रुपये-पैसे से जुड़े हर डर को दूर करना बहुत मुश्किल नहीं है

2020-02-01 0

कई लोग हर समय अपनी वित्तीय स्थिति को लेकर चिंतित रहते हैं। शेयर बाजार में बड़े नुकसान का डर नौकरी गंवाने का डर या रिटायरमेंट फंड को लेकर चिंता आदि के चलते परेशान रहने से काम नहीं चलेगा, छोटे-छोटे टिप्स हैं इनसे निपटने के।

  • सीधे शेयर्स में नहीं, बल्कि म्यूचुअल पफंड के जरिए इन्वेस्टमेंट करने से शेयर बाजार के रिस्क के डर से बच सकते हैं आप।
  • रिटायर होने पर पता नहीं, पैसा होगा या नहीं। इस डर से निपटने को अभी से कमाई का बड़ा हिस्सा बचाना शुरू कर दें।
  • नौकरी जाने का डर हो तो अपने साथ ईमानदार रहें और यह देखें कि क्या आपकी आशंका का कारण आपका खराब प्रदर्शन है।

ऋजु मेहता

कई लोग हर समय अपनी वित्तीय स्थिति को लेकर चिंतित रहते हैं। ऐसा केवल मार्केट में उतार-चढ़ाव के दौरान नहीं होता। आइए जानें कि ये आशंकाएं कौन-कौन सी होती हैं और इनसे निपटने और वित्तीय स्थिति को बेहतर बनाने के लिए आपको क्या-क्या करना चाहिए।

सवालः

मुझे स्टॉक मार्केट में बड़ा नुकसान होगा, विशेष तौर पर वोलैटिलिटी के दौरान’

यह शायद सबसे सामान्य वित्तीय डर है, विशेष तौर पर नए, कम अनुभव वाले और कम वित्तीय जानकारी रखने वाले निवेशकों के बीच। यह ऐसे व्यत्तिफ के लिए सच है जिसने पहले मार्केट के उतार-चढ़ाव में नुकसान उठाया है। इससे मार्केट में नुकसान होने का डर आ सकता है।

इससे कैसे निपटें?

अगर आपके पास इन्वेस्टमेंट की समझ नहीं है या आपने नुकसान उठाया है और इस वजह से आपको डर है, तो एक अच्छा विकल्प सीध्े शेयर्स में नहीं, बल्कि म्यूचुअल फंड के जरिए इन्वेस्टमेंट करने का होगा। अगर आप शेयर्स में ट्रेड करना चाहते हैं तो दोस्तों या रिश्तेदारों से मिले टिप्स पर पूरी तरह विश्वास न करें। इस बारे में खुद जानकारी हासिल करें या एक पफाइनैंशल अडवाइजर जैसे प्रोपफेशनल की मदद लें। आपके लिए एक अच्छा सुझाव लॉन्ग-टर्म के लिए इनवेस्ट करना और मार्केट में उतार-चढ़ाव को लेकर प्रभावित न होना है।

सवालः

मेरे पास रिटायरमेंट के समय पर्याप्त फंड नहीं होगा और मुझे अपने बच्चों पर निर्भर करना पड़ सकता है’

लगभग 51 पर्सेंट लोगों को आशंका है कि रिटायर होने पर उनके पास पैसा नहीं रहेगा। HSBC फ्रयूचर ऑफ रिटायरमेंट स्टडी में बताया गया है कि 10 में से सात लोगों को अपने बच्चों से मदद की उम्मीद है। देश में नौकरीपेशा लोगों में से लगभग 55 पर्सेंट रिटायरमेंट के लिए बचत कर रहे हैं, जबकि इसका वैश्विक आंकड़ा 39 परसेंट का है।

इससे कैसे निपटें?

अगर आपको भी यह आशंका है तो अपने गैर जरूरी खर्चों को घटाकर अपनी इनकम के एक बड़े हिस्से की बचत करें। इसके साथ ही यह जांचें कि आप सही विकल्प में इन्वेस्ट कर रहे हैं या नहीं जिससे आपका फंड अच्छी रफ़्तार से बढ़े। अगर जरूरी हो तो एक पफाइनैंशल अडवाइजर की मदद लें। इनकम के अतिरित्तफ स्रोत हासिल कर और अपनी मौजूदा इनकम को बढ़ाकर रिटायरमेंट को टालने की कोशिश करें।

मैं अपनी नौकरी गंवा दूंगा’

अगर आप नौकरी जाने को लेकर चिंतित हैं तो आपको अपने बॉस या सहकर्मियों से स्पष्ट संकेत मिले हैं या आपने अपनी कंपनी, इंडस्ट्री या सेक्टर में हाल ही में छंटनी देखी है। दोनों ही मामलों में आपको इस आशंका का मुकाबला करना होगा।

इससे कैसे निपटें?

अपने साथ ईमानदार रहें और यह देखें कि क्या आपकी आशंका का कारण आपका खराब प्रदर्शन है। अगर हां, तो अपने बॉस से बात करें और सुधार करने या स्किल बढ़ाने के तरीके खोजें। अगर कारण आपकी पहुंच से बाहर है, जैसे कॉस्ट घटाने के उपाय या इंडस्ट्री की ख राब स्थिति। आपको बेहतर स्किल और मल्टीटास्किंग के जरिए खुद को अधिक उपयोगी बनाना होगा या पिंक स्लिप मिलने का इंतजार किए बिना नई नौकरी ऽोजना शुरू करना होगा। ऐसी स्थिति में इमर्जेंसी फंड होना अच्छा रहता है।

मैं अपने कर्ज कभी नहीं चुका सकूंगा’

कर्ज के जाल में फंसने का डर का कारण अक्सर उधर पर चीजें खरीदने की आदत होता है। इससे कई कर्ज हो जाते हैं। इनमें से कुछ बड़ी ईएमआई के साथ लंबी अवधि के लोन होते हैं। इससे कर्ज के घेरे से कभी बाहर न आने का डर हो सकता है।

इससे कैसे निपटें?

ऐसे डर से बचने का सबसे अच्छा तरीका यह सुनिश्चित करना है कि आपके सभी लोन आपकी इनकम के 40-50 परसेंट से अधिक न हों। अगर आपने पहले ही बड़ा कर्ज लिया है तो और लोन न लें और मौजूदा कर्ज को चुकाने की योजना बनाएं। क्रेडिट कार्ड बिल या पर्सनल लोन जैसे महंगे कर्ज के साथ शुरुआत करें और उसके बाद कार और एजुकेशन लोन चुकाएं। अगर आप होम लोन जैसे लंबी अवधि  के कर्ज को लेकर मुश्किल महसूस करते हैं तो इसे जल्द से जल्द चुकाने की कोशिश करें। हालांकि अगर आप टैक्स बेनिपिफट लेना चाहते हैं तो इसे बरकरार रखें लेकिन ईएमआई चुकाने में लापरवाही न करें।

मैं हेल्थ को लेकर मुश्किल होने पर क्या करूंगा’

मेडिकल इमर्जंेसी में अपनी बचत चले जाने का डर मेडिकल खर्च अधिक होने के चलते सही है। गंभीर बीमारी और दुर्घटना में चोट लगने की स्थिति में ऐसा अक्सर होता है। बहुत से मामलों में बेसिक हेल्थ इंश्योरेंस पर्याप्त नहीं होती।

इससे कैसे निपटें?

इससे बचने का एक अच्छा तरीका पर्याप्त इंश्योरेंस लेना है। आप 5 लाख रुपये का एक बेसिक हेल्थ प्लान खरीद सकते हैं और इसके साथ 15 लाख रुपये का एक बड़ा टॉप-अप 5 लाख रुपये के डिडक्टिबल के साथ लिया जा सकता है। यह 20 लाख रुपये की एक बड़े हेल्थ प्लान से सस्ता होगा। एक अन्य विकल्प अपने बेसिक हेल्थ प्लान के साथ एक इमरजेंसी फंड रखना है। मेडिकल इमर्जंेसी से निपटने के लिए क्रिटिकल इलनेस और ऐक्सीडेंटल डिसएबिलिटी इंश्योरेंस प्लान खरीदना भी महत्वपूर्ण है।

लंबी अवधि के बॉन्ड्स में निवेश वाले फंड्स से निकल जाना बेहतर!

एक्सपट्र्स की राय के मुताबिक, लॉन्ग डड्ढूरेशन फंड्स से रिटर्न आने वाले समय में कम रह सकता है, डेट पोर्टपफोलियो को छोटी अवधि  वाले डेट फंड्स की ओर शिफ्रट कर लेना चाहिए।

सवालः

आरबीआई ने पिछले दिनों एक अस्वाभाविक कदम उठाया था। आॅपरेशन ट्विस्ट के तहत उसने 10 साल की अवधि वाले सरकारी बॉन्ड खरीदे थे जबकि सालभर में मैच्योर होने वाले बॉन्ड खरीदे थे। इसका बॉन्ड फंड इन्वेस्टर्स के लिए क्या मतलब है?

जवाबः

आरबीआई द्वारा यह कदम उठाने से पहले के हफ्रतों में बॉन्ड मार्केट्स का पलड़ा एक ओर ज्यादा झुक गया था। कम अवधि के सरकारी बॉन्ड्स के मुकाबले लंबी अवधि के सरकारी बॉन्ड्स पर यील्ड बढ़ गई थी। लंबी अवधि के बॉन्ड्स पर प्रायः ‘टर्म प्रीमियम’ होता है यानी यील्ड ज्यादा होता है क्योंकि लंबी अवधि के साथ जुड़ी अनिश्चितता के कारण निवेशक इन्हें ज्यादा जोखिम वाला मानते हैं और इनमें निवेश करने के लिए ज्यादा ब्याज की डिमांड करते हैं। लिहाजा कम अवधि की मैच्योरिटी वाले बॉन्ड्स से शुरू होकर सबसे ज्यादा अवधि के बॉन्ड पर यील्ड की जानकारी देने वाला चार्ट यानी यील्ड कर्व ऊपर की ओर चढ़ता है।

मौजूदा आर्थिक स्थितियों और बॉन्ड मार्केट्स में ज्यादा अनिश्चितता के कारण यील्ड कर्व सामान्य से भी ज्यादा तीखा हो गया। यील्ड्स में अंतर कापफी ज्यादा बढ़ गया। आरबीआई ने तब इसमें दखल देने का निर्णय किया ताकि यील्ड कर्व को कुछ नरम किया जाए। इसके लिए उसने लंबी अवधि के बॉन्ड्स खरीदने और छोटी अवधि के बॉन्ड्स बेचने का पफैसला किया। इससे लंबी अवधि के बॉन्ड्स पर बढ़े हुए यील्ड को घटाने में मदद मिली और इस दौरान इंटरेस्ट रेट्स पर भी असर नहीं पड़ा। बॉन्ड मार्केट ने इस पर वांछित प्रतिक्रिया दी थी। 16 दिसंबर को 10 साल के बेंचमार्क बॉन्ड पर यील्ड 6.8 प्रतिशत था, जो साल के अंत तक 6.52 प्रतिशत पर आ गया। बॉन्ड यील्ड और बॉन्ड प्राइस एक-दूसरे से उल्टी दिशा में चलते हैं। लंबी और कम अवधि वाले बॉन्ड्स के बीच स्प्रेड कापफी घट गया। इससे यील्ड कर्व का असंतुलन कम हुआ।

आरबीआई के इस अलग नजरिए से लंबी अवधि के बॉन्ड्स को कापफी पफायदा होगा। हालांकि एक्सपट्र्स आरबीआई के इस कदम से ज्यादा उत्साहित होने के प्रति आगाह कर रहे हैं। उनका कहना है कि निवेशकों को भविष्य में ऐसे ज्यादा कदमों की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। इडलवाइज म्यूचुअल फंड के पिफक्स्ड इनकम हेड ध्वल दलाल ने कहा कि बॉन्ड मार्केट्स के लिए यह ऐक्शन स्थिति सापफ करने के मुकाबले दुविध पैदा करने वाला है। उन्होंने कहा, श्आरबीआई का मकसद कभी भी यील्ड कर्व को मैनेज करना नहीं रहा है। उसका घोषित उद्देश्य तो इंफ्रलेशन को काबू में करना रहा है।श् केनरा रोबेको म्यूचुअल फंड के पिफक्स्ड इनकम हेड अवनीश जैन ने कहा, श्आरबीआई का यह कदम पॉलिसी में किसी बड़े बदलाव के बजाय पफौरी तौर पर उठाया गया लगता है।’

इसके अलावा बॉन्ड मार्केट में यह सेंटीमेंट दिख रहा है कि लंबी अवधि के बॉन्ड्स में और चढ़ने की गुंजाइश सीमित है। कुछ मैक्रो इंडिकेटर्स से भी बॉन्ड मार्केट्स पर असर पड़ने का पता चल रहा है। कुछ महीनों पहले नरम चल रही इन्फ्रलेशन में तेजी आनी शुरू हो गई है। जैन ने कहा, ‘नए साल की पहली छमाही में इन्फ्रलेशन में तेजी जारी रह सकती है।’ इंफ्रलेशन ज्यादा रहने से आरबीआई को सतर्कता बढ़ानी पड़ेगी और इकॉनमी को सहारा देने के लिए ब्याज दरों में नरमी लाने के बजाय उन्हें जस का तस बनाए रखना पड़ सकता है। इससे बॉन्ड प्राइसेज में और तेजी की गुंजाइश घटेगी। राजकोषीय समीकरण भी दबाव में दिख रहा है। जीएसटी कलेक्शंस में कमी और इस साल के विनिवेश लक्ष्य के हासिल न हो पाने की आशंका को देखते हुए सरकार राजकोषीय घाटे का लक्ष्य चूक सकती है। राजकोषीय घाटे में बढ़ोत्तरी यानी सरकारी आमदनी के बजाय इसके खर्च में इजापफा ज्यादा होने से सरकार को अधिक उधर लेना पड़ सकता है। यह बॉन्ड मार्केट्स के लिए बुरी खबर है क्योंकि बॉन्ड्स की सप्लाई बढ़ने बॉन्ड प्राइसेज में नरमी आएगी।

इस तरह के सेंटिमेंट्स को देत हुए एक्सपट्र्स अवधि के आधर पर जोखिम उठाने से बचने की सलाह दे रहे हैं। डड्ढूरेशन स्ट्रैटिजी में निवेशक ब्याज दरों में कमी के माहौल में लंबी अवधि के बॉन्ड फंड्स पर दांव लगाते हैं। ब्याज दरों में नरमी के बीच पिछले सालभर में लंबी अवधि के डेट फंड्स और गिल्ट फंड्स में पैसा लगाने वाले निवेशकों ने अच्छा रिटर्न पाया है। इन फंड्स ने औसतन क्रमशः 12.4% और 10.7% की बढ़ोत्तरी दर्ज की। आने वाले समय में इस बास्केट से गेन सीमित रह सकता है। दलाल का कहना है कि लॉन्ग डड्ढूरेशन फंड्स में प्रॉपिफट बुक करने का यह सही समय है। उन्होंने कहा, ‘बॉन्ड मार्केट में यह सीन बनता दिख रहा है कि सरकार अतिरित्तफ उधर लेगी और इन्फ्रलेशन में बढ़ोत्तरी होगी। ऐसे में बॉन्ड यील्ड्स में धीरे-धीरे ही बढ़ोत्तरी होगी।’ फंड मैनेजरों की सलाह है कि निकट भविष्य के लिए छोटी अवधि के बॉन्ड फंड्स के साथ रहना चाहिए क्योंकि अवधि छोटी होने से ब्याज दर में बदलाव का असर भी कम ही होता है। 



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