फ़सलों की एमएसपी कहीं चुनावी फ़ सल काटने की मजबूरी तो नहीं

2018-08-01 0

फ़सलों की MSPकहीं चुनावी फ़ सल काटने की मजबूरी तो नहीं

केन्द्र सरकार के द्वारा खरीफ़ की फ़सलों के न्यूनतम समर्थन में बढ़ोत्तरी की गई है। सरकार की ओर से इसे बड़ा फ़ैसला बताया जा रहा है तो वहां कई एक्सपर्ट ने भी अपनी राय रखी है। ष्टक्रढ्ढस्ढ्ढरु के चीफ़  इकॉनोमिस्ट धर्म कीर्ति जोशी ने इस फ़ैसले को सही बताया। उन्होंने कहा कि इस साल खरीफ़ फ़ सलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य द्धएमएसपीऋ फ़सलों की वास्तविक कीमत और किसान की मेहनत के फ़ॉर्मूले 50-97 फ़ीसदी अधिक निर्धारित की गई और यह पिछले साल की तुलना में 4-52 फ़ ीसदी अधिक है।

क्या है एमएसपी?

राज्य सरकारों को यह अधिकार नहीं है कि वो अलग से न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करे। लेकिन कई राज्य अलग से आकलन करते हैं और इसके आधार पर स्टेट एडवाइज्ड प्राइस द्धएसपीऋ या राज्य परामर्श मूल्य तय करते हैं। उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्य मिलों के लिए अपनी ओर से गन्ने का अपना राज्य परामर्श-मूल्य द्धएसपीऋ घोषित करते हैं जो केन्द्र द्वारा तय मूल्य से अधिक होता है।

इसी तरह से मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ धान और गेहूं पर बोनस दे रहे थे। जब 2014 में मोदी सरकार आई तो उन्होंने इन दोनों राज्यों से कहा कि बोनस नहीं दें। अगर देंगे तो पीडीएस की जरूरत से ज्यादा आपका धान और चावल नहीं लिया जाएगा। उन दोनों राज्यों से बोनस बंद कराया गया।

मंत्रिमण्डल की बैठक में लिए गए फ़ैसले की जानकारी देते हुए केन्द्रीय गृहमं=ी राजनाथ सिंह ने कहा कि सरकार ने किसानों को उनकी फ़सलों की लागत का डेढ़ गुना एमएसपी देने का ऐतिहासिक फ़ैसला किया है जिससे अर्थव्यवस्था को बड़ा प्रोत्साहन मिलेगा।

इससे धान, ज्वार, बाजरा, मूंगफ़ली, सोयाबीन, रागी, उड़द, तुअर, सूरजमुखी, तिल आदि फ़सलों के किसानों को लाभ मिलेगा। हालांकि केन्द्र सरकार को एमएसपी में बढ़ोत्तरी से 15,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च करना होगा।

वहीं सरकार द्वारा पिछले साल खरीदी गई फ़सल के आधार पर औसत एमएसपी में वृि) लगभग 13 फ़ीसदी है। यदि यह मान लिया जाये कि सरकार इस साल भी उतनी फ़सल खरीदने जा रही है जितनी पिछले साल खरीदी गई तब एमएसपी में की वृि) से केन्द्र सरकार के खजाने पर 11,500 करोड़ रुपए का असर पड़ेगा।

हालांकि एमएसपी में वृि) का वास्तविक असर केन्द्र सरकार पर इससे अधिक पड़ने की उम्मीद है क्योंकि इस साल सरकार पिछले साल से अधिक फ़सल खरीद करने के लिए तैयार है। वहीं, जहां फ़सल की खरीद नहीं होगी वहां फ़सल की एमएसपी और वास्तविक कीमत कीमत द्धमंडी में कीमतऋ घोषणा की गई एमएसपी से कम है। लेकिन किसानों की लागत तय करने के लिए सरकार ने क्या फ़ार्मूला अपनाया और इस बढ़े हुए समर्थन मूल्य का फ़ायदा किसानों तक वो कैसे पहुंचाएगी सरकार?

सिराज हुसैन का नजरिया

पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के किसानों के लिए यह अच्छी खबर है क्योंकि इनके धान सरकारी एजेंसियां खरीद लेती हैं।

इन राज्यों के किसानों को उनके धान की 1 से 13 फ़ीसदी अधिक कीमत मिलेगी, लेकिन जिन किसानों की फ़सल सरकार नहीं खरीदती उनको इसका इंतजार रहेगा कि सरकार इन्हें इस बढ़े हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य का फ़ायदा कैसे पहुंचाएगी। ये सरकार के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है।

कैसे मापा जता है एमएसपी?

कृषि पर लागत का अध्ययन कृषि मंत्रलय सभी राज्यों में करवाती है। इस अध्ययन से मालूम होता है कि किसी राज्य में किस फ़सल को उगाने पर लागत कितनी आती है। उसको ध्यान में रखते हुए और बाकी अन्य सेक्टर को ध्यान में रखते हुए कृषि लागत और मूल्य आयोग द्धसीएसीपीऋ भारत सरकार को अपनी संस्तुति देता है कि किसी फ़सल का न्यूनतम समर्थन मूल्य कितना होना चाहिए। कोशिश ये होती है कि 70 फ़ीसदी उत्पादन को न्यूनतम समर्थन मूल्य कवर कर ले फि़र भी कुछ राज्य ऐसे रह जाएंगे कि वहां फ़सल पर लागत समर्थन से ज्यादा होगी। राज्य की कृषि पर लागत को सीएसीपी ध्यान में रखता है।

केन्द्र ने महंगाई को किया काबू

हर साल चार-पांच फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हो रही थी। मोदी सरकार जब बनी थी तो खाने-पीने की चीजों की महंगाई बहुत अधिक थी। उस महंगाई को काबू करने के लिए बहुत अच्छा काम किया गया है। उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी कर चार-पांच फ़ीसदी के बीच में रखने के साथ उसे काबू में रखने की कोशिश की थी। इसकी वजह से केन्द्र सरकार महंगाई को काबू करने में सफ़ल हो सकी।

न्यूनतम समर्थन मूल्य इतना अधिक क्यों?

धान की एमएसपी में 200 रुपए प्रति क्विंटल की रिकॉर्ड वृि) की गई, जबकि अन्य खरीफ़ फ़सलों के एमएसपी में 52 प्रतिशत की वृि) कर दी गई है। सरकार के इस कदम से खाद्य सब्सिडी का बोझ बढ़कर दो लाख करोड़ रुपए के पार पहुंच सकता है और मुद्रास्फ़ीति बढ़ने के रूप में भी इसका असर सामने आ सकता है। इस साल न्यूनतम समर्थन मूल्य में इतनी वृि) एक फ़ार्मूले के तहत की गई है। इस साल अंतर्राष्ट्रीय स्थिति क्या है, निर्यात के क्षे= में होड़ क्या है, किसी कमॉडिटी की मांग क्या है, उस पर गौर नहीं किया गया। इस बार केवल कृषि पर लागत को देखा गया और उसमें 50 फ़ीसदी वृि) कर दी गई, आमतौर पर महंगाई के प्रभाव को देखते हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाया जाता है, लेकिन चुनावी साल की अपनी मजबूरियां होती हैं।

अब एक बार फि़र चुनाव का साल आ गया है। अगले साल लोकसभा के चुनाव होने हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव उससे पहले होना है। तो राजनीतिक मजबूरियों के कारण वहां एक बार फि़र बोनस की घोषणा कर दी गई है। 

केन्द्र सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का बढ़ाना किसानों के लिए तोहफ़ा

पिछले एक साल से लगातार आन्दोलन कर रहे किसानों को केन्द्र सरकार ने राहत देते हुए सन् 2018-19 की खरीफ़ फ़सलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में अच्छी बढ़ोत्तरी को किसानों के लिए तोहफ़ा कहा जा सकता है। सरकार ने 24 कृषि उपजों का एमएसपी बढ़ाया है। धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य को  200/- प्रति क्विंटल बढ़ाया है। जो पिछले छरू वर्षों में सबसे अधिक है। इतना समर्थन मूल्य भारतीय इतिहास में कभी भी नहीं बढ़ाया गया है जो कि बढ़कर डेढ़ गुना हो गया है। पिछली सरकारों में सिफ़र् एक बर जनता पार्टी  के शासन में 1978 में जरूर 30 प्रतिशत एकदम बढ़ाया गया था।  हम यह समझ लें कि न्यूनतम समर्थन मूल्य वह मूल्य है जिस पर सरकार किसानों से उनकी उपज खरीदती है। एमएसपी की शुरुआत किसानों को गेहूं, चावल जैसी फ़सलों का उत्पादन बढ़ाने को प्रेरित करने के लिए की गई थी। बम्पर उत्पादन के दौरान किसानों को फ़सलों के दाम में भारी गिरावट की मार से बचाने की गारंटी देती है। सरकारें 1965 से ही विभिन्न रूप में एमएसपी बढ़ोत्तरी का एलान करती रही है। अब प्रश्न यह उठता है कि फ़सलों की कुल लागत के आंकलन में  बीज, खाद कीटनाशक मशीनरी और मजदूरी तक शामिल है पर जमीन की लगान का इसमें हिसाब नहीं रखा गया है क्योंकि यह हर राज्य में अलग-अलग होती है। इस बढ़ोत्तरी को किसानों और किसानों से सम्बंधित संस्थाओं ने इसे किसानों के हित में पाया है और आशा व्यक्त की है कि इससे किसानों के जीवन-स्तर में सुधार होगा और असामाजिक आत्महत्या में कमी आएगी। इस एमएसपी में बढ़ोत्तरी से केन्द्र सरकार पर 15 हजार करोड़ का अतिरिक्त भार बढ़ेगा। दरअसल, सरकार पर सब्सिडी का बोझ बढ़ेगा क्योंकि कमजोर वर्ग को कम दर पर राशन देने के लिए उसे अनाज महंगा खरीदकर सस्ते में उपलब्ध कराना होगा।

अब इसमें विशेष ध्यान देने वाली बात है कि इसका लाभ उन राज्यों के किसानों को आसानी से मिलेगा जहां सरकारी मीडिया ठीक से काम कर रही है और किसानों से खरीदी हुई उपज में खरीदने की व्यवस्था उचित है। लेकिन जिन राज्यों में किसानों की उपज सरकारी खरीद केन्द्रों में नहीं पहुंच पाते या खरीद केन्द्रों में फ़सल को खरीदने का या रख-रखाव की व्यवस्था नहीं है, वहां पर इस बढ़ोत्तरी का विशेष फ़ायदा नहीं होगा और किसानों के जीवन-स्तर में कोई सुधार नहीं होगा। इसलिए जितना जरूरी एमएसपी में बढ़ोत्तरी करना है उतना ही जरूरी खरीद केन्द्रों को सुव्यवस्थित करना और किसानों के साथ कर्मचारियों द्वारा अच्छा और शिष्ट व्यवहार करना भी जरूरी है। 



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