व्यक्तिगत अनुभवः विदेश में पढ़ने करने के लिए सही फ़ैसला कैसे लें

2019-09-01 0


अमेया देशमुश जब ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे थे, तो उनको लगा कि उनकी दिलचस्पी कम्यूनिकेशन में है। उस समय वह तमिलनाडु के वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलजी ( VIT) से बीसीए कर रहे थे। अनिल को लगा कि उनको किसी सॉफ्टवेयर ऐप्लिकेशन के बैकएंड प्रोसेस को समझने के मुकाबले लोगों से संचार में ज्यादा मजा आता है।

निल जब ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर रहे थे, तो उनको लगा कि उनकी दिलचस्पी कम्यूनिकेशन में है। उस समय वह तमिलनाडु के वेल्लोर इंस्टीटड्ढूट ऑफ टेक्नॉलजी (वीआईटी) से बीसीए कर रहे थे। अनिल को लगा कि उनको किसी सॉफ्टवेयर  ऐप्लिकेशन के बैकएंड प्रोसेस को समझने के मुकाबले लोगों से संचार में ज्यादा मजा आता है।

अपने आस-पास स्थित सांस्कृतिक सोसायटियों और कॉलेज क्लबों का हिस्सा होने के नाते उनकी दिलचस्पी सोशल वर्क में बढ़ी और गांधी फेलोशिप प्रोग्राम जॉइन किया जहां उन्होंने शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सरकारी स्कूलों के साथ काम किया। मौजूदा समय में वह क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी से मास्टर्स इन कम्यूनिकेशन फॉर सोशल चेंज कर रहे हैं।

ऑस्ट्रेलिया को क्यों चुना?

इस बारे में पूछने पर अनिल ने बताया, ‘भारत में यूनिवर्सिटियां कुछ विशिष्ट कोर्स नहीं कराती हैं। इसलिए मुझे विदेश में अवसर खोजना पड़ा। यूएस और कनाडा की यूनिवर्सिटियों में कम से कम 16 सालों की शिक्षा का रेकॉर्ड चाहिए होता है जबकि यूरोप में सिर्फ एक साल के अंदर फास्ट ट्रैक कोर्स ऑफर किया जाता है। कई विकल्पों पर गौर करने के बाद मुझे ऑस्ट्रेलियाई यूनिवर्सिटियां काफी सही लगीं।’ उन्होंने यह भी बताया कि शायद क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी दुनिया की एकमात्र यूनिवर्सिटी है जहां कम्यूनिकेशन फॉर सोशल चेंज का एक सेंटर है और दो सालों की अवधि वाला एक कोर्स ऑफर करती है। इस कोर्स के दौरान बुनियादी स्किल्स पर फोकस किया जाता है और ऐसे प्रोफेसरों का संरक्षण प्राप्त होता है जिनको फील्ड का प्रचुर अनुभव है।

सोच का दायरा बढ़ाएं

अनिल ने बताया, ‘अगर किसी को विदेश में पढ़ने का मौका मिले तो उसे छोड़ना नहीं चाहिए क्योंकि उससे आपकी सोच का दायरा बढ़ता है। छात्रों के लिए छलांग लगाना और अलग-अलग संस्कृति, लोगों का अनुभव होना जरूरी है। उनको यह भी पता चलना चाहिए कि अलग-अलग देशों में शिक्षा को किस तरह देखा जाता है।’

अनिल ने बताया, ‘ऑस्ट्रेलिया के लोग मैत्री और सहयोगी स्वाभाव के हैं। वे विभिन्न नस्लों और संस्कृतियों से आते हैं। इससे आपको कुछ अलग अनुभव प्राप्त होता है।’

वीजा

अनिल के पास हर हफ्रते 20 घंटे काम करने का वर्क परमिट है। इससे वह नजदीक ही पार्ट टाइम काम करके पढ़ाई के साथ-साथ अपने रोजाना के खर्च भी निकाल लेते हैं। ऑस्ट्रेलिया में पीजी कोर्स करने वाले छात्रें को यह सहूलियत हासिल होती है कि वह अपनी कोर्स की अवधि के अनुसार ही ऑस्ट्रेलिया में रहने की अपनी अवधि को भी बढ़वा सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘चूंकि मेरे कोर्स की अवधि दो साल है इसलिए मैं अपनी पढ़ाई के बाद भी दो साल तक ऑस्ट्रेलिया में रह सकता हूं। इससे काफी आसानी होती है। मुझे जब तक सही स्थान नहीं मिल जाता है तब तक मैं अलग-अलग अवसरों को खोजने के लिए काम कर सकता हूं।’ 



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