चीन के पाले से नेपाल को खींच पाएगा भारत?

2018-07-01 0

यह बात छिपी नहीं है कि 2015 की आर्थिक नाकेबंदी के बाद नेपाल और भारत के रिश्तों में खटास आ गई थी और अन्य पड़ोसी मुल्कों के बीच भी भारत का पहले जैसा ओहदा नहीं रहा। नेपाल में बिताए लगभग तीस घंटों में नरेन्द्र मोदी यहां के मुख्य मंदिरों में भी गए। खास बात यह रही कि नरेन्द्र मोदी ने पूरी यात्रा के दौरान भारत और नेपाल के प्राचीन सामाजिक और सांस्कृतिक रिश्तों पर जोर दिया। 

उन्होंने जनकपुर और अयोध्या के बीच बस सेवा भी शुरू की। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस तरह की कोशिशेें दक्षिण एशियाई देशों और खसकर नेपाल के साथ भारत के सम्बंधों में मिठास ला पाएंगे? इस पूरी यात्रा के दौरान इस तरह की चर्चा सुनाई दी कि नरेन्द्र मोदी का यह दौरा सांस्कृतिक था। लेकिन नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार युवराज घिमीरे बताते हैं कि इस यात्रा के जरिए नरेन्द्र मोदी ने अपनी छवि सुधारने की भी कोशिश और भारत-नेपाल रिश्तों को बेहतर करने का भी प्रयास किया। 

वह बताते हैं कि ‘‘मोदी सरकार की इस बात को लेकर भी अलोचना हो रही है कि दक्षिण एशियाई के पड़ोसी देशों के बीच उसने अपनी हैसियत गंवाई है और वे देश चीन के करीब हो रहे हैं। तो यह कोशिश थी कि कैसे उनको वापस भारत के करीब लाया जाए।’’

रिश्ते खराब होने के कारण 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अयोध्या और जनकपुर के बीच बस सेवा को हरी झंडी दिखाई और कहा कि सदियों पहले राजा दशरथ ने अयोध्या और जनकपुर ही नहीं बल्कि भारत-नेपाल मैत्री की भी नींव रख दी थी। आखिरी नेपाल के साथ भारत के रिश्ते खराब कैसे हो गये जो भारतीय प्रधानमंत्री को बार-बार भारत और नेपाल के पुराने और ऐतिहासिक सम्बंधों की याद दिलानी पड़ी। नेपाल मामलों में के जानकारी आनंद स्वयं इसके लिए भारत की कुछ गलतियों को जिम्मेदार मानते हैं। 

आनंद स्वरूप वर्मा कहते हैं, ‘‘नेपाल तीन ओर भारत से घिरा हुआ है। जैसे लैंड लॉक्ड कहते हैं, उस तरह से कहा जा सकता है कि यह इंडिया लॉक्ड है। तीन तरफ से यह भारत से घिरा है और एक तरफ चीन है। मगर चीन की तरफ पहाड़ हैं और मौसम ऐसा है कि नेपाल चीन पर निर्भर नहीं रह सकता।’’  ‘अगर तीन तरफ से नाकेबन्दी होगी तो नेपाल चीन की तरफ ही देखेगा। नाकेबंदी के दौरान यही हुआ था। 20 दिन बाद उसने पेट्रोल लेने के लिए चीन की तरफ हाथ बढ़ाया था। उस समय ओली की सरकार थी और आज भी वो पीएम हैं। सर्दियों के उस मौसम में अगर वे चीन से मदद नहीं मांगते तो भूखों मर जाते वह चीन के लिए अच्छा अवसर था और वह खूब मदद की। आज भी चीन मदद कर रहा है।’’

नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार युवराज घिमीरे भी मानते हैं आर्थिक नाकेबंदी के बाद से नेपाल को विचार करना पड़ा है कि फिर वैसी नौबत आए तो एक विकल्प होना चाहिए। वह बताते हैं, ‘‘नाकेबन्दी के बाद नेपाल ने कहा कि टेªड और ट्रांजिट के लिए सिर्फ भारत पर निर्भर करना मुश्किल है। हमें चीन के साथ भी टेªड और ट्रांजिट बढ़ाना चाहिए ताकि दोबारा ऐसे हालात बनने पर वैकल्पिक मार्ग बने। नेपाल की जनता इससे खुश है और उसने ओलल सरकार हो या कोई और इस मुद्दे पर उसका समर्थन किया है।’’

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नेपाल की चिन्ता

नेपाल में इस बात को लेकर चिन्ता रहती है कि भारत उसके आंतरिक मामलों में दखल दे रहा है। नेपाल के वरिष्ठ पत्रकार युवराज घिमीरे बताते हैं कि आखिर नेपाल में भारत की किस बात को लेकर नाराजगी है। वह कहते हैं, ‘‘नेपाल में गरीबी हो सकती है, पिछड़ापन हो सकता है, अशिक्षा हो सकती है लेकिन वह अपनी आजाद बने रहने, किसी का उपनिवेश न बनने की बात पर गर्व करता है। जब कोई संप्रभुता को कम करके आंकता है तो उसे आक्रोश आता है। खासकर यहां ऐसी धारणा है कि भारत साल 2006 के बाद नेपाल की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप की कोशिश कर रहा है। 

क्या भारत को अपने पड़ोसी देशों पर नेपाल के बढ़ते प्रभाव को लेकर भी चिन्ता होनी चाहिए। इसे लेकर आनंद स्वरूप वर्मा कहते हैं, ‘‘एक चीज साफ है कि चीन की भारत से प्रद्वंद्विता नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय रूप से अमरीका उसका राइवल है। भारत से उसकी कोई कटुता अगर दिखती भी है तो वह इसलिए भारत एक तरफ से अमरीका का जूनियर पार्टनर बनकर घूमता है। अगर नेपाल चीन की तरफ रुख करता है तो यह भारत की नेपाल नीति की विफलता का ही प्रमाण होगा।’’

जानकारों का मानना है कि भारत अपने पड़ोसी देशों का भरोसा तभी जीत सकता है, जब वह उनसे किए अपने वादों को पूरा करे और उन्हें उस रूप में स्वीकार करे जैसे वे हैं- स्वतंत्र और संप्रभु पड़ोसी राष्ट्र |

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