सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला रामजन्म भूमि न्यास को दी गई 2.77 एकड़ की विवादित जमीन, सुन्नी वक्फ बोर्ड को मिली

2019-12-01 0


5 एकड़ वैकल्पिक जमीनइलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने छह अगस्त से रोजाना 40 दिन तक सुनवाईकी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में अपना बहुप्रतीक्षित पफैसला सुना दिया है। शीर्ष कोर्ट ने 2.77 एकड़ की पूरी विवादित जमीन राम जन्मभूमि न्यास को देने का आदेश दिया है। वहीं, सुन्नी वक्पफ बोर्ड को अयोध्या में 5 एकड़ की वैकल्पिक जमीन देने का पफैसला सुनाया है। चीपफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधन पीठ ने भारतीय इतिहास की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण इस व्यवस्था के साथ ही करीब 130 साल से चले आ रहे इस संवेदनशील विवाद का पटाक्षेप कर दिया।

शीर्ष अदालत ने कहा कि मस्जिद का निर्माण ‘प्रमुख स्थल’ पर किया जाना चाहिए और सरकार को उस स्थान पर मंदिर निर्माण के लिये तीन महीने के भीतर एक ट्रस्ट गठित करना चाहिए जिसके प्रति अध्किांश हिन्दुओं का मानना है कि भगवान राम का जन्म वहीं पर हुआ था। इस स्थान पर 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद थी जिसे कार सेवकों ने छह दिसंबर, 1992 को गिरा दिया था। संविधन पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ध्नन्जय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल थे।

पीठ ने कहा कि 2.77 एकड़ की विवादित भूमि का अध्किार राम लला की मूर्ति को सौंप दिया जाए, हालांकि इसका कब्जा केन्द्र सरकार के रिसीवर के पास ही रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि केंद्र सरकार 3-4 महीने में ट्रस्ट बनाने के लिए स्कीम बनाए और मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट को विवादित जमीन दी जाए।

इस बीच, एक मुस्लिम पक्षकार के वकील जपफरयाब जीलानी ने पफैसले पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा कि पफैसले का अध्ययन करने के बाद अगली रणनीति तैयार की जाएगी। दूसरी ओर, निर्माेही अखाड़े ने कहा कि उसका दावा खारिज किए जाने का उसे कोई दुःख नहीं है।

अयोध्या मसले पर संविधन पीठ ने 16 अक्टूबर को इस मामले की सुनवाई पूरी की थी। उध्र, पफैसले के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में धरा 144 लागू कर दी गई है। सुरक्षा व्यवस्था के चाक-चैबंद इंतजाम किए गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट के पफैसले के प्रमुख अंशः

  • केंद्र और उप्र सरकार साथ मिलकर प्राध्किार की आगे की कार्रवाई की निगरानी कर सकती हैंः सुप्रीम कोर्ट
  • केंद्र सरकार 3-4 महीने में ट्रस्ट बनाने के लिए स्कीम बनाए और मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट को विवादित जमीन दी जाए। कोर्ट ने केन्द्र को यह भी आदेश दिया है कि इस ट्रस्ट को स्थापित करने में निर्माेही अखाड़े को भी किसी तरह का प्रतिनिध्त्वि देने पर विचार किया जाए।
  • अयोध्या में 5 एकड़ की वैकल्पिक जमीन सुन्नी वक्पफ बोर्ड को दी जाएः सुप्रीम कोर्ट
  • रामजन्म भूमि न्यास को दी गई विवादित जमीन
  • हालांकि कोर्ट ने यह माना कि बाबरी मस्जिद को नुकसान पहुंचाना कानून का उल्लंघन था।
  • वहीं हिंदुओं ने यह सबित किया कि मस्जिद के बाहरी हिस्से पर उनका कब्जा थाः सुप्रीम कोर्ट
  • विवादित स्थल के बाहरी आंगन पर मुस्लिमों का कब्जा नहीं था। यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्पफ बोर्ड अयोध्या मामले में अपना पक्ष स्थापित करने में असपफल रहा।
  • इस बात के सबूत नहीं हैं कि मुस्लिमों ने मस्जिद का त्याग कर दिया था। हिंदू हमेशा से मानते रहे हैं कि भगवान राम का जन्म मस्जिद के भीतरी आंगन में हुआ था। यह साबित हुआ है कि मुस्लिम भीतरी आंगन में इबादत करते रहे और हिंदू बाहरी आंगन में।
  • मुस्लिमों ने मस्जिद को नहीं छोड़ा। हिंदू राम चबूतरा की पूजा करते रहे लेकिन वे गर्भ गृह के मालिकाना हक को लेकर भी दावा करते रहे।
  • सबूत है कि अंग्रेजों के आने से पहले हिंदू राम चबूतरा, सीता रसोई की पूजा करते थे। रिकॉड्र्स में मौजूद सबूत दर्शाते हैं कि विवादित जमीन के बाहरी हिस्से में हिंदुओं का कब्जा था।
  • आस्था और विश्वास पर शीर्षक तय नहीं किए जा सकते लेकिन दावों पर किए जा सकते हैं। ऐतिहासिक तथ्य हिंदुओं के इस विश्वास की ओर संकेत करते हैं कि अयोध्या भगवान राम की जन्मस्थली है।
  • हिंदुओं की आस्था और विश्वास है कि भगवान राम गुंबद के नीचे पैदा हुए। आस्था व्यत्तिफगत विश्वास का मामला है।
  • हालांकि ASI यह स्थापित नहीं कर पाया कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को ध्वस्त कर किया गया था।
  • बाबरी मस्जिद का निर्माण खाली जगह पर हुआ था, जमीन के नीचे का ढांचा इस्लामिक नहीं था। ।ैप् के निष्कर्षों से साबित हुआ कि नष्ट किए गए ढांचे के नीचे मंदिर था।
  • हिंदुओं की आस्था कि भगवान राम अयोध्या में पैदा हुए, यह निर्विवाद है।
  • हिंदू अयोध्या को भगवान राम की जन्मभूमि मानते हैं। उनकी धर्मिक भावनाएं हैं, मुस्लिम इसे बाबरी मस्जिद कहते हैं।
  • निर्माेही अखाड़े का दावा खारिज। कोर्ट ने कहा उनका दावा केवल प्रबंध्न का। निर्माेही अखाड़ा शबैत ;भत्तफद्ध नहीं।
  • सीजेआई ने कहा कि बाबरी मस्जिद को मीर बकी ने बनाया था। कोर्ट ध्र्मशास्त्रा में पड़े, यह उचित नहीं।
  • भारत के चीपफ जस्टिस रंजन गोगोई ने 1946 में पफैजाबाद कोर्ट के पफैसले को चुनौती देने वाली शिया वक्पफ बोर्ड की स्पेशल लीव पिटीशन ;ैस्च्द्ध को खारिज कर दिया है।

इससे पहले, चीपफ जस्टिस गोगोई ने शुक्रवार को उप्र के मुख्य सचिव राजेन्द्र कुमार तिवारी और प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ओम प्रकाश सिंह को अपने कक्ष में बुलाकर उनसे राज्य में सुरक्षा बंदोबस्तों और कानून व्यवस्था के बारे में जानकारी प्राप्त की थी।

पीएम मोदी ने की शांति की अपील

प्रधनमंत्राी नरेन्द्र मोदी ने राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले पर शनिवार को उच्चतम न्यायालय का पफैसला आने से पहले देशवासियों से शांति बनाए रखने की अपील की है। प्रधनमंत्राी मोदी ने शुक्रवार रात सिलसिलेवार ट्वीट कर यह अपील की। प्रधनमंत्राी ने ट्वीट किया, फ्अयोध्या पर कल सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आ रहा है। पिछले कुछ महीनों से सुप्रीम कोर्ट में निरंतर इस विषय पर सुनवाई हो रही थी, पूरा देश उत्सुकता से देख रहा था। इस दौरान समाज के सभी वर्गों की तरपफ से सद्भावना का वातावरण बनाए रखने के लिए किए गए प्रयास बहुत सराहनीय हैं।य्

उन्होंने कहा, फ्देश की न्यायपालिका के मान-सम्मान को सर्वाेपरि रखते हुए समाज के सभी पक्षों ने, सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों ने, सभी पक्षकारों ने बीते दिनों सौहार्दपूर्ण और सकारात्मक वातावरण बनाने के लिए जो प्रयास किए, वे स्वागत योग्य हैं। कोर्ट के निर्णय के बाद भी हम सबको मिलकर सौहार्द बनाए रखना है।य्

प्रधनमंत्राी ने ट्वीट किया, फ्अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का जो भी पफैसला आएगा, वो किसी की हार-जीत नहीं होगा। देशवासियों से मेरी अपील है कि हम सब की यह प्राथमिकता रहे कि ये पफैसला भारत की शांति, एकता और सद्भावना की महान परंपरा को और बल दे।य्

40 दिन तक चली सुनवाई

प्रधन न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधन पीठ ने, अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्पफ बोर्ड, निर्माेही अखाड़ा और राम लला विराजमान- के बीच बराबर बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के पफैसले के खिलापफ दायर अपीलों पर छह अगस्त से रोजाना 40 दिन तक सुनवाई की थी।

इस दौरान विभन्न पक्षों ने अपनी अपनी दलीलें पेश की थीं। संविधन पीठ ने इस मामले में सुनवाई पूरी करते हुए संबंध्ति पक्षों को ‘मोल्डिंग आॅपफ रिलीपफ’ ;राहत में बदलावद्ध के मुद्दे पर लिखित दलील दाखिल करने के लिये तीन दिन का समय दिया था। उच्च न्यायालय के पफैसले के खिलापफ दायर 14 अपीलों पर सभी पक्षकारों की दलीलों को विस्तार से सुना।

संविधन पीठ द्वारा किसी भी दिन पफैसला सुनाये जाने की संभावना को देखते हुये केन्द्र ने देश भर में सुरक्षा बंदोबस्त कड़े कर दिए। अयोध्या में भी सुरक्षा बंदोबस्त चाक चैबंद किए गए हैं ताकि किसी प्रकार की कोई अप्रिय घटना नहीं हो सके।

मध्यस्थता से समाधन निकालने में नहीं मिली सपफलता

संविधन पीठ ने इस प्रकरण पर 6 अगस्त से नियमित सुनवाई शुरू करने से पहले मध्यस्थता के माध्यम से इस विवाद का सर्वमान्य समाधान खोजने का प्रयास किया था। न्यायालय ने इसके लिये शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एपफएमआई कलीपफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति भी गठित की थी लेकिन उसे इसमें सपफलता नहीं मिली। इसके बाद, प्रधन न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली संविधन पीठ ने सारे प्रकरण पर छह अगस्त से रोजाना सुनवाई करने का निर्णय किया।

निचली अदालत में दायर हुए था 5 मुकदमे

शुरुआत में निचली अदालत में इस मसले पर पांच वाद दायर किए गए थे। पहला मुकदमा ‘राम लला’ के भत्तफ गोपाल सिंह विशारद ने 1950 में दायर किया था। इसमें उन्होंने विवादित स्थल पर हिन्दुओं के पूजा अर्चना का अध्किार लागू करने का अनुरोध् किया था। उसी साल, परमहंस रामचन्द्र दास ने भी पूजा अर्चना जारी रखने और विवादित ढांचे के मध्य गुंबद के नीचे ही मूर्तियां रखी रहने के लिए मुकदमा दायर किया था। लेकिन बाद में यह मुकदमा वापस ले लिया गया था।

बाद में, निर्माेही अखाड़े ने 1959 में 2.77 एकड़ विवादित स्थल के प्रबंध्न और शेबैती अधिकार के लिये निचली अदालत में वाद दायर किया। इसके दो साल बाद 1961 में उप्र सुन्नी वक्पफ बोर्ड भी अदालत में पहुंचा गया और उसने विवादित संपत्ति पर अपना मालिकाना हक होने का दावा किया।

उच्च न्यायालय के पफैसले को दी गई थी चुनौती

राम लला विराजमान’ की ओर से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश देवकी नंदन अग्रवाल और जन्म भूमि ने 1989 में मुकदमा दायर कर समूची संपत्ति पर अपना दावा किया और कहा कि इस भूमि का स्वरूप देवता का और एक ‘न्यायिक व्यक्ति’ जैसा है। अयोध्या में छह दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने की घटना और इसे लेकर देश में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद सारे मुकदमे इलाहाबाद उच्च न्यायालय को निर्णय के लिये सौंप दिए गए थे।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 30 सितंबर, 2010 के पफैसले में 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्पफ बोर्ड, निर्माेही अखाड़ा और राम लला- के बीच बांटने के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी। शीर्ष अदालत ने मई 2011 में उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाते हुए अयोध्या में यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया था। 


ये भी पढ़ें :



मासिक-पत्रिका

अन्य ख़बरें

न्यूज़ लेटर प्राप्त करें