कश्मीर में तीन दशक बाद पुनः सिल्क की फैक्टरी की शुरूआत

2018-09-01 0

वर्ष के अंत तक 3-5 लाख मीटर रेशमी कपड़ा तैयार होने का लक्ष्य 

कश्मीर की सोलिना सिल्क फैैक्ट्री में तीन दशक के बाद पुनः रेशमी कपड़े का उत्पादन शुरू हो गया है। जिससे इस वर्ष के अंत तक 3-5 लाख मीटर रेशमी कपड़ा तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है। जिससे कश्मीर में रेशम के कीड़े वाले किसानों, रेशम से बना परिधान बेचने वाले व्यापारी और निर्यातकों के समक्ष सकारात्मक रुख बन गया है। जिससे इस क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर प्राप्त हो सकेंगे। 

दरअसल, पिछले दिनों कश्मीर के सोलिना इंडस्ट्रीज लिमिटेड में 30 बेसिनों पर आधारित पांच मशीनों पर रोलिंग शुरू हो गयी है। जिसको लेकर 5-67 करोड़ की लागत से तीन और मशीनें लगाने की योजना है। ऐसे में अब इस सिल्क फैैक्ट्री में पुनः उत्पादन शुरू होने से रेशम के कीड़े और सोलिना की सिल्क फैक्ट्री कश्मीरियों के लिए बेहद अहम रखती है। ऐसे में जम्मू-कश्मीर के लगभग 40 हजार परिवार इस सिल्क फैक्ट्री को पुनः चालू होने से प्रत्यक्ष तौर पर लाभान्वित होंगे। इसके साथ ही जम्मू में भी 6-64 करोड़ की लागत से फिलेचर स्थापित करने की योजना पर काम कर रही है। जिससे 240 टन कोकून को रील कर 80 टन कच्चे रेशम पैदा किया जा सकेगा। जिसको लेकर जम्मू कश्मीर के सचिव और आयुक्त शैलेन्द्र कुमार ने कहा कि रेशम उद्योग से सम्बंधित प्रत्येक काम यही जम्मू-कश्मीर में किया जाएगा। जिसको लेकर अब हम कोकून भी खरीद रहे हैं और सोलिना से धागा तैयार कर रहे हैं। जिसके तहत राजबाग और जम्मू स्थित फैक्ट्री में कपड़े की बुनाई हो रही है। इस वर्ष के अंत तक हमने 3-5 लाख मीटर रेशमी कपड़ा तैयार करने का लक्ष्य रखा है। ऐसे में फैक्ट्री शुरू होने से यहां के लोगों को फायदा होगा । जिससे इस रियायत में 900 मीट्रिक टन कोकून पैदा होता है और सिर्फ 150 मीट्रिक टन ही राज्य में लगता है और शेष अन्य राज्यों के व्यापारियों द्वारा खरीदा जाता है। हालांकि एक हफ्रते में वहां पर लगभग 200 किलो कोकून पैदा किया जा चुका है। ऐसे में अब इन्हें कोकून की कीमत उसकी गुणवत्ता के आधार पर मिलेगी। बहरहाल इस फैक्ट्री के बंद होने के चलते ये लोग मालदा (पश्चिम बंगाल) से आने वाले व्यापारियों पर निर्भर हो गये थे और औने-पौने दाम पर कोकून बेच देते थे। 

उल्लेखनीय है कि इस कारखाने के तीन फिलेचर पर 580 बेसिन में कोकून को प्रोसेस किया जाता था। बहरहाल, घटते उत्पादन और बढ़ते घाटे से यह फैक्ट्री बंद हो गयी। यद्यपि 1980-81 में वहां 57000 किलो उत्पादन था जो कि 1989-90 में घटकर महज 16000 किलो रह गया था। वैसे तो 1989 में घटते उत्पादन और वादी में आतंकवाद के पैर पसारने के साथ ही सोलिना सिल्क फैक्ट्री बंद हो गयी थी। जिससे यहां पर वीराना छा गया था। ज्ञातव्य हो कि कश्मीर के रेशम की सदियों से चीन और यूरोप तक विशिष्ट पहचान व मांग रही है। कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी में भी कश्मीर रेशम का जिक्र है। जिसके तहत सातवीं सदी में कश्मीर आए चीनी यात्री ह्नेनसांग ने भी कश्मीरी रेशम की गुणवत्ता और यहां रेशम पर होने वाले काम का जिक्र किया है। 

ऐसे में गुणवत्ता के आधार पर कश्मीर में पैदा होने वाले रेशम को चार प्रमुख वर्गांे लोटस, आइरिस, ट्यूलिप और नील में बांटा जाता रहा है। ज्ञातव्य हो कि कश्मीर की पहचान रही ऐतिहासिक सिल्क फैक्ट्री की चिमनियां फिर से धुआं उगलने लगी हैं, जिससे यहां के लोगों में उत्साह का संचार हुआ है। 



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