जम्मू-कश्मीर के लोगों का भविष्य

2019-12-10 0

यूरोपीय यूनियन के 23 सांसदों ने कश्मीर का दौरा किया, जिस पर भारत में विपक्षी दलों ने काफी हो हल्ला किया कि भारतीय राजनेताओं को इजाजत नहीं है, विदेशी सांसद कश्मीर का दौरा कर रहे हैं क्यों? वामपंथी नेताओं ने कहा कि यूरोपीय सांसद दक्षिणपंथी हैं जोकि अपने क्षेत्र में भाजपा जैसी ही विचारधारा के पक्षधर हैं, आगे से यूरोपीय सांसदों ने भी जवाब दे दिया कि अगर वह दक्षिण पंथी होते तब यूरोप में उन्हें कोई मतदाता सांसद नहीं चुनता, जोकि सही भी है। 31 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर पूरी तरह से तीन केन्द्र शासित प्रदेशों में बंट गया है। महज कश्मीर को छोड़कर जम्मू-लद्दाख के लोग पूरी तरह खुश हैं कि उन्हें भेदभाव से मुक्ति मिल गई है। कश्मीर में आम आवामखुश है क्योंकि वहां उन्हें बहुत से अधिकार मिले हैं, जो पहले कश्मीरियों के हिस्से में नहीं थे।

फिर बहुत से ऐसे कानूनों का सफाया हो गया है जो कश्मीरियों को भारत से बांटने के लिए थे अन्यथा उनका कोई अधिक लाभ उन्हें नहीं मिल रहा था। इस सबके बावजूद कश्मीर में कामकाज या ट्रक -टैक्सी लेकर गए अन्य राज्य के लोगों से हिंसा हो रही है, जो कि पहले भी होती आ रही है। अतः यह कोई नयी बात नहीं है। जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में हौव्वा खड़ा किया जा रहा है कि अब वहां बाहरी लोग आएंगे। ये बाहरी कोई नहीं है दूसरे राज्यों के ही भारतीय लोग हैं, जिस तरह कश्मीरी भारतीय हैं, स्थानीय अलगाववादी या क्षुद्र राजनीति करने वाले बाहरी का डर पैदा कर रहे हैं।

कश्मीरी भी देशभर में अपना कारोबार कर रहे हैं, उन्हें किसी प्रदेश में बाहरी नहीं कहा जाता। बात पुनः राजनीतिक गतिविधियों की करें तब यह कितना विडम्बना पूर्ण है कि यूरोपीय सांसद भारत की प्रशंसा कर रहे हैं, उन्हें कश्मीर पसंद आया, उन्होंने कश्मीर में सैर भी की, जनप्रतिनिधियों से भी मिले, मीडिया से भी बातचीत की, लेकिन भारतीय नेता घटिया राजनीति से बाज नहीं आ रहे। भाजपा से विरोध को वो इस हद तक ले जा रहे हैं कि लोग स्वतः ही भाजपा को राष्ट्रवादी कहेंगे। भारतीय राजनीति का एक बहुत बड़ा दुर्गुण है वह यह कि अगर नेताओं के पास सत्ता नहीं है तब वह देश बांट देने तक जा पहुंचते हैं।

1947 में इन नेताओं ने यह सब भी करके देख लिया सब्र फिर भी नहीं है। अब फिर विरोध का स्वर इस हद तक ऊंचा करते हैं कि देश भले हिंसा झेले, अलगाव झेले लेकिन सत्ताधारी दल के निर्णयों को सदैव विरोध का आधार बनाया जाएगा, ऐसे निर्णय भले ही देश-देशवासियों या किसी विशेष क्षेत्रवासियों के अन्नत कल्याण के लिए क्यों न हों। जम्मू-कश्मीर के लोगों ने स्वार्थी राजनीतिक सोच के चलते बहुत अधिक पीड़ा व नुक्सान झेला है, जो कि आगे की पीढ़ियों तक नहीं जाएगा। बेहतर हो विरोध कर रहे भारतीय राजनेता स्वार्थ से ऊपर उठकर जम्मू-कश्मीर व लद्दाख के लोगों का भविष्य देखें ।

कश्मीर और कश्मीरी  लोग हमारे

धारा-370 और 35-ए हटाने के बाद देश में कश्मीरी विद्यार्थियों के साथ दुर्व्यवहार की खबरें चिंताजनक हैं। अलवर में एक कश्मीरी युवक को महिलाओं के कपड़े पहनाए गए, फिर पीटने का मामला सामने आया है। खुद को राष्ट्रवादी कहलाने वाले कुछ लोग भड़काऊ कार्यवाही कर रहे हैं जो निंदनीय है। ऐसे लोग यह बात भूल जाते हैं कि कश्मीर और कश्मीरी लोग दोनों ही हमारे हं। भारत सरकार तो पाक द्वारा अधिकृत कश्मीर में बसते लोगों को भी भारतीय मानती है। फिर कश्मीर में रहते लोगों के साथ दुव्यर्वहार कर उन्हें बेगाना होने का एहसास क्यों करवाया जा रहा है? सरकार ने धारा-370 हटाकर यह संदेश दिया है कि सभी राज्य एक, एक देश संविधान और एक कानून ही लागू होगा। यदि हम कश्मीरी लोगों के साथ बेगाना होने वाला व्यवहार करेंगे, तब धारा 370 हटाने की भावना ही खत्म हो जाती है। लम्बे समय से पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों ने कश्मीर के लोगों को गुमराह कर उनका भारत से रिश्ता तोड़ने की हर कोशिश की। प्रधानमंत्री नरिन्दर मोदी ने स्पष्ट कहा था कि कश्मीर के लोगों को गोली नहीं बल्कि गले लगाया जाएगा।

भड़काऊ कार्रवाई करने वालों को यह समझना चाहिए कि कश्मीरी विद्यार्थियों का देश के अन्य राज्यों में पढ़ना ही पाकिस्तान को करारा जवाब है। यह हैरानी की बात है कि कश्मीरी विद्यार्थियों के साथ इस तरह का सलूक किया जा रहा है जैसे वह किसी और देश के निवासी हों। केंद्र सरकार को हिंसक व शरारती तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर कड़ी सजा देनी चाहिए। कश्मीरी भारतीय हैं और उनके साथ जब अच्छा व्यवहार किया जाएगा, तब उनकी भारतीय संविधान और कानून में आस्था बढ़ेगी। अलवर के मामले में सभी दोषियों के खिलाफ कानून के अंतर्गत कार्यवाही की जानी चाहिए। केंद्र सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। सरकार को इसके खिलाफ अभियान चलाने की आवश्यकता है कि भारत की लड़ाई आतंकवाद के साथ है, कश्मीर के लोगों के साथ नहीं।

प्रत्येक कश्मीरी को आतंकवादी के चश्मे से देखना, उनका अपमान करना मानवीय अधिकारों का उल्लंघन है। हम कश्मीर की जनसंख्या में घुल-मिलने की बात करते हैं तब उन घुले-मिले काश्मीरियों को तोड़ने से हमारी वह एकता भंग होती है जोकि कश्मीरियों ने देश के अलग-अलग राज्य में पढ़-लिखकर कारोबार कर एक होने की बनाई है। 



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