार फिर मैं विपुल अग्रवाल के पास गया और उससे एक डील फाइनल किया। आधे समय आपकी कम्पनी में काम करूंगा और आधे समय मैं मेरी कम्पनी में। दोनों जगह मैनेज करना आसान नहीं था। मैं दोनों जगहों पर नहीं कर पाया। 

            एक दिन विपुल ने मुझसे मेरी पूरी कहानी पूछा। मैंने बता दिया तो उसने कहा ‘‘जाओ जो करना चाहते हो वो करो’ ये वो थे जो मैं सुनना चाहता था। उसने 8 लाख कैश दिया और 8 लाख ऑफिस और टेक्नॉलॉजी पर खर्च किया और 40% कम्पनी ले लिया। मैं लोन वापस कर दिया। वहां से हमारा बिजनेस आगे बढ़ा फिर मैं पीछे मुड़कर नहीं देखा। 

             2006 में हमने अपना राजस्व 5 करोड़ का दिखाया। अब मेरी सारी दिक्कतें समाप्त हो गई थीं। एक दिन मैं अपने क्लासमेट से मिला। उसने कहा मेरे भी पैसे आप अपनी कम्पनी में लगा दो। SVB और SAIF ने $5 मिलियन  2007 में निवेश किया। अब हमारा राजस्व 11 करोड़ था। म्ठप्ज्क्। ने 2008 में 5-6 करोड़ निवेश किया। फिर हम लोगों ने प्च्व्  लाने का सोचा और हमारा राजस्व 200 करोड़ हो गया। जितना हमने संघर्ष किया वो मिल गया। 

            10 जून 2010 को स्टीवजॉव ने एक  नया मोबाइल लांच किया जिसमें एप्स था। मैं समझ गया कि अब लोग मोबाइल इंटरनेट में शिफ्ट हो जायेंगे। अब मेरा धंधा समाप्त होने जा रहा था। जिस बिजनेस को इतनी मेहनत करके इतने ऊपर तक लाया वो अब नीचे जा रहा था। हमारा बिजनेस फीचर फोन से जुड़ा था और फीचर फोन अब बाजार से जाने की कगार पर था। मुझे पता था लोग App और गेम खरीदेंगे। 

            हमने डिजिटल सामान बेचना शुरू किया ताकि कस्टमर  Paytm Account  बनाये और पेटीएम सिस्टम को इस्तेमाल करे। लेकिन इसमें एक बहुत बड़ी दिक्कत आ रही थी। अगर पेमेंट नहीं हो पाता था तो उसे रिफंड करने में बैंक 7-8 दिन लगा देता था। हमें ई-मेल और मैसेज मिलने लगा जिसमें कहा जाता था कि कम्पनी अच्छी नहीं है, कम्पनी चोर है, पैसे वापस नहीं किए जाते हैं। तब हमने  Mobile Wallet  बनाया जिसमें पैसा आसानी से रिफंड किया जा सके। उपभोक्ता को लगने लगा कि पैसा सुरक्षित है। उसके बाद हम बस टिकट बेचने लगे। अब हम किराना स्टोर, पान की दुकान, सब्जी की दुकान, पेट्रोल पंप के साथ टायअप किया और स्टीकर लाया उपभोक्ता के कोड नं. के साथ Code Scan  करो और भुगतान करो। इस तरह से हमारे साथ 85000 व्यापारी उपभोक्ता हो गये। 2015 तक हमारे पास 125000 व्यापारी उपभोक्ता हो गये थे।


ये भी पढ़ें- भीम एप में इस बड़े बदलाव से दूरी होगी आपकी मुश्किल



मासिक-पत्रिका

अन्य ख़बरें

न्यूज़ लेटर प्राप्त करें