इस्लामिक देश भारत के साथ आने को क्यों तैयार हैं?

2019-11-01 0

हाल ही में बांग्लादेश ने एक बेहद अहम पहल की है। उसने इस्लामिक देशों के संगठन आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) में भारत को ‘पर्यवेक्षक राष्ट्र’ के रूप में शामिल करने का प्रस्ताव रखा है। बांग्लादेश का कहना है कि चूंकि भारत में मुसलमानों की आबादी खासी अधिक है, इसलिए उसे इस संगठन का सदस्य बनाया ही जाना चाहिए। इससे ओईसी के गैर-इस्लामिक संसार से मैत्रीपूर्ण संबंध बनेंगे। यह एक तथ्य है कि संसार में इंडोनेशिया के बाद सर्वाधिक मुसलमान भारत में ही हैं। इसलिए यदि भारत को ओआईसी में पर्यवेक्षक राष्ट्र के रूप में शामिल किया जाता है, तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है। भारत को इस प्रस्ताव को स्वीकार करने में भी कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। आखिर ओआईसी में एक को छोड़कर भारत के सभी सदस्यों से मधुर संबंध हैं। जिसे साथ भारत के कटु संबंध है, वो सिर्फ पाकिस्तान है। यह सबको भली-भांति पता है ही।

लाभ होगा ओआईसी को

मुस्लिम देशों के संगठन आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोआपरेशन (ओआईसी) के 57 देश सदस्य हैं। भारत के ओआईसी से किसी भी रूप में जुड़ने से इसे लाभ ही होगा। दरअसल ओआईसी देशों में एक भी देश का धर्मनिरपेक्ष चरित्र नहीं है। सब एक से बढ़कर एक कट्टर इस्लामिक देश हैं। अपने पड़ोस के पाकिस्तान को ही ले लीजिए। वहां पर गैर-मुसलमानों का कुछ सालों के बाद नामो-निशान भी नहीं रहने वाला। निश्चित रूप से इसमें भारत को शामिल किए जाने के बाद इस घोर इस्लामिक संगठन के भीतर लोकतंत्र की हल्की सी बयार तो बहने ही लगेगी। ये देश अधिक समावेशी होने की दिशा में बढ़ सकते हैं। ये भारत के मॉडल से सीख ले सकेंगे। अभी तो इन सभी में गैर-मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं है। उन्हें दूसरे दर्जे का मुसलमान माना जाता है। इनमें कुछ देश जो उदारवादी चरित्र के हैं जैसे इण्डोनेशिया और खाड़ी के कुछ देश, वे भी भारत के पीछे गोलबंद हो सकेंगे। 

नहीं देते एक-दूसरे का साथ

हालांकि यह भी सच है कि ओआईसी का यह संगठन अब तक नकारा ही साबित हुआ है। ये संकट में भी एक-दूसरे के लिए कम ही ड़े होते हैं। अब रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने का ही मसला ले लें। म्यांमार के सबसे करीबी पड़ोसी बांग्लादेश ने भी रोहिंग्या मुसलमानों को लेने से मना कर दिया। हालांकि कुछ तो चोरी-छिपे बांग्लादेश और भारत के भीतर घुस ही गए। बांग्लादेश कतई रोहिंग्या मुसलमानों को अपने यहां नहीं रना चाहता है। बांग्लादेश के एक मंत्री मोहम्मद शहरयार ने तो खुलकर कहा है कि, ष्ये रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं, हमारे यहां पूर्व में भी कई घटनाएं घट चुकी हैं। यही कारण हैं कि हम उनको लेकर सावधान हैं। इस्लामिक देशों के अगुवा समझे जाने वाले सऊदी अरब और पाकिस्तान ने भी रोहिंग्या मुसलमानों को अपने यहां घुसने पर रोक लगा रखी है।

और तो और कोई भी इस्लामिक देश इन्हें अपने पास रखने को तैयार नहीं है। इनके लिए थोड़ी बहुत मदद के लिए तुर्की जरूर तैयार हुआ।

विचारणीय विषय है कि रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर इस्लामिक देशों को आखिरकार क्यों सांप सूंघ गया? रोहिंग्या मुसलमानों पर निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने मुस्लिम समुदाय की सही क्लास ले ली है। उन्होंने मुस्लिमों पर तंज कसते हुए उन पर अपने ही लोगों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया। तस्लीमा नसरीन ने ट्वीट किया, ‘मुस्लिम उन मुसलमानों के लिए रोते हैं जो गैर मुस्लिमों के जुल्म का शिकार होते हैं। मुस्लिम तब नहीं रोते जब मुस्लिमों पर मुस्लिमों द्वारा ही जुल्म किया जाता है।ष् तस्लीमा नसरीन कतई गलत नहीं हैं। सीरिया या इराक में मुस्लिमों द्वारा मुस्लिमों को मारने का कभी भी विरोध नहीं किया जाता। ओआईसी के सदस्यों में भी तानातनी तो रहती ही है। ईरान-सऊदी अरब एक-दूसरे के जानी-दुशमन बन गये हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश में छत्तीस का आंकड़ा तो सर्व विदित ही है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान भी एक-दूसरे के शत्रु बन चुके हैं।

तब लड़ेंगे आतंकवाद से

यह तो दुर्भाग्य ही माना जाएगा कि अधिकतर ओआईसी देशों में इस्लामिक कट्टरवाद तेजी से फल-फूल रहा है। तुर्की से लेकर अपने कश्मीर में इस्लामिक आतंकवादी अपनी करतूतों को अंजाम दे रहे हैं। यानी इस्लामिक आतंकवाद के शिकार पूरी दुनिया में बेकसूर बने घूम रहे हैं। पिछले वर्ष रमजान के महीने में तुर्की के अतातुर्क इंटरनेशनल टर्मिनल में बड़ा आतंकी हमला हुआ था। हमले के पीछे आईएसआईएस का हाथ था। इस्लामिक संसार में तुर्की को एक दौर में बेहद शांत देश के रूप में देखा जाता था। यह इस्लामिक देशों में आदर्श माना जाता था। लेकिन अब वहां पर भी आतंकवाद ने अपनी खूनी दस्तक दे दी है।

दरअसल सरकार और कुर्दिश चरमपंथियों के बीच सीजफायर खत्म होने के बाद तुर्की में आतंकी घटनाएं बढ़ी हैं। तुर्की, कश्मीर, पेरिस, नेरौबी, पेशावर, नाइजीरिया वगैरह में आतंकी हमलों के बाद एक बार फिर से संसार भर में फैल चुके इस्लामिक आतंकवादियों से लड़ने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। चूंकि, भारत आतंकवाद का शिकार होता रहा है और इसे कुचलता भी रहा है, इसलिए भारत के साथ मिलकर इस्लामिक देश आतंकवाद से लड़ने को सोच सकते है। दरअसल इस्लामिक देशों को आईएसआई, अल-कायदा, लश्करे-तैयबा सरीखे संगठनों से लड़ना ही होगा। हालांकि इसमें अबतक पाकिस्तान शामिल नहीं है। वहां पर तो सरकार ही आतंकवाद को खाद-पानी दे रही है।

बेशक, दुनिया के हर कोने में होने वाली आतंकी घटना के लिए इस्लाम या उसके अनुयायियों को दोषी ठहराया जाने लगता है। बेशक, पूरी दुनिया में आतंकवाद नामक संक्रामक बीमारी के प्रसार के बाद से ही बार-बार आंतकवाद को इस्लाम से जोड़ा जाता रहा है। इस बात पर लंबे समय से बहस जारी रही है कि क्या आतंकवाद को किसी धर्म विशेष के साथ जोड़ना जायज है? इसके जवाब में लोगों का मानना रहा है कि ऐसा करना गलत है और महज मुट्ठी भर राह से भटके लोगों की वजह से पूरे इस्लाम धर्म को दोषी ठहराना इस धर्म को कमतर करने की कोशिश है। पर अब चर्चित मुस्लिम साहित्यकार सलमान रश्दी ने कह कर नया विवाद खड़ा कर दिया है कि ‘इस्लामी आतंकवाद भी इस्लाम का एक रूप है और इसके खात्मे के लिए इस सच्चाई को स्वीकार करना जरूरी है।’ भारतीय मूल के प्रसिद्ध ब्रिटिश लेखक सलमान रुश्दी कहते है कि ‘इस्लाम का हिंसक रूप भी इस्लाम ही है जो पिछले वर्षों के दौरान बहुत ही ताकतवर बनकर उभरा है।’ रुश्दी अपनी बेबाक राय के लिए हमेशा से ही कट्टरपंथियों के निशाने पर रहे हैं और उनके उपन्यास ‘सैटनिक वर्सेज’ के लिए उनके खिलाफ ईरान ने उनके सिर कलम करने का फतवा तक जारी कर दिया था।

ईरान के शासक अयतुल्ला खोमैनी ने रुश्दी का सिर काटकर लाने वालों को भारी इनाम देने का एलान कर दिया था। अगर रुश्दी की राय से इतर बात हो तो माना जा सकता है कि आतंकवाद और इस्लाम का कोई संबंध हो ही नहीं सकता। जो मुसलमान इस्लाम का नाम लेकर कभी और कहीं भी आतंकवादी घटना में लिप्त होते हैं, दरअसल वे मुसलमान नहीं हैं। उनका इस्लाम से हरगिज कोई संबंध नहीं हो सकता। पर यह भी सच है कि पेशावर में बड़ी संख्या में स्कूली बच्चों का कत्लेआम करने वाले अपने को मुसलमान ही बता रहे थे। मुंबई में साल 2008 में पाकिस्तान से आए आतंकियों की अंधाधुंध गोलियों से देश दहल गया था। कितने ही निर्दाेष लोग मार डाले गये थे। उस कत्लेआम को अंजाम भी तो मुसलमानों ने ही दिया था। केन्या के वेस्टगेट मॉल में साल 2014 में बीसियों लोगों को मारने वाले अल-शबाब के आतंकवादी भी मुसलमान ही थे।

हालांकि, यह सुनने में बहुत ही अच्छा लगता है कि किसी भी आतंकी वारदात में शामिल होने वाला शख्स सिर्फ इन्सानियत का दुश्मन है। उसका किसी मजहब से कोई लेना-देना नहीं हो सकता। तो क्या ओओईसी में भारत शामिल होगा? हो भी सकता है। इसकी संभावना प्रबल लगती है। पर सारी दुनिया को आतंकवाद की सप्लाई करने वाला पाकिस्तान भारत के मार्ग में तमाम विरोध-अवरोध तो खड़े करेगा ही? उसे अवश्य ही तकलीफ होगी अगर भारत ओआईसी में आता है तो। कहने वाले यह भी कह रहे हैं कि पाकिस्तान को चोट पहुंचाने के लिए ही बांग्लादेश यह प्रस्ताव लेकर आया है क्योंकि, अब बांग्लादेश को भी यह लगने लगा है कि मोदी जी और सुषमा स्वराज के जादू से अब ओआईसी के ज्यादा देश भारत के पीछे खडें हो गए हैं न कि पाकिस्तान के। 



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