श्रीलंका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति गोटाभाया भारत या चीन किसको ज्यादा तवज्जो देंगे?

2019-12-01 0


श्रीलंका के पूर्व रक्षा मंत्राी गोटाभाया राजपक्षे ने राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल कर ली है। आधीकारियों के मुताबिक गोटाभाया को 52.25% वोट मिले हैं। वहीं उनके प्रतिद्वंद्वी सजित प्रेमदासा ने हार मान ली है। अप्रैल में हुए बड़े चरमपंथी हमलों के बाद देश में ये पहला चुनाव था।

गोटाभाया राजपक्षा श्रीलंका के अगले राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं।

इस जीत को महिन्द्रा राजपक्षे की ही जीत कहना चाहिए। गोटाभाया, पूर्व राष्ट्रपति महिन्द्रा के छोटे भाई हैं। जिस समय महिन्द्रा राजपक्षे देश के राष्ट्रपति थे, उस समय गोटाभाया रक्षा मंत्राी थे और एलटीटीई ;लिबरेशन टाइगर्स आॅपफ तमिल ईलमद्ध के खिलापफ मोर्चा संभाले हुए थे।

लड़ाई खत्म होने के एक साल बाद, मैं कोलंबो गया था और गोटाभाया राजपक्षे के साथ एक घंटे का इंटरव्यू किया था। मैंने उनसे पूछा था कि एलटीटीई दुनिया में सबसे खतरनाक संगठन समझा जाता था, उसे उन्होंने कैसे हरा दिया?

इसके जवाब में उन्होंने मुझे कहा था कि ‘मेरे बड़े भाई इस देश के राष्ट्रपति हैं। उन्होंने मुझे कहा कि गोटाभाया एलटीटीई को खत्म कर डालो। जो चाहिए मांगो, मैं आपको दिलाऊंगा। तो उन्होंने कहा कि मुझे चीन से पफलाना हथियार चाहिए, पाकिस्तान से पफलाना हथियार चाहिए।’

महिन्द्रा राजपक्षे ने उन देशों के दूतावास को पफोन करके कहा कि मुझे पफलाना हथियार चाहिए। उन्होंने कहा कि ‘अगर मेरे भाई राष्ट्रपति नहीं होते तो मुझे इतनी आजादी नहीं मिलती और मैं कभी भी एलटीटीई को नहीं हरा सकता था।’

दरअसल महिन्द्रा खुद पिफर से राष्ट्रपति बनना चाहते थे, लेकिन वहां के संविधन में प्रावधन है कि एक प्रत्याशी अध्कितम दो ही बार इस पद पर रह सकता है।

मैत्रिापाला सिरीसेना जब राष्ट्रपति थे तब उन्होंने यह प्रावधन किया था। लेकिन जब महिन्द्रा ने एलटीटीई को हराया, तब उन्होंने यह प्रावधन बदल दिया और नया प्रावधन किया कि कोई भी व्यत्तिफ इस पद पर कई बार रह सकता है। हालांकि सिरीसेना ने बाद में संविधन के प्रावधन में पिफर बदलाव कर दिया।

ऐसे में महिन्द्रा तीसरी बार चुनाव नहीं लड़ सकते थे और उन्होंने अपने छोटे भाई को मैदान में उतारा और राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़वाया। इसका पूरा श्रेय महिन्द्रा को ही जाना चाहिए। मुझे लगता है कि वह खुद चुनाव नहीं लड़ सकते थे इसलिए अपने भाई को मैदान में उतारा।

श्रीलंका पर इसका क्या असर पड़ेगा?

तमिल और मुस्लिम बिल्कुल नाखुश होंगे। एलटीटीई के खिलापफ जो लड़ाई हुई थी, उसे पूरा तमिल समुदाय अपने खिलापफ लड़ाई मानता है। श्रीलंका में जो तमिल रहते हैं वो अपने लिए ईलम ;अलग देशद्ध मांगते थे।

एलटीटीई को खत्म करने के बाद गोटाभाया ने कहा कि जो अपने लिए ईलम मांगते हैं उन्हें हम खत्म कर चुके हैं ऐसे में तमिल को कोई समस्या ही नहीं है। मुस्लिम भी समझते हैं कि गोटाभाया मुस्लिमों के खिलाफ हैं।

वहां एक पार्टी है - बोदु बाला सेना। तमिल और मुस्लिम मिल कर चाहते थे कि सजित प्रेमदासा को वोट दें। और बुद्धिस्ट  वोट अलग 50-50 में बंटेंगे तो उनके समर्थन के साथ सजित प्रेमदासा राष्ट्रपति बन सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

हमेशा सिंघली वोट वहां की मुख्य पार्टी यूएनपी और एसएलपीपी में 50-50 में बंट जाता था, लेकिन ईस्टर को हुए बम ध्माकों से सिंघला समुदाय में एक किस्म का डर पैदा हुआ। इसलिए वह एक मजबूत नेता ढूंढ़ रहे थे जो आतंकवाद को खत्म कर सके।

गोटाभाया ने खुद को एक ऐसे नेता के रूप में प्रस्तुत किया कि वह एलटीटीई को खत्म कर चुके हैं। अगर इस्लामिक पफंडामेंटलिज्म से भी कोई खतरा पैदा होने की आशंका है तो उसको भी हम खत्म कर डालेंगे।

इस तरह के एक मजबूत नेता की छवि प्रस्तुत करके, सिंघली समुदाय का 50 प्रतिशत से अधिक वोट इन्होंने हासिल किया। वह सिंघली वोट के समर्थन से जीत गए हैं। इसके बाद तमिल और मुस्लिम में एक किस्म का डर पैदा होगा। इसलिए उन्होंने फेसबुक पेज पर लिखा है कि हम सब लोग मिल कर आगे बढ़ेंगे।

यह बहुत जरूरी है कि राजपक्षे परिवार के राज में तमिल और मुस्लिम में असुरक्षा और डर की एक भावना आई है, उसे खत्म करना होगा तभी श्रीलंका आगे बढ़ सकता है।

भारत और श्रीलंका के संबंधें पर असर

अपना घोषणापत्रा जारी करते समय गोटाभाया राजपक्षे कह चुके हैं कि वह भारत, चीन समेत सभी पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध् निभाना चाहते हैं।

जब महिन्द्रा राजपक्षे एलटीटीई के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे, उस समय उन्हें जो हथियार चाहिए था वह भारत नहीं दे सका। क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्राी मनमोहन सिंह एक गठबंध्न सरकार चला रहे थे और एक क्षेत्राीय पार्टी पर उनकी निर्भरता थी। तमिलनाडु की द्रमुक पार्टी के कारण भारत उनको हथियार नहीं दे सका, इसलिए वो चीन और पाकिस्तान के पास गए और वहां से हथियार लेकर एलटीटीई को हराया। चीन ने इन्हें आठ अरब डॉलर का कर्ज दिया है। ऐसे में समझा जाता है कि वह चीन समर्थक हैं लेकिन वह भारत विरोधी नहीं हैं।

जब महिन्द्रा राजपक्षे राष्ट्रपति थे तब उन्होंने कहा था कि भारत तो हमारा भाई है और चीन हमारा दोस्त है। गोटाभाया राजपक्षे भी इसी तर्ज पर चलेंगे, वह भारत के साथ कोई दुश्मनी नहीं करना चाहते हैं। एलटीटीई अब वहां नहीं हैं और भारत सिपर्फ यही चाहता है कि तमिलों को बराबरी का अध्किार मिले। अगर गोटाभाया ऐसा करेंगे तो भारत को कोई समस्या नहीं होगी। 



मासिक-पत्रिका

अन्य ख़बरें

न्यूज़ लेटर प्राप्त करें