आपके डेटा से बड़ी ऑनलाइन कंपनियां क्या करती हैं?

2018-08-01 0

आपके डेटा से बड़ी ऑनलाइन कंपनियां क्या करती हैं?

आन को ट्रैक करना, फ़ोन के मैसेज खंगालना और फ़ोन के यूजर की जानकारी कुछ थर्ड पार्टी  कंपनियों को देना। जब किसी नए ऐप या वेबसाइट को आप इस्तेमाल करना शुरू करते हैं तो मोटे तौर पर ये तीन अनुमतियां होती हैं जो आप किसी भी ऐप बनाने वाली कंपनी को जाने या अनजाने में दे देते हैं। पर क्या ये यहीं तक सीमित है? और इस्तेमाल की जो शर्तें कम्पनी ने शुरुआत में पढ़ने को दी होती हैं, क्या उसकी शब्दावली समझ पाना आसान होता है, बीबीसी की रिसर्च टीम ने 15 बेहद लोकप्रिय ऐप्स और वेबसाइट्स पर प्राइवेसी पॉलिसी पढ़ने के बाद ये पाया कि ऐप बनाने वाली कंपनियां जो गोपनीयता की नीतयां और इस्तेमाल की शर्तें उपभोक्ताओं को देती हैं, उन्हें समझने के लिए कम से कम यूनिवर्सिटी स्तर की शिक्षा होना आवश्यक है। अक्सर ऐसे दस्तावेज तैयार करते समय कंपनियां बेहद जटिल शब्दों और घुमावदार वाक्यों का इस्तेमाल करती हैं। लेकिन इन दस्तावेजों को तसल्ली से पढ़ा जाये तो कुछ आश्चर्यजनक वास्तविकताओं से सामना होता है।

1- लोकेशन ट्रेकिंग

आपके मोबाइल की लोकेशन क्या है, ये हमेशा ट्रेक किया जाता है, भले ही आप इसकी अनुमति दे या न दें, कई ऐप उपभोक्ताओं से लिखित अनुमति मांगते हैं कि क्या उनके मोबाइल की ट्रेकिंग की जा सकती है, लेकिन यूजर मना कर भी दे, तब भी कंपनियों को यह पता होता है कि आपके मोबइल की लोकेशन क्या है। फ़ेसबुक और ट्विटर जैसे नामी ऐप भी इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस की मदद से ऐसा करते हैं।

 

2- सहयोगी कंपनियों को डेटा देना

कई ऐप ऐसे हैं जो आपसे एकत्र  हुई सूचनाओं को अपने प्रतिद्वंद्वी और सहयोगी कंपनियों को बेचते हैं। इन ऐप निर्माता कंपनियों का तर्क होता है कि वो बेहतर उपभोक्ता सेवा और श्सही लोगों तक्य अपने विज्ञापन पहुंचाने के लिए ऐसा करते हैं। मसलन, टिंडर जैसे डेटिंग ऐप जो सूचनाएं अपने उपभोक्ताओं से लेते हैं वो वोके -क्यूपिड, प्लेन्टी ऑफ़ फि़श और मैच डॉट कॉम जैसे अन्य डेटिंग ऐप्स के साथ शेयर करते हैं।

3- थर्ड पार्टी की बंदिश

अमेजॉन लिखता है कि वो आपका डेटा थर्ड पार्टी  ऐप्स के साथ शेयर कर सकता है, अमेजॉन ने ये स्पष्ट लिखा है कि यूजर सावधानी से उनकी गोपनीयता की नीतियों को पढ़ें। फ़ोन निर्माता कंपनी एप्पल भी ऐसा करती है। हाल ही में लागू हुई यूरोपियन यूनियन की जेनेरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन में भी ये नहीं कहा गया है कि कंपनियां अपनी थर्ड पार्टी  लिस्ट जारी करें। कानून के कई जानकारी मानते हैं कि कंपनियों का यूं किसी थर्ड पार्टी कंपनी को डेटा देना, खतरनाक साबित हो सकता है। वहीं दूसरी तरफ़  विकिपीडिया अपने यूजर्स की पर्सनल जानकारी मार्केटिंग के लिए कभी किसी थर्ड पार्टी  को नहीं देता।

4- टिंडर की डेटा शेयरिंग

कई बार श्डेटा शेयर्य- करने का मतलब किसी यूजर का नाम, उम्र और उसकी लोकेशन शेयर करने तक ही सीमित नहीं होता। मसलन, डेटिंग ऐप टिंडर ये साफ़ तौर पर कहता है कि वो कई अन्य बारीक जानकारियां भी जुटाता है। जैसे-यूजर ने फ़ोन किस कोण द्धएंगलऋ पर पकड़े रखा और ऐप इस्तेमाल करते वक्त फ़ोन का मूवमेंट कितना था। कंपनी के पास इसका कोई जवाब नहीं है कि ये डेटा किस काम में आता है। 

5- फ़ेसबुक सर्च

फ़ेसबुक पर आपने क्या-क्या सर्च किया, उसे डिलीट करने का विकल्प फ़ेसबुक अपने यूजर्स को देता है। लेकिन डिलीट करने के बावजूद फ़ेसबुक अपने पास छह महीने तक ये रिकॉर्ड संभालकर रखता है कि उपभोक्ता ने बीते दिनों क्या-क्या सर्च किया।

6- ऑफ़  लाइन ट्रेकिंग

अगर आपके फ़ोन में फ़ेसबुक ऐप है और आपने उसमें लॉग-इन नहीं कर रखा या अकाउंट ही नहीं बनाया, तब भी फ़ेसबुक आपका फ़ोन ट्रैक कर सकता है। फ़ेसबुक की डेटा पॉलिसी के अनुसार, कंपनी यूजर की गतिविधियों पर फ़ेसबुक बिजनेस टूल की मदद से नजर रखती है, भले ही वो फ़ेसबुक का इस्तेमाल नहीं कर रहा हो, कंपनी के मुताबिक, वो जानकारियां कुछ इस तरह की होती हैं, जैसे-यूजर के पास कौन-सा फ़ोन है, उसने कौन-सी वेबसाइट देखी, क्या-क्या खरीदारी की और किन विज्ञापनों को देखा।

7- बदलाव, बार-बार

एप्पल का कहना है कि 18 साल से कम उम्र के यूजर्स को एप्पल की प्राइवेसी पॉलिसी अपने अभिभावकों के साथ बैठकर पढ़नी चाहिए और उसकी बारीकियों को समझना चाहिए। एक वयस्क व्यक्ति अगर एक बार में बैठकर ऐप की पूरी प्राइवेसी पॉलिसी पढ़ता है, तो उसे औसतन 40 मिनट लगते हैं। क्या किसी किशोर मोबाइल यूजर को श्प्राइवेसी पॉलिसी्य पढ़ने के लिए इतने वक्त तक रोका जा सकता है? वैसे समस्याएं और भी हैं। अमेजॉन कहता है कि यूजर्स को उसकी पॉलिसी चेक करते रहना चाहिए क्योंकि उनका बिजनेस बदलता रहता है।  बहरहाल, गूगल और फ़ेसबुक जैसी बड़ी कंपनियों का दावा है कि वो अपनी लिखित नीतियों को यूजर्स के लिए सरल से सरल बनाने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन ऑनलाइन माध्यमों पर यूजर्स की सुरक्षा, खासकर बच्चों की सुरक्षा के लिए काम कर रही संस्थाएं फि़लहाल कंपनियों की इन कोशिशों को पर्याप्त नहीं मानतीं।

8- प्राइवेट मैसेज

अगर आपको लगता है कि प्राइवेट मैसेज सिफ़र्  आपके अपने हैं, तो इस बारे में दोबारा सोचिए। अपनी प्राइवेसी पॉलिसी के अनुसार, लिंकडिन कथित तौर पर ऑटोमेटिक स्कैनिंग टेक्नोलॉजी की मदद से यूजर के प्राइवेट संदेश पढ़ सकता है। ट्विटर आपके संदेशों का एक डेटा बेस अपने पास रखता है। कंपनियों का दावा है कि वो इसकी मदद से ये जानने की कोशिश करते हैं कि यूजर ने कब और किससे संवाद किया। लेकिन ये कहा गया है कि वो प्राइवेट मैसेज का कंटेट नहीं पढ़ते।



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