बनारस अपने हस्तशिल्प और नायाब कारीगरी के लिए प्रसिद्ध है

2019-11-01 0

दुनिया भर में हस्तशिल्प के सबसे बड़े क्लस्टर के तौर पर विख्यात बनारस की नायाब कारीगरी को भौगौलिक संकेतक (जीआई) के जरिये विश्वस्तरीय पहचान मिल रही है। बीते आठ वर्षों में बनारस और आसपास के इलाके के आठ हस्तशिल्प को जीआई तमगा मिल चुका है और इसने लुप्त हो रही कई कलाओं को नया जीवन दिया है। बनारसी साड़ी और ब्रोकेड से साल 2009 में शुरू हुआ यह सिलसिला अब बनारस ग्लास बीड्स तक पहुंच चुका है, जिसे इसी साल जीआई का दर्जा दिया गया है। बनारस की मशहूर गुलाबी मीनाकारी, कुंदन की मीनाकारी, भदोही के कालीन, बनारसी लकड़ी के खिलौने, मिर्जापुर की हस्तनिर्मित दरी, निजामाबाद की ब्लैक पॉटरी और चांदी की उभरी नक्काशी के काम को बीते दिनों जीआई तमगा मिल चुका है।

बनारस के हस्तशिल्प के इस तरह से विश्व-पटल पर अंकित होने का इंतजार अब तीन अन्य उत्पादों को है। बनारस के मशहूर रामनगर के सॉफ्रट स्टोन के जालीवर्क, गाजीपुर वॉल हैंगिंग और चुनार के सैंड स्टोन के काम को जीआई तमगा के लिए आवेदन किया गया है और यह स्वीकृति के अंतिम चरण में है।

बनारस और आसपास के 10 जिलों आजमगढ़, भदोही, मिर्जापुर, कौशांबी, गाजीपुर, जौनपुर, सोनभद्र और चंदौली से भारत का सबसे ज्यादा हस्तशिल्प का कारोबार होता है। देश के कुल हस्तशिल्प उत्पादन का 26 फीसदी उत्तर प्रदेश से होता है जबकि दुनिया को निर्यात होने वाले शिल्प में इस प्रदेश की 46 फीसदी हिस्सेदारी है। अकेले बनारस और आसपास के जिलों का हस्तशिल्प का सालाना कारोबार करीब 18,500 करोड़ रुपये का है।

बनारस और आसपास के इलाके के हस्तशिल्प को दुनिया भर में पहचान दिलाने वाले और जीआई दिलाने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के अधिशासी निदेशक

डॉ- रजनीकांत के मुताबिक दुनिया भर में सबसे ज्यादा लगभग 15 लाख हस्तशिल्पी इसी क्षेत्र में रहते हैं। असल की नकल के चलन से बनारसी और आसपास की कई हस्तशिल्प कलाएं या तो लुप्त हो रही थीं या उनका कारोबार न के बराबर रह गया था। ऐसे में जीआई ने इन लुप्तप्राय कलाओं को उबारने में मदद की है।

कभी दो परिवारों तक सिमट कर रह गयी निजामाबाद की ब्लैक पॉटरी के काम को जीआई तमगा मिलने और कारोबार बढने के बाद 125 परिवार अब इससे जुड़े हैं। इसी तरह मुट्ठी भर घरों में होने वाला बनारस की गुलाबी मीनाकारी का काम आज 150 परिवारों की आजीविका का साधन बन चुका है। डॉ- रजनीकांत के मुताबिक जीआई मिलने से बनारसी साड़ी का कारोबार करीब 32 फीसदी बढ़ा है। उनका कहना है कि जीआई मिलने के बाद कभी 100-150 रुपये की दिहाड़ी कमाने वाले बुनकर 400 से 500 रुपये रोज कमा रहे हैं। उन्होंने बताया कि पहले जीआई दिलाने में उनकी मदद संयुत्तफ़ राष्ट्र की संस्था यूएन कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड ऐंड डेवलपमेंट (अंकटाड) करती थी। पांच साल पहले 2012 में अंकटाड का भारत स्थित कार्यालय बंद होने के बाद नाबार्ड की मदद से उन्होंने बनारस के दम तोड़ते हस्तशिल्प को संजीवनी देने का काम शुरू किया।  



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