अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सरकार खजाना खोले

2019-09-01 0

अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उद्योग जगत के लोगों और विशेषज्ञों ने सरकार को बुनियादी ढांचे पर खर्च बढ़ाने, गावों में खर्च करने वाली आमदनी बढ़ाने, एनबीएफसी संकट के समाधान और मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के फैसलों के मुताबिक ब्याज दरों में कटौती करने की सलाह दी है। डाबर इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मोहित मल्होत्र ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रें में नकदी का संकट है और ग्रामीण क्षेत्र के ग्राहकों के हाथ में पैसे नहीं हैं जिसकी वजह से उपभोत्तफ़ा सामानों के कारोबार पर असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘अगर सरकारी खर्च व प्रोत्साहन पैकेज ग्रामीण क्षेत्रें को मुहैया कराया जाए तो इससे उपभोत्तफ़ाओं की मांग बहाल होगी और इस क्षेत्र में तेजी आएगी।’

बजाज कंज्यूमर केयर के प्रबंध निदेशक सुमित मल्होत्र ने कहा कि कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जिन पर ध्यान केंद्रित कर सरकार मंदी से निजात पा सकती है। उन्होंने कहा, ‘सरकार को अपनी जेब ढीली करनी होगी और मजबूत कदम उठाने होंगे, जिससे ग्रामीण इलाकों में मांग बढ़ सके।’ कर अनुपालन का दबाव भी कम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘यह कंपनियों की बड़ी चिंता है और सरकार इस क्षेत्र में कुछ करके ज्यादा लाभ उठा सकती है। इसके अलावा सरकार को बैंकों की ओर से आसानी से कर्ज दिलाने की जरूरत है।’

बजाज समूह में वित्त के अध्यक्ष प्रवाल बनर्जी ने कहा कि निजी क्षेत्र से निवेश तभी हो सकता है, जब बैंक एनपीए का भय निजी निवेशकों के दिमाग से निकल जाए और इसके लिए बैंक कर्ज सेवा के ढांचे को पूरी तरह से बदलने की जरूरत है।  इंडियन बैंक एसोसिएशन के सीईओ वीजी कन्नन ने कहा कि सरकार बुनियादी ढांचे पर बड़े पैमाने पर खर्च करके अर्थव्यवस्था को गति दे सकती है। कन्नन ने कहा, ‘कारोबारी आत्मविश्वास प्रभावित हुआ है। हमें इसे बढ़ाने की जरूरत है। सरकार को बुनियादी ढांचा और सड़क परियोजनाएं शुरू करनी चाहिए और खर्च शुरू करना चाहिए। उदाहण के लिए रेल परियोजनाओं का विस्तार किया जा सकता है।’ बहरहाल उन्होंने यह भी कहा कि बैंकरों को कुछ आश्वासन मिलना चाहिए कि अगर कारोबारी फैसले गलत होंगे तो उन पर मार नहीं पड़ेगी।

बैंकरों ने नाम न दिए जाने की शर्त पर यह भी कहा कि सरकार को अचानक कोई फैसला नहीं करना चाहिए, जैसे कि ऑटो उद्योग से अचानक यह कहना कि बीएस 6 उत्सर्जन मानकों को अचानक लागू किया जाए। इससे इन कंपनियों का कारोबार प्रभावित होता है और बैंकों से लिए गए इनके कर्ज पर असर होता है। एक बैंकर ने कहा कि सरकार ठेकेदारों को उनके बकाये के भुगतान से शुरुआत कर सकती है। उन्होंने कहा, ‘इससे निजी क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा और अर्थव्यस्था को गति मिलेगी।’ दूरसंचार क्षेत्र की धारणा को बल देने के लिए सीओएआई के महानिदेशक राजन एस मैथ्यू ने कहा कि वित्तीय दबाव के मसले के समाधान की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘सरकार को लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम उपभोग शुल्क घटाने की जरूरत है।’

उन्होंने स्पेक्ट्रम के भुगतान पर जीएसटी खत्म करने को कहा, जो मूल व ब्याज दोनों पर 18 प्रतिशत लगता है। मैथ्यू यह भी चाहते हैं कि आयातित 4जी और 5जी उपकरणों पर सीमा शुल्क मौजूदा 20 प्रतिशत से शून्य पर लाया जाना चाहिए। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सरकार को पहले यह आकलन कर लेना चाहिए कि वह राजकोषीय घाटे का लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद का 3-4 प्रतिशत रखना चाहती है या नहीं।  ईवाई के मुख्य नीति सलाहकार डीके श्रीवास्तव ने कहा कि अगर वह लक्ष्य से आगे नहीं बढ़ना चाहती है तो उसे अपने राजस्व व्यय में कटौती करनी होगी, जबकि पूंजीगत खर्च बढ़ाना होगा, जो इस साल जीडीपी का महज 1-6 प्रतिशत था।

अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहते हैं कि मौद्रिक नीति सरल करने का बैंक द्वारा दिए जाने वाले कर्ज पर असर देखना अभी बाकी है, इससे धारणा सुधरेगी। उन्होंने कहा, ‘नीतिगत बदलाव व सुधारों से विभिन्न क्षेत्रें में गतिविधियां बढ़ेगी। इसके साथ ही बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को प्राथमिकता दिए जाने की जरूरत है।’ फिक्की के अध्यक्ष संदीप सोमानी ने कहा, ‘बैंकों को प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे दरों में कमी कर ग्राहकों व उधारी लेने वालों को लाभ पहुंचाएं। इससे ईएमआई घटेगी और कॉर्पाेरेट के लिए ब्याज का बोझ घटेगा।’

रिजर्व बैंक ने लगातार तीन बार रीपो दरों में कटौती की है। नीतिगत दरों में 35 आधार अंक की कटौती की गई थी। सीआईआई ने बाजार दरों की तरह लघु बचत दरें कम करने की सलाह दी है। सीआईआई ने कहा, ‘इस समय 5 साल के राष्ट्रीय बचत पत्र पर 8 प्रतिशत ब्याज मिलता है जबकि सुकन्या समृद्धि योजना पर 8-5 प्रतिशत ब्याज है। यह भारतीय स्टेट बैंक द्वारा 1 साल की जमा पर 6-8 प्रतिशत ब्याज की पेशकश की तुलना में ज्यादा है।’



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